Explainer: क्या होते हैं चुनाव चिह्न और कैसे मिलते हैं? नेशनल पार्टियों के फिक्स ही क्यों रहते?
BJP vs Congress
What Is Election Symbol And How Election Symbol Allot: देश में हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होते हैं। इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं। पार्टियां चुनाव चिह्न के लिए आवेदन कर चुकी हैं। इस जद्दोजहद के बीच सुप्रीम कोर्ट में 2 पार्टियों के चुनाव चिह्न रद्द करने की याचिका दायर हुई, जिसे रद्द कर दिया गया है, क्योंकि चुनावी माहौल चल रहा है तो ऐसे में वोटर्स के दिमाग में सवाल उठता होगा कि चुनाव चिह्न आखिर क्या होते हैं और यह कैसे अलॉट होते हैं? आइए इस बारे में जानते हैं...
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चुनाव चिह्न क्या होता है और क्यों दिए जाते हैं?
राजनीतिक दल की पहचान के लिए चुनाव चिह्न दिए जाते हैं, ताकि वोटर पहचान सके कि कौन-सी पार्टी है और किसे मतदान करना है। चुनाव आयोग का उम्मीदवारों को चिह्न देने का एक मकसद यह भी होता है कि जो वोटर्स पढ़े-लिखे नहीं हैं, वे बैलेट पेपर या EVM मशीन में फीड सिंबल को देखकर चहेती पार्टी को वोट दे सकें। चुनाव चिह्न की जरूरत महसूस हुई, क्योंकि भारत में अनपढ़ लोग काफी हैं। वे पढ़ नही सकते, इसलिए चुनाव चिह्न दिए जाते हैं, ताकि वे देखकर पहचान सकें। इंसानी दिमाग ऑडियो या लिखित जानकारी की तुलना में 40% ज्यादा विजुअल जानकारी याद रख सकत है। इसलिए चुनाव चिह्न दिए जाते हैं।
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देश में चुनाव चिह्न कब से दिए जा रहे?
राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न देने की शुरुआत 1951 के बाद हुई। 1947 से पहले देश में 2 राजनीतिक दल कांग्रेस और मुस्लिम लीग थे। कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को हुई। उसे '2 बैलों का जोड़ा' पार्टी चिह्न मिला। 1906 में मुस्लिम लीग बनी, जिसे अर्ध चंद्रमा और तारा पार्टी चिह्न मिला। 1951 में पहले आम चुनाव के समय सभी राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्नों की तस्वीरें अलग-अलग बॉक्स पर लगाई गई। 20 लाख से ज्यादा बक्से इस्तेमाल हुए थे। 14 राजनीतिक दल थे। चुनाव आयोग के अनुसार, 2 प्रकार के चिह्न आज दिए जाते हैं। एक, जो सिर्फ एक पार्टी का होता है, जैसे कांग्रेस का हाथ और भाजपा का कमल फूल। दूसरा फ्री, जो किसी पार्टी का नहीं होता। यह नई पार्टी या कैंडिडेट को एक निश्चित निर्वाचन क्षेत्र के लिए ही दिया जाता है।
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चुनाव आयोग के पास ही अलॉट करने का अधिकार
इलेक्शन सिंबल (रिजर्वेशन और अलॉटमेंट) ऑर्डर 1968 के तहत चुनाव आयोग को चुनाव चिह्न तय करने का अधिकार मिल गया है। विवाद होने पर भी चिह्न तय करने अधिकार आयोग के पास ही होता है। चुनाव आयोग पार्टियों को चिह्न खुद चुनने का विकल्प भी देता है। जैसे 1993 में मुलायम सिंह यादव को अपनी पार्टी के लिए चिह्न चुनने का मौका दिया गया था। इस समय देश की 6 नेशनल और 54 स्टेट पार्टी के चुनाव चिह्न फिक्स हैं। चुनाव आयोग दिया गया चिह्न वापस भी ले सकता है, अगर पार्टी को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल होने का दर्ज न मिले तो ऐसा हो सकता है, क्योंकि भाजपा और कांग्रेस दोनों नेशनल पार्टी हैं। उन्हें नेशनल पार्टी होने का दर्जा मिला हुआ है। इसलिए वे देशभीर में कहीं भी चुनाव लड़ सकती हैं और उनके पार्टी चिह्न भी फिक्स हैं।
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