Trial Period Review: इस ‘ट्रायल पीरियड’ के रिप्लेसमेंट की नहीं पड़ेगी ज़रूरत, राइटिंग-डायरेक्शन ने जीता दिल
Trial Period
Trial Period Review/Ashwini Kumar: ऑन लाइन वेबसाइट पोर्टल या टीवी पर टेली-शॉपिंग पर बिकने वाले सामानों के साथ एक ट्रायल पीरियड का ऑप्शन जुड़ता है, जिसमें अगर आप अपनी खरीददारी से संतुष्ट नहीं है, तो फिर आप निश्चित समय के अंदर सामान को बदलकर अपने पैसे वापस पा सकते हैं लेकिन रिश्तों में ऐसा नहीं होता, रिश्ते आपको अपनाते हैं और आप रिश्तों को अपनाते हैं पूरी ज़िंदगी के लिए। इसमें ट्रायल एंड रिप्लेस वाला फॉर्मुला लागू नहीं होता।
आर्डर किए जाएंगे 'पापा' (Trial Period Review)
जियो स्टूडियो की जियो सिनेमा पर स्ट्रीम हो रही फिल्म ‘ट्रायल पीरियड’ ऐसे ही आइडिया पर बेस्ड है, जिसे अलेया सेन ने कुंवर शिव सिंह और अक्षत त्रिवेदी के साथ मिलकर लिखा और डायरेक्ट किया है। ट्रायल पीरियड एक मासूम बच्चे रोमी के, बेहद मासूम सवाल से शुरु होता है कि पापा क्या असल में सुपरहीरो होते हैं ? रोमी का ये सवाल, पैरेंट्स डे पर अपने स्कूल बच्चों के बीच से शुरु होता है, क्योंकि उसने अब तक अपनी मां ऐना को ही सुपरहीरो के तौर पर जाना है। ऐना जो डिवोर्स्ड हैं, वो अपने 6 साल के बच्चे को समझाने की कोशिश करती है, कि वो ही एक दूसरे के साथी हैं। मगर रोमी को, अपने पड़ोसी और मां ऐना के मामा के टीवी शॉपिंग वाली फितरत से ख़्याल आता है कि क्यों ना सामान की तरह, एक पापा भी ऑर्डर किए जाएं, वो भी ट्रायल पीरियड पर।
बच्चे की जिद पर शुरु हुई कहानी
अब सुनने में ये आईडिया कितना ही अजीब क्यों ना लगे, लेकिन अलेया ने इसे एक मासूम बच्चे की उस ज़िद की तरह दिखाया है, जैसे आपके बच्चे किसी खिलौने के लिए ज़िद पकड़ लेते हैं, आप ना चाहते हुए भी उसे पूरा करते हैं।
ऐना और उसके मामा, एक प्लेसमेंट एजेंसी की मदद लेते हैं, जिसके ऑनर बेहद जुगाड़ू हैं, लेकिन अपने छोटे शहर से आए, अपने भतीजे प्रजापति द्विवेदी, जो इतिहास में पीएचडी कर चुका है, उसकी नौकरी नहीं लगवा पा रहे हैं। प्रजापति उर्फ़ पीडी, जो संस्कारी है, सीधा है, खाना अच्छा बनाता है, हिंदी अच्छी बोलता है और कोई भी काम करने में माहिर है, उसे प्लेसमेंट एजेंसी चीफ़ उसके चाचा, एक महीने के लिए... कॉन्ट्रैक्ट पर रोमी का ट्रायल पीरियड पापा बनाने के लिए तैयार करते हैं।
राइटिंग और डायरेक्शन ने जीता दिल
अब कहानी प्रेडिक्टबल है, यानि पीडी, ऐना के घर जाएगा... अगले 30 दिनों तक एक बोरिंग पापा की इमेज बनाएगा और कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म होने के बाद, रोमी के सिर पर चढ़ा पापा का भूत उतारकर वापस आ जाएगा। मगर फिल्मों के ट्विस्ट की तरह पीडी और रोमी के बीच नज़दीकियां बढ़ेंगी, ऐना और पीडी के बीच रोमांटिक लम्हें आएंगे, ऐना की फैमिली वाले ऐतराज़ करेंगे, और लास्ट में सब कुछ वैसा ही हो जाएगा, जैसा कि आपने अंदाज़ा लगाया। मगर इन सबके बावजूद, इस ट्रायल पीरियड में ऐसे लम्हें हैं, जो पूरी फिल्म के दौरान आपके दिल को छूते रहते हैं, चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट बनी रहती है। यही इस ट्रायल पीरियड की राइटिंग और डायरेक्शन की खासियत है। क्योंकि हर कहानी प्रेडक्टिबल नहीं होती, उसे सुनाया कैसे जाता है असल खूबी यही है, जो अलेया ने कर दिखाया है।
जबरदस्त है स्टार्स की कास्टिंग
ट्रायल पीरियड की दूसरी सबसे बड़ी खूबसूरती इसके कास्टिंग है, जैसे हर किरदार अपना-अपना सा लगे। ऐना के किरदार में जेनेलिया को देखकर आप दिल हार बैठेंगे। छोटे से बच्चे रोमी का सारा काम अकेले करना, ऑफिस भागना, रिश्तों को संभालना... जैसे एक सुपरहीरो मॉम हो। प्रजापति द्विवेदी बने मानव कौल को देखकर आप खुश हो जाएंगे, एक बेहतरीन एक्टर। 6 साल के रोमी के किरदार में मास्टर जिडैन ब्रैड की मासूमियत आपका दिल जीत लेगी। शक्ति कपूर और शीबा चढ्ढा का काम भी शानदार है। पीडी का चाचा बने गजराज राव को देखकर मज़ा आ जाता है।
3.5 स्टार।
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