Explainer: कितनी अहम है नारों-जुमलों की सियासत? कमल-हाथ में घमासान, क्या इनसे मिलेंगे वोट?
Shivraj Chouhan, Vasundhara Raje, Ashok Gehlot, Kamalnath
विपिन श्रीवास्तव, भोपाल
केजे श्रीवत्सन, जयपुर से
Madhya Pradesh Assembly Elections Campaigning With Slogans: मध्य प्रदेश और राजस्थान वे 2 अहम राज्य हैं, जहां चुनावी सियासत जोरों पर है। मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को जनता अपने फेरवरेट नेता का चुनाव करेगी। वहीं 10 दिन बाद यानि 25 नवंबर को राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होगी, लेकिन उससे पहले भाजपा और कांग्रेस नेता प्रत्याशी और कार्यकर्ता पूरे जोर शोर से खुद को जनता की अदालत में पेश करने में जुटे हैं। इसी कड़ी में नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजियों के बीच प्रचार के लिए सबसे बड़ा हथियार बने हैं नारे, यानि स्लोगन...
सत्ता परिवर्तन के साथ नारे भी बदल जाते
मध्य प्रदेश में पिछले चुनाव से पहले लंबे वक्त तक सत्ता में रही भारतीय जनता पार्टी के सियासी गणित कुछ अलग थे और 2018 विधानसभा चुनाव में ‘माफ करो महाराज, हमारा नेता शिवराज’ सत्तारूढ़ पार्टी का एक मुख्य नारा था। इस नारे के जरिए ग्वालियर के पूर्व राजघराने के वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निशाना साधा गया था, लेकिन 2 साल बाद यानि 2020 में राज्य के सियासी हालात बदले। जब सिंधिया कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए और कमल नाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को 15 महीने में ही सत्ता से दूर होना पड़ा। इसके साथ ही पुराना नारा भी बदला।
ज्योतिरादित्य सिंधिया जब 11 मार्च 2020 को भाजपा में शामिल हुए, तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्विटर पर लिखा था कि स्वागत है महाराज, साथ है शिवराज...सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद शिवराज सिंह चौथी बार मध्य प्रदेश सियासत के सिरमौर बन गए। भाजपा ने कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर निशाना साधते हुए 2003 में श्रीमान बंटाधार का नारा दिया था। भाजपा ने 2003 में राज्य की बेहद खराब सड़कों और खराब बिजली आपूर्ति को मुद्दा बनाते हुए दिग्विजय सिंह पर निशाना साधा था। 2003 में हुए प्रचार का नतीजा था कि कांग्रेस की सीटें 230 से घटकर 38 रह गईं और उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा 173 सीटों के साथ विजयी हुई।
कमलनाथ के लिए इस्तेमाल हो रहा ‘करप्टनाथ’ शब्द
वहीं एक सच्चाई यह भी है कि मध्य प्रदेश भाजपा में सिंधिया की एंट्री के बाद से ही भाजपा में गुटबाजी शुरू होने लगी थी। यही वजह है कि 2023 के चुनाव में भाजपा ने मोदी के नाम और चेहरे को चुनावी स्लोगन बनाया। मध्य प्रदेश में जीत को गारंटी में बदलने के लिए भारतीय जनता पार्टी मोदी नाम केवलम् के सहारे चुनावी वैतरणी में उतरी है। मध्य प्रदेश में अब कांग्रेस भी कुछ-कुछ भाजपा की राह पर चल पड़ी है। 2018 में कांग्रेस विकास के नारों के साथ चुनावी मैदान में थी। शिवराज सरकार के खिलाफ मुद्दों की लड़ाई लड़ रही थी और उसमें कांग्रेस को कामयाबी भी मिली। सिंधिया की बगावत और सत्ता हाथ से जाने के बाद कांग्रेस में गुटबाजी ने सिर उठाया। दिग्विजय और कमलनाथ के बीच की अदावत को पार्टी ने कई मौकों पर खत्म करने की कोशिश की। चुनावी बेला में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह साथ-साथ नजर भी आने लगे, लेकिन जनता के बीच जाने से पहले कांग्रेस ने गुटबाजी के आरोपों से बचने के लिए कमलनाथ को चेहरा बनाया और नारा दिया... बढ़ाइए हाथ, फिर कमलनाथ...
विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा के नेता कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई के प्रमुख कमलनाथ के लिए ‘करप्टनाथ’ शब्द इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए ‘शिवराज का मिशन, 50 प्रतिशत कमीशन’ के साथ पलटवार कर रही है। कांग्रेस और भी कई नारे लेकर आई है, जैसे ‘बढ़ाइए हाथ, फिर कमलनाथ’, ‘भाजपा हटाओ, सम्मान बचाओ’ और ‘50 प्रतिशत कमीशन की सरकार इसलिए युवा बेरोजगार’ प्रधानमंत्री मोदी भी अपनी रैलियों में कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कह रहे हैं किग़रीब की जेब साफ़ और काम हाफ, लेकिन नारों के बिना कभी कोई चुनाव हुआ ही नहीं। मंच पर नेता और माइक से नारे, भीड़ का समर्थन और नारों की गूंज। इनसे जनता की भावनाओं का जुड़ाव बताकर चुनावीं माहौल को साधने की कोशिश होती है।
राजस्थान की सियासत में भी थीम सॉन्ग और नारों का बोलबाला
राजस्थान में कांग्रेस इस बार 'काम किया दिल से कांग्रेस फिर से' के नारे के साथ चुनावी रण में है। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि राजस्थान में 5 साल अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार रही। इस दौरान 22 नए जिले बनाने के साथ-साथ गहलोत सरकार ने करोड़ों रुपयों की योजनाएं राज्य को दीं। गहलोत सरकार ने राजस्थान में काम के लिहाज़ से भाजपा को न सिर्फ मुद्दा विहीन कर दिया, बल्कि देशभर में इनकी चर्चा भी होने लगी। ऐसे में अपनी सरकार की इन्हीं योजनाओं को लेकर कांग्रेस के नेता अपनी इस बार की 7 नई गारंटियों के साथ कह रहे हैं कि काम किया दिल से कांग्रेस फिर से।
राजस्थान का रण जीतने के लिए भाजपा भी पूरी जोर आजमाइश में जुटी है। राजस्थान में भी पार्टी मोदी और अमित शाह के दम पर सत्ता बदलने का दम भर रही है। सांसदों को राजस्थान के रण में उतारकर भाजपा ने जीत को पुख्ता करने की कोशिश की है तो ऐन मौके पर वसुंधरा को स्टेट पॉलिटिक्स की लाइम लाइट में लाकर भाजपा ने भी बड़ा दांव खेला है। राजस्थान में भाजपा के दिग्गज जीत के लिए हर मुमकिन कोशिश में जुटे हैं। राजस्थान के पारंपरिक रंग ढंग के सहारे जनता को अपनी तरफ वापस खींचने की कोशिश कर रहे हैं। पॉलिटिकल मंच पर कहीं वसुंधरा राजे ओढ़नी पहनाकर सम्मानित की जा रही हैं तो कहीं राज्यवर्धन सिंह राठौड़ पारंपरिक पगड़ी बांधकर राजस्थान से अपनी करीबी का अहसास लोगों से करवा रहे हैं।
भाजपा भी इस बार स्लोगन के साथ चुनावी रण में
साल 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के खिलाफ माहौल कुछ इस कदर बन चुका था कि मतदाता तक बोलने लगे थे कि मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं। इस नारे का बड़ा असर भी दिखने लगा और अब तक वसुंधरा समर्थकों के लिए यह नारा सबसे ज्यादा परेशान करने वाला भी है। चुनाव परिणाम आया तो भाजपा और कांग्रेस के जीत हार के फासले ने पूर्व CM वसुंधरा राजे की राजनीतिक कूच की इबारत भी लिख दी थी। यही 2023 के चुनाव में नज़र भी आने लगा है। हालांकि यह बात अलग है कि अब भी वसुंधरा हाईकमान से लड़ने का दमखम दिखा रही है, क्योंकि उनका राजनीतिक कद ही इतना ऊंचा है कि उन्हें नजरअंदाज ही नहीं किया जा सकता।
भाजपा ने इस बार 'नहीं सहेगा राजस्थान' का एक लाइन का स्लोगन भी दिया है। इसके साथ ही इससे जुड़े नारे भी तैयार किए गए हैं, जिसकी थीम है अपराध बेलगाम, नहीं सहेगा राजस्थान! भ्रष्टाचार का फैला जाल, नहीं सहेगा राजस्थान! प्रमुख हैं, भाजपा 5 सालों से विपक्ष में है। इस दौरान महंगाई, तुष्टिकरण, महिला और दलित अपराधों की लगातार बढ़ती संख्या, बेरोजगारी, पेपर लीक, किसानों की जमीं कुर्क होने जैसे मुद्दों को उठाती रही है। इन्हीं मुद्दों की आड़ में भाजपा का कहना है कि अब इन सब बातों को राजस्थान की जनता और नहीं सहेगी। बदलाव चाहिए और यह बदलाव भाजपा ही दे सकती है। देश में चुनावी मौसम में नारों की सियासत नई नहीं है, लेकिन सोशल मीडिया के दौर में इस बार चुनावी स्लोगन की धार थोड़ी सीमित हुई है। पार्टियों के नारे जनता के दिलों को नहीं छू पा रहे हैं, लेकिन पार्टियों और नेताओं की कोशिश पूरी है और यह कोशिश 3 दिसंबर को किसे कामयाबी के शिखर पर खड़ा करेगी यह देखने वाली बात होगी।
Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world
on News24. Follow News24 and Download our - News24
Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google
News.