‘The Trial’ series review: एक इंटरनेशनल स्टोरी का हिंदी एडॉप्टेशन, काजोल की प्रभावी अदाकारी
अश्विनी कुमार: 'The Trial' series review: दुनिया छोटी होती जा रही है और इसके साथ ही कंटेंट रिवोल्यूशन भी बढ़ता जा रहा है। पिछले ही साल, ओटीटी सीरीज़ में अजय देवगन ने डेब्यू किया। डिज़्नी हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई ‘रुद्रा: द एज ऑफ़ डार्कनेस’, ब्लॉबस्टर ब्रिटिश सीरीज़ ‘लूथर’ का हिंदी एडॉप्टेशन था। अब डिज़्नी हॉटस्टार पर ही अमेरिका के बेहद पॉपुलर सीरीज़- ‘द गुड वाइफ़’, जिसके 7 कामयाब सीज़न अब तक आ चुके हैं, उसका हिंदी एडॉप्टेशन, काजोल के बतौर लीड वाली सीरीज़- ‘द ट्रायल’, का पहला सीज़न, डिज़्नी हॉटस्टार पर ही स्ट्रीम हो रहा है।
‘द ट्रायल’ की बेसिक कहानी तो वही है, जो इसके अमेरिक वज़र्न ‘द गुड वाइफ़’ की है। यानि एक बेहतरीन एडवोकेट, जो शादी के बाद पति, बच्चे और परिवार में खोकर लीगल प्रैक्टिस से एक लंबा ब्रेक ले लेती है। मगर जब उसके पति, जो बेहद मशहूर जज हैं, वो सेक्स स्कैंडल और करप्शन के चार्जेज़ में फंसते हैं। अब पत्नी को घर की कमान संभालनी है। दुनिया के तानों से बच्चों को बचाना है। पति की बेवफाई के सदमे से गुज़रना है और कोर्ट रूम की दुनिया में वापस लौटना है।
अब्बास दलाल, हुसैन दलाल और सिद्धार्थ कुमार ने मिलकर इस कहानी को इंडियन सेंसिबिलिटीज़ के हिसाब से लिखा है। कहानी का प्लॉट तो अच्छा है ही, तभी इसने इतनी कामायबी हासिल की और राइटर्स की टीम ने इसमें इमोशन, रिलेशन और कॉम्प्लीकेशन को जोड़ने में कामाबी भी हासिल की है। कमी बस खटकती है, तो हर एपिसोड की कोर्ट प्रोसीडिंग के दौरान। दरअसल, ‘द ट्रायल’ की कहानी दो ट्रैक पर चलती है, पहली न्योनिका और राजीव की कहानी के ट्रैक के साथ-साथ। इसके हर एपिसोड में एक कोर्ट केस पैरेलल चलता है, जिसे 13 साल बाद लीगल प्रैक्टिस में लौटी न्योनिका को अपने लीगल फर्म के लिए लड़ना होता है।
कोर्टरूम ड्रामा में ये बात सबसे ख़ास होती है कि वकील कैसे अपने क्लाइंट के लिए, केस को जीतने के लिए तैयारी करते हैं, कोर्ट में दलील देते हैं... और ढेर सारे ट्विस्ट के साथ अपने हक़ में फैसला करते हैं। ‘द लिंकन लॉयर’, ‘द सूट्स’, ‘एक्यूज़्ड’ इस मामले में दुनिया के सबसे पॉपुलर शो हैं। भारत में ‘क्रिमिनल जस्टिस’, ‘गिल्टी माइंट्स’ जैसी वेब सीरीज़ के साथ फिल्मों में ‘जॉली एल.एल.बी’ और हाल ही में रिलीज़ में ‘बंदा’ ने हमें इंटेंस कोर्ट रूम ड्रामा का फ्लेवर चखा दिया है। ‘द ट्रायल’ इस एंगल पर कमज़ोर है।
‘द फैमिली मैन’ और ‘राणा नायडू’ से मशहूर डायरेक्टर सुपर्ण वर्मा, द ट्रायल के डायरेक्टर हैं और उन्होंने यहां भी अपना स्टैंडर्ड हाई ही रखा है। हर एपिसोड को उन्होंने क्रिस्प बनाया है। कई पैरेलल स्टोरी एक साथ चलने के बावजूद कोई भी कैरेक्टर मिस नहीं होता और इमोशनल प्वाइंट के साथ सीरीज़ के डायलॉग्स भी अच्छे हैं। 8 एपिसोड की ‘द ट्रायल’ में बैकग्राउंड स्कोर भी अच्छा है।
‘द ट्रायल’ की सबसे बड़ी खूबी है इसकी कास्टिंग, काजोल के फैन्स के लिए ये किसी ट्रीट से कम नहीं है। न्योनिका सेनगुप्ता के किरदार में भी काजोल ने अपनी अदाकारी का ग्राफ बहुत ऊंचा रखा है। इंटेंस सीन्स में, तो आप उनसे नज़रें नहीं हटा सकते। राजीव सेनगुप्ता बने जिशू सेनगुप्ता ने भी बेहद शानदार काम किया है। इन दिनों बंगाल के बेहतरीन एक्टर्स का मेन स्ट्रीम कॉन्टेंट में आना, हिंदी दर्शकों के लिए एडेड बोनस की तरह है। लीगल फर्म के पार्टनर विशाल के कैरेक्टर में अली खान का काम काबिल-ए-तारीफ़ है। न्योनिका के साथ उनका रोमांटिक ट्रैक भी ख़ासी सुर्ख़ियां बटोर रहा है। सना बनी, कुब्रा सैत और इंस्पेक्टर बने आमिर अली के बीच का रोमांटिक टेंशन आप स्क्रीन के दूसरी तरफ़ तक महसूस करते हैं।
बेहतरीन परफॉरमें के साथ एक इंटरनेशनल स्टोरी का ये हिंदी एडॉप्टेशन दिलचस्प है, और अगले सीज़न के लिए आपके लिए बेसब्री छोड़ जाता है।
रेटिंग: 3.5*
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