चीन ने अपनी विशाल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करते हुए ताइवान को पांच अलग-अलग दिशाओं उत्तर, उत्तर-पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और पूर्वी तट से घेर लिया है. चीन ने इसे सैन्य अभ्यास बता रहा है, लेकिन ताइवान का कहना है कि चीन उकसा रहा है. ताइवान ने भी अपनी तीनों सेना थलसेना, नौसेना और वायुसेना को अलर्ट पर रखा है. इसके साथ ही ताइवान ने भी सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया है. चीन हमेशा ताइवान को अपना ही हिस्सा मानता आया है. लेकिन ताइवान का कहना है कि वह एक आजाद मुल्क है. ताइवान की अपनी सरकार, संविधान और सेना है. ताइवान के खिलाफ चीन की गतिविधियों पिछले कुछ वक्त से बढ़ गई हैं. 2016 के बाद से चीन और ताइवान में कोई आधिकारिक कम्युनिकेशन नहीं हुआ है.
ऐसे में सवाल पैदा होता है कि किसी देश का अपना संविधान हो, अपनी सरकार हो, तो उस पर दूसरा देश कैसे दावा कर सकता है? आज हम जानेंगे कि आखिर चीन और ताइवान का विवाद क्या है…
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क्या कहता है इतिहास?
ताइवान को चीन किसी भी हाल में अपने साथ मिलाना चाहता है. चीन इतिहास का हवाला देते हुए ताइवान को अपना हिस्सा बताता है. वहीं, ताइवान भी इतिहास का हवाला देकर कहता है कि आज जो चीन है, उसका हिस्सा वे कभी थे ही नहीं. ताइवान एक द्वीप है, इसकी जनसंख्या करीब 2.5 करोड है. इस द्वीप की साल 1950 से ही अपनी सरकार है. इतिहास के मुताबिक, इस द्वीप पर ऑस्ट्रोनेशियन जनजातीय के लोग दक्षिण चीन से आकर बसे थे. सन 239 के चीनी रिकॉर्ड्स में इस द्वीप का जिक्र है. ये रिकॉर्ड्स तब के हैं, जब एक राजा ने उस द्वीप पर एक खोजी अभियान भेजा था. इसी तथ्य को चीन ताइवान पर अपने दावे के लिए इस्तेमाल करता है. पहले इस द्वीप पर चीन का Qing राजवंश राज करता था.
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जब जापान ने कर लिया था कब्जा
चीन के साथ पहला युद्ध जीतने के बाद जापान ने ताइवान पर कब्जा कर लिया था. फिर दूसरे विश्व युद्ध में जापान हार गया. ऐसे में ताइवान पर वापस चीन ने कब्जा कर लिया. उस वक्त चीन को रिपब्लिक ऑफ चाइना कहा जाता था. रिपब्लिक ऑफ चाइना ने ताइवान को अपने कब्जे में लेकर अमेरिका और ब्रिटेन की सहमति से राज शुरू कर दिया था. लेकिन कुछ वर्षों बाद ही रिपब्लिक ऑफ चाइना में सिविल वार शुरू हो गया. इसमें च्यांग काई शेक हार जाते हैं और माओत्से तुंग जीत जाते हैं. फिर 1949 में पिपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना बनाया गया. इसके बाद च्यांग समेत 15 लाख लोग भागकर ताइवान चले गए. यहां आकर च्यांग काई शेक ने साल 1980 तक बतौर तानाशाह ताइवान पर राज करते रहे. उनकी मौत के बाद वहां लोकतंत्र बहाली के प्रयास हुए. साल 1996 में ताइवान में पहली बार चुनाव हुए. इसमें ली तेंग-हुई की जीत हुई, उन्हें ताइवान में 'लोकतंत्र का जनक' कहा जाता है.
कौन-कौन देता है मान्यता?
ताइवान को बतौर देश केवल छोटे-छोटे दर्जनभर देश ही मान्यता देते हैं. च्यांग काई शेक के वक्त पश्चिम के कई देश उनकी सरकार को मान्यता देते थे. ताइवान को मान्यता ना देने के लिए चीन दूसरे देशों पर भी दबाव डालता है. भारत और ताइवान के भी संबंध बहुत अच्छे हैं, लेकिन भारत ने भी उसे अलग देश के तौर पर मान्यता नहीं दी है. अमेरिका की बात करें तो उसके भी ताइवान के साथ अच्छे संबंध हैं. अमेरिका ताइवान को हथियार भी बेचता है. लेकिन फिर भी वह आजाद मुल्क के तौर पर ताइवान को मान्यता नहीं देता है.
चीन की मंशा क्या?
चीन ताइवान के चारों ओर सैन्य अभ्यास कर रहा है. चीनी सेना के मुताबिक, इस अभ्यास में थल सेना, नौसेना, वायु सेना और रॉकेट फोर्स शामिल है. अभ्यास के दौरान लाइव-फायर भी किया जाएगा. चीन ने इसे 'जस्टिस मिशन 2025' नाम दिया है. अमेरिका ने हाल ही ताइवान को 11 बिलियन डॉलर के अपने सबसे बड़े हथियार पैकेजों में से एक की बिक्री का ऐलान किया था. चीन ने इसका तीखा विरोध किया था. इसके बाद चीन ने अमेरिकी रक्षा कंपनियों पर बैन भी लगा दिया था. इसके बाद ही चीन यह सैन्य अभ्यास कर रहा है. चीन यह मैसेज देना चाहता है कि वह जब चाहे ताइवान की सप्लाई लाइन काट सकता है और उसे पूरी दुनिया से अलग-थलग कर सकता है. चीनी विदेश मंत्रालय ने इसे 'बल के जरिए आजादी चाहने वाली अलगाववादी ताकतों के लिए कड़ी सजा' बताया है. साथ ही चीन को रोकने के लिए ताइवान का उपयोग करने वाली बाहरी ताकतों' के खिलाफ चेतावनी बताया है.
ताइवान का कहना है कि 89 चीनी सैन्य विमानों और 28 युद्धपोतों और तटरक्षक जहाज तैनात हैं. चीन ने ताइवान पर निगरानी के लिए मिसाइलें भी तैनात की हैं. इसकी वजह से ताइवान आने और जाने वाली फ्लाइट्स को दूसरे रूट्स पर डायवर्ट कर दिया गया है. इसका असर करीब एक लाख यात्रियों पर पड़ेगा.