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क्या चीन हिमालय में बना रहा भारत के खिलाफ ‘वॉटर बम’, जानिए- कितना है ये खतरनाक

चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर 168 अरब डॉलर की लागत से एक बड़ा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना रहा है, जिसका असर भारत पर पड़ सकता है.

ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से निकलती है और इसके बाद भारत में घुसती है.

चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर अब तक का सबसे बड़ा इंफ्रा प्रोजेक्ट बना रहा है. चीन में ब्रह्मपुत्र नदी का नाम यारलुंग त्सांगपो है. इस नदी पर बन रहे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का भारत और दूसरे पड़ोसी देशों पर दूरगामी असर पड़ सकते हैं. यह असर खास तौर पर ब्रह्मपुत्र बेसिन के समुदायों और इकोसिस्टम पर पड़ सकता है. यारलुंग त्सांगपो नदी तिब्बत से निकलती है और जैसे ही भारत में प्रवेश करती है, इसका नाम ब्रह्मपुत्र हो जाता है. यह नदी लाखों लोगों के लिए आजीविका का भी जरिया है. लाखों लोग खेती, मछली और पानी के लिए इस नदी पर निर्भर हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऊपरी हिस्से में इस नदी के साथ बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ खतरनाक साबित हो सकती है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन इस प्रोजेक्ट पर 168 अरब डॉलर खर्च करेगा. इस प्रोजेक्ट के तहत, बांध, जलाशय और टनल से जुड़े अंडरग्राउंड पावर स्टेशन बनाए जाएंगे.

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कैसे बिगड़ेगा इको सिस्टम?

जहां, चीन इस प्रोजेक्ट को क्लाइमेट फ्रेंडली बता रहा है, तो वहीं, एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे वहां रहने वाले लोगों के घर टूट सकते हैं और वहां का इको सिस्टम का बैलेंस बिगड़ सकता है. एक्सपर्ट्स ने इस प्रोजेक्ट को सबसे ज्यादा रिस्की और खतरनाक बताया है. हालांकि, चीन के विदेश मंत्रालय ने ऐसे दावों को खारिज किया है. चीन का कहना है कि इस हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट की प्लानिंग के लिए दशकों तक गहरी रिसर्च की गई है. साथ ही चीन ने कहा कि इकोलॉजिकल सिस्टम को ध्यान में रखते हुए इस प्रोजेक्ट को प्लान किया गया है, ताकि निचले इलाकों में इसका कोई असर ना पड़े.

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हजारों हो जाएंगे बेघर

इसके अलावा मानव जाति को भी इसके गंभीर परिणाम झेलने पड़ सकते हैं. जहां यह प्रोजेक्ट बनाया जा रहा है, वहां 'मोनपा' और 'ल्होबा' जैसे आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. ये समुदाय चीन के अल्पसंख्यक हैं. इन समुदाय के लोगों को अपने पैतृक घरों को छोड़ना पड़ेगा. चीनी अधिकारियों ने भी माना है कि इन समुदाय के लोगों को तिब्बत में दूसरी जगह बसाया जाएगा. उनकी आय के साधन खत्म हो सकते हैं. लोकल इकोलॉजिकल बैलेंस खत्म हो सकता है. इन्हें जहां बसाया जाएगा, वहां का इको सिस्टम भी बिगड़ सकता है.

पर्यावरण के लिए क्या खतरा?

यह वह प्रोजेक्ट बनाया जा रहा है, वह इलाका खुद इकोलॉजिकली सेंसिटिव है. इसके दोनों तरफ नेशनल लेवल के नेचर रिजर्व हैं. यहां बंगाल टाइगर, क्लाउडेड लेपर्ड, काले भालू और रेड पांडा जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों के जानवर पाए जाते हैं. कई वैज्ञानिक ऐसे इलाके में बड़े इंफ्रा प्रोजेक्ट्स बनाने पर चिंता जाहिर करते आए हैं.

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भारत पर क्या होगा असर?

भारत पर इस प्रोजेक्ट के गंभीर परिणाम पड़ सकते हैं. ब्रह्मपुत्र के ऊपरी हिस्सों में पानी के प्रवाह के साथ कोई भी छेड़छाड़ की जाती है तो मिट्टी का मूवमेंट, मछलियों का माइग्रेशन और मौसमी बाढ़ के पैटर्न पर असर पड़ सकता है. ये चीजें खेती और बायोडायवर्सिटी के लिए बहुत जरूरी हैं. ब्रह्मपुत्र को ज्यादातर पानी भारत में मानसून की बारिश और सहायक नदियों से मिलता है. छेड़छाड़ की वजह से नदी की कुदरती रफ्तार में रुकावट आ सकती है.

क्या चीन का है नापाक मकसद?

पर्यावरण के अलावा इस प्रोजेक्ट के पीछे जियोपॉलिटिकल रणनीति भी है. चीन ने हिमालय के एरिया में कई प्रोजेक्ट्स बनाए हैं. अगर इन्हें जोड़कर देखा जाए तो इनमें चीन का साफ मकसद दिखता है कि वह तिब्बत और उसकी सीमा पर अपना कंट्रोल बढ़ाना चाहता है.

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अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने जुलाई में चेताया था कि यह प्रोजेक्ट एक 'वॉटर बम' के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. न्यूज एजेंसी पीटीआई ने उनके हवाले से लिखा था कि चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता, किसी को नहीं पता होता कि वह कब क्या करेगा. साथ ही सीएम ने कहा था कि अगर वह इस प्रोजेक्ट से अचानक पानी छोड़गा तो राज्य में बाढ़ आ सकती है, और अगर पानी रोकता है सूखा पड़ सकता है.

भारत ने कहा है कि वह चीन की योजनाओं को सावधानी से मॉनिटर कर रहा है. भारत सरकार ने कहा कि भारतीयों के हितों की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे.

भारत की भी ब्रह्मपुत्र नदी पर 11,200 मेगावाट का बांध बनाने की योजना है. इसके लिए भारत की सबसे बड़ी सरकारी हाइड्रोपावर कंपनी काम कर रही है. चीन और भारत दोनों देश एक ही नदी पर अपने प्रोजेक्ट्स को लेकर काम कर रहे हैं, ऐसे में एक्सपर्ट्स ने और गंभीर परिणामों को लेकर चेताया है.

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मेकांग नदी के प्रोजेक्ट से शक गहराया!

चीन मेकांग नदी पर भी ऐसा ही प्रोजेक्ट बनाकर शरारत कर रहा है. मेकांग नदी एक ट्रांसनेशनल वॉटरवे (ऐसे जल स्रोत, जो कई देशों से गुजरते हैं या स्थित हैं) है. इस नदी पर बने डैम को जिस तरह से चीन कंट्रोल करता है, उससे भारत का शक और गहरा जाता है. मेकांग नदी पर बने चीनी डैम पर वियतनाम जैसे निचले देशों में सूखे की हालत पैदा करने का आरोप लगता रहता है. चीन बिजली बनाने के लिए इस नदी के पानी के बहाव को कंट्रोल करता है. हालांकि, चीन ऐसे आरोपों का खंडन करता है.


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