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Nishaanchi Movie Review: 8 चैप्टर में लिखी कहानी, अनुराग कश्यप से फिल्म में क्या हुई गलती?

Nishaanchi Movie Review: अनुराग कश्यप के डायरेक्शन में बनी फिल्म 'निशानची' रिलीज हो चुकी है. इस फिल्म को आपको देखना चाहिए या नहीं? ये फैसला लेने से पहले आपको ये रिव्यू जरूर पढ़ लेना चाहिए. ऐसा न हो कि बाद में आप पछताएं.

यहां पढ़ें 'निशानची' का रिव्यू. (Photo Credit- Instagram)

Nishaanchi Movie Review: (Ashwani Kumar) एक कमाल की कहानी, जो बेहतरीन परफॉरमेंस और लीक से हटकर ऐसे म्यूजिक से सजी है, जिसे सुनकर आपको 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' का वो फ्लेवर जुबान पर चढ़ जाता है, जिसने इंडियन सिनेमा की राह बदल दी थी. इन सबको मिलाकर, या यूं कहें कि जोड़कर, राइटर-डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने वो पैसेंजर ट्रेन बनाई है, जो 2 घंटे 54 मिनट बाद भी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंचती. 'निशानची' में अनुराग कश्यप हर टारगेट पर बिल्कुल सटीक निशाना लगाते-लगाते ये भूल गए कि उन्हें फाइनल भी खेलना है और फिल्म दूसरे पार्ट का ऐलान कर देती है.

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क्या है 8 चैप्टर की कहानी में?

3 घंटे से सिर्फ 6 मिनट कम की 'निशानची' की कहानी 2007 में कानपुर के एक बैंक डकैती से शुरू होती है, जहां बबलू निशानची उर्फ टोनी मंटेना, अपने भाई डबलू और लवर रिंकू के साथ अंजाम देने आया है. और यहां वो पुलिस के चक्कर में फंस गया. रिंकू और डबलू तो पुलिस से बच निकले, लेकिन लोकल गैंगस्टर अंबिका प्रसाद की ओर से बबलू निशानची की थाने में खातिरदारी हो रही है. दूसरी ओर डबलू, जो बबलू भैया से सिर्फ 10 मिनट छोटे हैं, वो उन्हीं की प्रेमिका रिंकू रंगीली से प्यार के सपने सजाए बैठे हैं. यहां से कहानी का फ्लैश बैक शुरू होता है, जिसमें पहला चैप्टर है- रंगीली रिंकू के इंतकाम का. दूसरा चैप्टर है- मां के सम्मान का, तीसरा चैप्टर है- पहलवान बाप के साथ दोस्त की गद्दारी का, चौथा चैप्टर है- बाप की मौत के बदले का, पांचवा चैप्टर है- शूटर मां की मोहब्बत का, छठा चैप्टर है- बबलू की गैंगस्टर फील वाली मोहब्बत का, सातवां चैप्टर है- भाइयों के बीच रिंकू की आग का, आठवां चैप्टर है- रिंकू के सच से सामना का… और इसके बाद पार्ट टू का ऐलान हो जाता है….

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अनुराग कश्यप ने फिल्म की लंबाई-चौड़ाई किया इग्नोर

ये 8 चैप्टर में लिखी कहानी, एक ही फिल्म का हिस्सा है, जिसे अनुराग कश्यप ने अपने पसंदीदा एक्टर्स के साथ ऐसे सीन्स में ढाला है कि आपको हर सीन मजेदार लगेगा… लेकिन बेहतरीन परफॉरमेंस के बीच में अनुराग कश्यप ने अपने हर कैरेक्टर को बस बहने ही दिया है, कट बोलना भूल गए. उससे भी बड़ी मुश्किल ये है कि एडिट टेबल पर बैठकर भी अनुराग हर सीन में डायलॉग्स, गाने, परफॉरमेंस में इतना खो गए कि सीन्स को जोड़ तो दिया, मगर फिल्म की लंबाई-चौड़ाई, अनुपात सबको इग्नोर कर दिया. नतीजा- 'निशानची' के पहले गाने- 'ये फिल्म देखो' से जो मूड सेट होता है, वो 'डियर कंट्री', 'कनपुरिया कंटाप', 'नींद भी तेरी' तक आते-आते लगता है कि एक्सपेरीमेंट तो कमाल के हैं, लेकिन पूरी फिल्म में ही इनते एक्सपेरिमेंट हो गए हैं कि आपको थियेटर की रिक्लाइनर चेयर भी धंसने लगती है.

फिल्म में भरे एक्सपेरीमेंटल गाने

बबलू-डबलू के पापा बने खरा सोना- विनीत कुमार सिंह और मम्मी मंजरी के उड़ती चिड़िया के पीछे वाले डायलॉग के बाद, विनीत कुमार की हंसी में अनुराग कश्यप ऐसा खो गए… कि पूरे 3 मिनट उसी सेक्वेंस को दे दिया, ऐसा 'निशानची' में एक बार नहीं, कई बार हुआ है. बबलू रिंकू के पीछे दीवानों सा घूम रहा है, बैकग्राउंड में गाना बज रहा है, ये गाना खत्म होता है… बबलू अब रिंकू को डांस करते हुए खिड़की से देख रहा है और दूसरा गाना शुरू हो जाता है. मतलब ये सिनेमैटिक सोशलिज्म है, जहां अनुराग ने देशभर के बेहतरीन सिंगर्स और बेहतरीन कंपोजर्स के साथ कमाल के एक्सपेरीमेंटल गाने इकट्ठा किए हैं और सारे के सारे पूरी फिल्म में भर दिए.

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एडिट के दौरान नहीं संभली फिल्म

अनुराग के साथ रंजन चंदेल और प्रसून मिश्रा ने स्टोरी और सीन्स तो कमाल के लिखे हैं, लेकिन स्क्रीनप्ले को उसकी रौ में बहने दिया है, बांधा ही नहीं. यहां गौर करने वाली बात ये है कि ये सीन्स, ये डायलॉग्स पसंद आते हैं, अच्छे लगते हैं…. लेकिन खत्म ही नहीं होते. 13 साल पहले 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के साथ जो फॉर्मेट रिवोल्यूशन था, वो अब 2025 में लूज मोशन लगने लगता है. अगर एडिट के दौरान फिल्म संभाल ली गई होती, तो इसका तजुर्बा बिल्कुल अलग होता.

कैसे है स्टार्स की परफॉरमेंस?

अपनी पहली ही फिल्म में बबलू और डबलू के डबल रोल वाले कैरेक्टर में ऐश्वर्य ठाकरे ने पूरा रंग जमा दिया है. एक पल के लिए भी अहसास नहीं होगा कि ये ऐश्वर्य की पहली फिल्म है. उनके लिए ये फिल्म एक बेहतरीन शो-रील है. वेदिका पिंटो को रंगीली रिंकू के किरदार में देखना-जैसे अनार के फटने जैसा फील है, जो ढेर सारे रंग बिखेरता है. मम्मी- मंजरी बनी मोनिका पवार ने अपनी परफॉरमेंस से चौंका दिया है. अंबिका प्रसाद बने कुमुद मिश्रा ने क्या कमाल काम किया है. देश प्रेमी अखाड़ी के पहलवान बने राजेश कुमार का काम दमदार है, और यूपी के दिवंगत नेता और एक्स चीफ मिनिस्टर- मुलायम सिंह की आवाज की टोन, उन्हें पकड़ाना स्पेशल हाईलाइट है. बबलू-डबलु के पापा के कैरेक्टर में विनीत कुमार सिंह- 'निशानची' के सरप्राइज हैं और अखाड़े में उनका रंग देखकर आपको अहसास होता है कि इस अगर के अंदर लावा बह रहा है. करप्ट पुलिस इंस्पेक्टर बने जिशान अयूब भी शानदार हैं. 'पंचायत' वाले दुर्गेश कुमार ने फिल्म की शुरुआत में ही माहौल बना दिया.

'निशानची'- एक बेहतरीन स्टोरी, और बेमिसाल परफॉर्मेंस वाली कमाल के एक्सपेरीमेंटल गानों से सजी वो फिल्म है, जो अनुराग कश्यप के ब्रिलिएंस की खोज के चक्कर में अपना स्टेशन भूल गई है. मगर इसके बावजूद इस फिल्म में सिनेमा है, जो लंबाई-चौड़ाई के बाद भी अंगड़ाई लेता है.

निशानची को 3 स्टार


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