Sharda Sinha Lifestory: छठ महापर्व के दिन यानी 5 अक्टूबर 2024 को संगीत जगत को एक बड़ी क्षति पहुंची। 'छठ कोकिला' के नाम से फेमस शारदा सिन्हा का निधन दिल्ली के एम्स अस्पताल में हो गया। उनकी मीठी आवाज और छठ पर्व के गाने हर दिल में बसे हुए थे। उनके द्वारा गाए गए गीत अब भी लोगों की जुबान पर रहते हैं। शारदा सिन्हा का नाम आज भी भारतीय संगीत की धारा में हमेशा अमिट रहेगा, उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा।
शारदा सिन्हा का सफर
बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में जन्मीं शारदा सिन्हा का जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन उनके परिवार ने उनके संगीत के प्रति प्यार और समर्पण को समझा। उनके जन्म से जुड़ा एक ऐसा दिलचस्प किस्सा है जिसके बारे में शायद कम लोग ही जानते होंगे। दरअसल उनका जन्म ऐसी दुआ के बाद हुआ, जब परिवार में कई सालों से किसी बेटी का जन्म नहीं हुआ था। उनके परिवार में करीब 35 साल बाद किसी बेटी का जन्म हुआ था। शारदा सिन्हा का बचपन से ही संगीत के प्रति प्यार देखा गया था। शारदा के भाई-बहनों की बात करें तो वो इकलौती 8 भाइयों की बहन हैं। ऐसे में बहुत प्यार-दुलार के साथ उन्हें पाला गया। उनके पिता ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें संगीत की शिक्षा दिलवाई। शारदा सिन्हा ने अपनी पढ़ाई के दौरान भी संगीत में अपनी रुचि बनाए रखी और बाद में समस्तीपुर के कॉलेज में संगीत प्रोफेसर के रूप में अपना योगदान दिया।
सास के साथ संगीत का संघर्ष
शारदा सिन्हा की शादी के बाद उनकी सास को उनकी गायकी से दिक्कत थी, क्योंकि घर में गाना-बजाना उन्हें पसंद नहीं था। लेकिन उनके पति और ससुर ने शारदा का पूरा साथ दिया। धीरे-धीरे शारदा सिन्हा ने छठ पूजा के गीतों में महारत हासिल की और वो अपने सास-ससुर के साथ घर-घर में छठ गीतों को लेकर लोकप्रिय हो गईं।
लोक संगीत से बॉलीवुड तक का सफर
शारदा सिन्हा की लोकप्रियता में चार चांद तब लगे जब उन्होंने लोक संगीत से लेकर बॉलीवुड तक अपनी आवाज का जादू बिखेरा। एक समय था जब उन्होंने भोजपुरी, मैथिली और मगही भाषा में गाने गाए और खासकर छठ पर्व के गाने उनकी पहचान बन गए। उन्होंने अपनी पहचान 'हे दीनानाथ' से लेकर 'कहे तो से सजना' जैसे गीतों से बनाई। बॉलीवुड में राजश्री प्रोडक्शन्स के तारा चंद्र बड़जात्या ने उन्हें एक मौका दिया और उन्होंने 'मैंने प्यार किया' फिल्म के गाने को अपनी आवाज दी, जो बाद में जबरदस्त हिट हुआ।
राजनीति में आने का ऑफर मिला
शारदा सिन्हा को उनके जीवन में कई बार राजनीति में आने का ऑफर मिला, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने संगीत के रास्ते को प्राथमिकता दी। उन्होंने कभी भी राजनीति में अपने कदम नहीं रखे और ये साबित किया कि उनका दिल सिर्फ और सिर्फ संगीत में धड़कता था। उनकी साधना और समर्पण के चलते उन्हें भारतीय सरकार द्वारा साल 1991 में पद्मश्री, 2000 में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड और 2018 में पद्मभूषण जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया।
शारदा सिन्हा हमेशा दिलों में जिंदा रहेंगी
शारदा सिन्हा का निधन सिर्फ एक गायिका का निधन नहीं, बल्कि एक ऐसे स्तंभ का टूटना है जो लोक संगीत का प्रतिनिधित्व किया करता था। उनके गाने हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे और छठ पर्व पर यूं ही हमारे बीच अमर रहेंगे। शारदा सिन्हा ने संगीत के जरिए जो पहचान बनाई, वो अनमोल है और उनकी यादें हमेशा हमारे साथ रहेंगी।
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