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Nikita Roy Review: अंधविश्वास और हकीकत में फर्क समझाती है निकिता रॉय, देखने से पहले पढ़ें रिव्यू

Nikita Roy Review: सोनाक्षी सिन्हा, अर्जुन रामपाल और परेश रावल की हॉरर-ड्रामा फिल्म निकिता रॉय सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। इस फिल्म को देखने से पहले एक बार पढ़ लें रिव्यू।

निकिता रॉय का रिव्यू। Photo Credit- Social Media
Nikita Roy Review: बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा और परेश रावल की फिल्म 'निकिता रॉय' आज 1 सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। इस फिल्म में सोनाक्षी एक बार फिर अंधभक्ति और छलावा का पर्दाफाश करती हुई दिखाई दे रही हैं। वहीं परेश रावल निगेटिव रोल में नजर आ रहे हैं। जाहिर है कि हम सभी बचपन से अंधविश्वास की कहानियां सुनते आए हैं लेकिन कभी इन्हें टटोलने की कोशिश नहीं की। पुरानी बातों पर यकीन करते हुए हम इस अंधविश्वास पर यकीन करते चल रहे हैं। निकिता रॉय से सोनाक्षी सिन्हा ने इस अंधविश्वास पर से पर्दा उठाने का काम किया है। अगर आप इस फिल्म को देखने की कोशिश कर रहे हैं तो पहले एक बार रिव्यू जरूर पढ़ लें...

क्या है निकिता राॅय की कहानी?

फिल्म निकिता रॉय की कहानी निकिता (सोनाक्षी सिन्हा) से शुरू होती है, जो एक सक्सेसफुल राइटर है। इसके अलावा वह सुपरनैचुरल पावर और ढोंगी बाबाओं के खिलाफ मिशन चलाने का काम करती है। फिल्म में अर्जुन रामपाल भी हैं। एक दिन वह अपने कमरे में बैठकर काम कर रहे होते हैं। तभी उन्हें एहसास होता है कि कुछ अजीब सी चीज हो रही है। तभी निकिता की एंट्री होती है। कहानी नॉर्मल तरीके से आगे बढ़ती है लेकिन एक दिन अचानक से निकिता की लाइफ में भूचाल आ जाता है, जो उसे और उसकी सोच को बिल्कुल बदलकर रख देता है। अपनी उलझनों में घिरी निकिता रॉय की मुलाकात अमरदेव (परेश रावल) से होती है, जिसके बाद से शुरू होता है धर्म और धोखे का खेल... परेश रावल एक धार्मिक गुरु के रूप में फिल्म में नजर आए हैं, जो बाहर से शांत नेचर के नजर आते हैं लेकिन अंदर से उतने ही चतुर और चालाक हैं। कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, सही और गलत का फर्क मिटने लगता है। निकिता और अमरदेव का आमना-सामना आगे चलकर क्या मोड़ लेता है, ये फिल्म देखने के बाद आपको पता चलेगा। क्लाइमैक्स बेहतरीन है जो आपके लिए पैसा वसूल साबित होगा।

एक्टिंग

सोनाक्षी सिन्हा ने निकिता रॉय के किरदार को पूरी शिद्दत के साथ निभाने की कोशिश की है। लंबे वक्त के बाद किसी इंटेंस किरदार से उन्होंने वाहवाही लूटने वाला काम किया है। हालांकि कुछ हॉरर सीन्स में वह अपनी इंटेंसिटी खोती हुई दिखाई देती हैं लेकिन कुल मिलाकर अच्छा परफॉर्म किया है। परेश रावल हर बार की तरह अपने किरदार में बिल्कुल डूबे हुए दिखाई दिए हैं। अपने डायलॉग में छल का अंश छिपाने में वह कामयाब होते हुए दिखाई दिए हैं। अर्जुन रामपाल भी ठीक-ठाक लगे हैं। अगर उनका स्क्रीन प्ले और मजबूत होता तो वह दोनों स्टार्स को टक्कर दे सकता था। यह भी पढ़ें: पैपराजी कल्चर पर Sonakshi Sinha का भी फूटा गुस्सा, बोलीं- ‘समय आ गया है…’

डायरेक्शन

निकिता रॉय से पहली बार डायरेक्शन के क्षेत्र में उतरे कुश सिन्हा ने दिखा दिया है कि वह लंबी रेस के साथ मैदान में उतरे हैं। आपको पूरी फिल्म देखकर ये एहसास नहीं होगा कि डायरेक्शन के पीछे किसी डेब्यू डायरेक्टर का रोल है। कुल मिलाकर अच्छा काम किया है। साथ ही साथ उन्होंने दर्शकों को मैसेज दिया है कि लोग अक्सर किन चीजों पर आंख मूंदकर यकीन कर लेते हैं और छल में फंस जाते हैं। सिनेमेटोग्राफी और स्क्रीन प्ले बहुत कमाल का नहीं लगा लेकिन दर्शकों के मन में डर कायम करने के हिसाब से ठीक-ठाक साबित रहा है।

देखें या नहीं

अगर आपको अंधविश्वास और मिस्ट्री जैसे सब्जेक्ट पर बनी फिल्में देखना पसंद हैं तो निकिता रॉय को जरूर देखना चाहिए। छल और कपट से बचने के लिए ये फिल्म काफी मैसेज देती है। इसके अलावा फिल्म में हॉरर की डोज भी है।


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