जब मनमौजी Kishore Kumar ने टेबल पर लेटकर गाया गाना, यहां जानें ‘योडलिंग किंग’ के कुछ चुलबुले किस्से
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Kishore Kumar Death Anniversary: किशोर कुमार हिंदी सिनेमा के ऐसे गायक हैं जो कि आज के समय के गायकों की पूरी पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। हर दिल अजीज किशोर कुमार आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गानों ने लोगों के दिलो दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी है। सिंगिंग से लेकर एक्टिंग तक कल कला में वह माहिर थे। उनकी जिंदगी में कई यादगार उपलब्धियां और चुनौतियां और किस्से कहानी रहे हैं। कहते हैं कि किशोर कुमार जितने ही आवाज के धनी थे उतने ही उसूलों के भी पक्के थे। किशोर कुमार की जिंदगी में कई किस्से हैं, तो चलिए उनमें से कुछ किस्सों से आपको रूबरू करते हैं।
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मनमौजी थे किशोर
किशोर कुमार की जन्मभूमि खंडवा थी, इससे उनको बहुत ज्यादा लगाव था। कई बार तो ऐसा होता था कि किशोर कुमार शूटिंग छोड़कर अपने घर पहुंच जाते थे। किशोर कुमार की मनमौजी के कई किस्से मशहूर हैं। एक बार आशा भोसले ने बताया था कि फिल्म 'शराबी' के गाने 'इंतहा हो गई इंतजार की' को गाने से किशोर दा ने इनकार कर दिया था। हालांकि, बाद में उन्होंने शर्त रखा कि वह इसे एक शराबी की तरह ही लेटकर गाएंगे। फिर क्या था फटाफट से एक टेबल का जुगाड़ किया गया, और फिर उन्होंने लेटकर ही गाने को अपनी आवाज दी।
उसूलों के थे पक्के
किशोर कुमार के बारे में कहा जाता है कि वो अपने उसूलों के बेहद पक्के थे। जब तक उन्हें पैसे नहीं मिल जाते थे, तब तक वो काम नहीं करते थे। अगर उन्हें आधे पैसे मिलते थे तो वो काम भी आधा ही करते थे। कहते हैं कि एक फिल्म के दौरान जब डायरेक्टर ने उन्हें आधे पैसे दिए, तब उसके बदले में किशोर कुमार आधा मेकअप करके सेट पर पहुंच गए थे।
पहले ही हो जाता था आभास
किशोर कुमार के बारे में ये भी कहा जाता वो सिक्स्थ सेन्स के काफी धनी थे। उनको किसी भी चीज के बारे में पहले से ही आभास हो जाता था। कहा जाता है कि किशोर कुमार को अपनी मौत का पहले से ही आभास हो गया था। अपने जीवन की अंतिम घड़ी वह अपने परिवार के साथ बिताना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने परिवार के किसी भी सदस्य को घर से बाहर नहीं जाने दिया और अपने परिवार के बीच उन्होंने अपना दम तोड़ा था।
जब गाना कर दिया गया बैन
किशोर कुमार को लेकर एक किस्सा कुछ यूं है कि 1975 में देश में लगे आपातकाल के दौरान किशार दा को एक कार्यक्रम में शिरकत करने का मौका मिला था। इसके लिए उन्होंने मेहनताना मांगा तो आकाशवाणी और दूरदर्शन ने प्रतिबंधित कर दिया। 1987 में उन्होंने फिल्में छोड़कर खंडवा जाने का फैसला लिया। उनके होठों पर उन दिनों अक्सर एक बात रहती थी, ‘दूध-जलेबी खाएंगे, खंडवा में बस जाएंगे’ हालांकि ऐसा हो नहीं सका। 13 अक्टूबर 1987 को ही हार्ट अटैक के चलते उनका निधन हो गया था।
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