OTT vs Theater: कोविड-19 महामारी के बाद सिनेमा जगत में काफी बदलाव हुआ है. पहला तो साउथ फिल्मों का हिंदी रीमेक कम हुआ. तमिल, तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों की रीच बढ़ी, जिन्हें पैन इंडिया रिलीज किया जाने लगा. वहीं, हिंदी फिल्मों को लगातार फ्लॉप का सामना करना पड़ा, जिसके बाद साउथ और हिंदी का मिक्सअप शुरू हुआ. डायरेक्टर से लेकर एक्टर्स तक स्टोरीज पर मिलकर काम करने लगे. साउथ-बॉलीवुड फॉर्मूला कभी हिट तो कभी फ्लॉप रहा. इसी बीच एक और बदलाव हुआ. ओटीटी का प्रचलन बढ़ा. आज आलम ये है कि सिनेमाघरों से ज्यादा ओटीटी पर फिल्में हिट होने लगी हैं. चलिए बताते हैं ऐसा क्यों हो रहा है?
5 प्वॉइंट्स में समझें थिएटर्स पर भारी क्यों OTT?
थिएटर्स और ओटीटी में बहुत बड़ा अंतर है. ओटीटी का मतलब है कि दर्शकों के हाथ में मनोरंजन. एंटरटेनमेंट के तौर पर आज ओटीटी व्यापक है, जहां दर्शकों के पास मनोरंजन की भरमार है. वह यहां पर अपने मनपसंद का कुछ भी देख सकता है लेकिन थिएटर में ये अवसर नहीं मिलता है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कम पैसे में भरपूर मनोरंजन और मनपसंद का शो दर्शक देख सकता है. उसे अपने पसंद का शो चुनने में आजादी है. चलिए बताते हैं 5 प्वॉइंट्स में ओटीटी पर फिल्में हिट क्यों हैं?
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ज्यादा ऑडियंस रीच
क्या होता है कि थिएटर में जो फिल्म रिलीज होती है, उसके लिए स्क्रीन्स लिमिटेड है. वह ज्यादा से ज्यादा 5-10 हजार स्क्रीन्स पर रिलीज हो सकती है लेकिन, जब उसी फिल्म को ओटीटी पर रिलीज किया जाता है कि तो उसकी ऑडियंस मिलियन्स में होती है. इससे उस फिल्म को हर वर्ग का दर्शक देख सकता है क्योंकि ओटीटी सबके पास अवेलेबल है लेकिन, थिएटर्स तक केवल चुनिंदा लोग ही पहुंच पाते हैं.
नो एज लिमिट
सिनेमाघरों में कुछ फिल्मों पर एज रिस्ट्रीक्शन होते हैं. इसकी वजह से है थिएटर में कुछ ही लोग पहुंच पाते हैं. मान लीजिए अगर किसी फिल्म को A सर्टिफिकेट दिया गया है तो उसे 18 साल से ज्यादा के लोग ही देख पाएंगे. ऐसे मामले में अक्सर देखा जाता है कि परिवार वाले और बच्चे ऐसी फिल्मों को थिएटर में नहीं देख पाते हैं. जबकि इंडिया को यूथ के लिए जाना जाता है. 12-18 साल की उम्र के बच्चे ज्यादातर फिल्में थिएटर में देखना पसंद करते हैं और इनकी संख्या भी काफी है तो ये एक वर्ग छूट जाता है. वहीं, ओटीटी पर कोई एज रिस्ट्रीक्शन नहीं है तो वहां उस फिल्म की रीच और व्यूअरशिप बढ़ जाती है.
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कम खर्च में ज्यादा मनोरंजन
ओटीटी, कम खर्च में ज्यादा मनोरंजन का वादा करता है. ओटीटी के मामले में क्या होता है कि एक सब्सक्रिप्शन में पूरा परिवार असीमित कंटेंट देख सकता है. वहीं, थिएटर के लिए हर टिकट अलग खरीदनी होती है, साथ में खाना-पीना महंगा होता है. कई बार थिएटर में परिवार के सभी सदस्य नहीं पहुंच पाते हैं. वहीं, आज के समय में हर किसी के पास सब्सक्रिप्शन है वह घर बैठे अपने मनपसंद की फिल्मों को देख लेता है. कई बार तो ऐसा भी होता है कि लोग घर में अकेले और बोर होने की वजह से भी ओटीटी पर उन फिल्मों को भी देख लेते हैं, जिस जॉनर की उन्हें पसंद नहीं होती है.
ओटीटी पर छोटी कहानियां भी हैं हिट
थिएटर में फिल्मों का कॉन्टेंट काफी मायने रखता है, जबकि ओटीटी पर तो छोटी कहानियां भी हिट हो जाती हैं. कंटेंट ड्रिवेन फिल्में भी आसानी से पसंद की जाती हैं. क्योंकि इसका मार्केट कैप काफी बढ़ा है. यहां हर वर्ग का दर्शक अवेलेबल है. लेकिन, थिएटर के मामले में कंटेंट को दिखाना बड़ी चुनौती है. अच्छी स्टोरी और प्लॉट के साथ ही इसकी डबिंग, वीएफएक्स पर अच्छा काम होना चाहिए. इस पर बड़े बजट की एनिमेटेड और वीएफएक्स वाली फिल्में ज्यादा चलती हैं.
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हर जॉनर का कंटेंट
थिएटर में जहां एक टिकट पर आप एक फिल्म ही देख पाते हैं. उसमें भी अगर फिल्म अच्छी ना हुई तो पैसे डूबने के चांस लेकिन, ओटीटी पर में ऐसा नहीं है. फिल्म नहीं पसंद आई तो उसे बदलने का ऑप्शन है. यहां हर जॉनर का कंटेंट उपलब्ध है. इसके साथ ही आजकल लोग थोड़ा भीड़-भाड़ से बचना चाहते हैं और हॉल की भीड़, शोर और सीट-क्वालिटी का असर भी पड़ता है.
गौरतलब है कि ओटीटी रिजनली लोगों को मनोरंजन से कनेक्ट करता है. जैसे 'लापता लेडीज' को डायरेक्टर ओटीटी पर रिलीज किया गया और वह हिट रही. यहां तक कि ऑस्कर तक चली गई. क्योंकि इस फिल्म की ऑडियंस रीच ज्यादा था. इसे कोई हाई क्लास के लोगों से नहीं बल्कि गांव, कस्बे के लोगों से रिस्पांस मिला था. इसकी कहानी से समाज का छोटा तबका खुद को जोड़ पाया. इसलिए कहना गलत नहीं होगा कि थिएटर के मुकाबले ओटीटी व्यापक है.
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