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‘समर्पण करो नहीं तो तुम्हारी हस्ती मिटा देंगे…’, 71 के युद्ध के असली हीरो फील्ड मार्शल Sam Bahadur की कहानी

Story Of Field Marshal Sam Bahadur: सैम बहादुर उस दौर के एक ऐसे आर्मी चीफ थे जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बात को भी काट देने की हिम्मत रखते थे और उन्होंने तो इंदिरा गांधी को बातों ही बातों में स्वीटी तक कह डाला था।

image credit: social media
Story Of Field Marshal Sam Bahadur: 1971 की जंग में पाकिस्तान को हराने और बांग्लादेश को बनाने का पूरा श्रेय सैम बहादुर यानि सैम मानेकशॉ को जाता है। सैम मानेकशॉ भारत के पहले फील्ड मार्शल थे। यह उन्हीं की ताकत का नतीजा था कि युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने करीब 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया था। उनकी बहादुरी और मजाक के किस्से बहुत मशहूर हैं। आज की इस पीढ़ी का एक बड़ा तबका शायद इससे अनजान ही रहता अगर इसपर बनी विक्की कौशल की फिल्म 'सैम बहादुर' सिनेमाघरों में न आई होती तो। वह उस दौर के एक ऐसे आर्मी चीफ थे जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बात को भी काट देने की हिम्मत रखते थे और उन्होंने तो इंदिरा गांधी को बातों ही बातों में 'स्वीटी' तक कह डाला था। 16 दिसंबर 1971 ही वह दिन है जब पाकिस्तान ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था, इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाते हैं, तो चलिए इस खास मौके पर 'सैम बहादुर' के बारे में विस्तार से जानते हैं। गोलियां खाने के बाद भी नहीं छोड़ा जंग का मैदान सैम मानेकशॉ का पूरा नाम सैम होरमरूजी फ्रामजी जमशेद जी मानेकशॉ था। वह देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी के छात्र थे। जब सैम ने सेना में जाने का फैसला किया था तो उनको पिता के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था और पिता के खिलाफ बगावत करके वह इंडियन मिलिट्री अकादमी, देहरादून में एडमिशन में दाखिले के लिए परीक्षा देने चले गए थे। तब वह 1932 में पहले 40 कैडेट्स वाले बैच में शामिल हुए। सैम की जिंदगी अनगिनत उपलब्धियों से भरी हुई है। कहा जाता है कि उनकी बहादुरी के किस्से दूसरे विश्व युद्ध से शुरू हो गए थे। उस दौरान साल 1942 में बर्मा के मोर्चे पर एक जापानी सैनिक ने अपनी मशीन गन के जरिए सात गोलियां उनके शरीर में उतार दी थीं। इतने जख्मी होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और मैदान-ए-जंग में डटे रहे। उसके बाद उन्होंने जिंदगी की जंग भी जीती। यह भी पढ़ें: Vijay Diwas: भारत-पाकिस्तान के युद्ध से निकली इन फिल्मों की कहानी, Pippa से Border तक में दिखी सेना की जांबाजी जब सैम के तीखे तेवर देख इंदिरा भी हो गईं शांत सैम मानेकशॉ गोरखा सिपाहियों के इतने कायल थे कि वह कहा करते थे कि जिसे मौत से डर नहीं लगता है वह या झूठा होता है या फिर गोरखा होता है। इंदिरा गांधी के साथ उनके किस्से बहुत मशहूर थे। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया था कि इंदिरा गांधी पूर्वी पाकिस्तान के हालात को लेकर बहुत ज्यादा परेशान थीं। उन्होंने आपात बैठक बुलाई और लोगों को समस्या बताई। इस बैठक में मानेकशॉ भी थे। इंदिरा गांधी ने भारतीय आर्मी से इसमें दखल देने को कहा तो मानेकशॉ ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि हमारी सेना अभी इसके लिए तैयार नहीं है। अगर जंग हुई तो बहुत नुकसान होगा आप हमें इसके लिए टाइम दें। मानेकशॉ के ऐसे तेवर देखने के बाद इंदिरा गांधी भी शांत हो गईं थीं। मानेकशॉ के इंदिरा गांधी को स्वीटी कहकर बुलाने के भी चर्चे कई किताबों में शामिल किए जा चुके हैं। 1971 में जंग के लिए जब एक बार फिर इंदिरा ने अपने आर्मी चीफ से पूछा तो मानेकशॉ ने कहा, 'मैं हमेशा तैयार हूं स्वीटी।' तख्तापलट की अफवाह इंदिरा गांधी अपनी लीडरशिप, पॉलिटिक्स और ब्यूरोक्रेसी के कंट्रोल को लेकर हमेशा सतर्क रहती थीं। एक बार अफवाह फैली कि मानेकशॉ आर्मी की मदद से सरकार का तख्तापलट करने की फिराक में हैं। इससे इंदिरा गांधी इससे काफी डर गईं थीं। उन्होंने मानेकशॉ के साथ मीटिंग की और इस बारे में सवाल किए। आर्मी चीफ ने कड़क अंदाज में इंदिरा को जवाब दिया। उन्होंने कहा- मेरी और आपकी दोनों की नाक बड़ी लंबी है। मगर मैं दूसरे के काम में अपनी नाक नहीं अड़ाता, इसलिए आप भी मेरे काम में नाक न डालें।


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