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Repo Rate Update: फिंगर क्रॉस्ड, अब से कुछ देर में RBI सुनाएगा फैसला, इस एक बात का है डर

Monetary Policy Committee: इस समय पूरे देश की निगाहें RBI पर टिकी हैं। सस्ते लोन की आस में लोग फिगर क्रॉस्ड किए बैठे हैं। यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट में कटौती करता है, तो लोन सस्ते हो सकते हैं और EMI के बोझ में कुछ कमी आ सकती है।

RBI Monetary Policy Meeting Repo Rate Reverse Repo Rate
RBI MPC Meet Results:  भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) आज रेपो रेट पर फैसला सुनाएगी। समिति की तीन दिवसीय बैठक आज समाप्त हो रही है। सुबह 10 बजे RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा बैठक में लिए गए फैसलों की जानकारी देंगे। इस दौरान, महंगाई और GDP का अनुमान भी जारी किया जाएगा। पूरे देश की निगाहें RBI के फैसले पर टिकी हैं। यदि रेपो रेट में कटौती होती है, तो लोन सस्ते हो सकते हैं और EMI के बोझ में भी कुछ कमी आ सकती है।

कितनी कटौती है संभव?

माना जा है कि नीतिगत ब्याज दरों में 25 आधार अंकों (बीपीएस) की कटौती हो सकती है, लेकिन एक डर भी है। रुपये की बिगड़ती सेहत सस्ते लोन की राह को मुश्किल कर सकती है। एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 87.58 पर आ गया है। बीते कुछ समय से इसमें लगातार कमजोरी देखने को मिली है। ऐसे में यह भी संभव है कि RBI रेपो रेट को 6.5% पर यथावत रखने का फैसला ले। अगर ऐसा होता है, तो सस्ते लोन का इंतजार और बढ़ जाएगा। यह भी पढ़ें - RBI MPC Meet: सस्ते लोन की पूरी होगी आस या बढ़ेगा इंतजार? पॉइंट्स में समझिए पूरी कहानी

रुपये की कमजोरी चिंता

इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर का मानना है कि वर्तमान स्थिति भले ही नीतिगत ब्याज दरों में कटौती के पक्ष में है, लेकिन रुपये में कमजोरी पॉलिसी रेट में कटौती को अप्रैल, 2025 तक टाल भी सकती है। इसी तरह, कुछ दूसरे एक्सपर्ट्स भी मानते हैं कि रुपये की कमजोरी कटौती की संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है। गौरतलब है कि लगातार 11 मौद्रिक नीति समिति बैठक में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं हुआ है। यह 6.5 प्रतिशत है।

2 बार कटौती का अनुमान

SBI के आर्थिक विभाग की रिसर्च रिपोर्ट में नीतिगत ब्याज दरों में कटौती का अनुमान जताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी के बाद अप्रैल में भी रेपो रेट में कटौती हो सकती है। इस तरह दो बार में रेपो रेट को कुल 0.75% कम किया जा सकता है। बता दें कि रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है। ऐसे में जब रेपो रेट में बढ़ोतरी होती है, तो बैंकों के लिए कर्ज महंगा हो जाता है और वो ग्राहकों के कर्ज को भी महंगा कर देते हैं. इसके उलट जब रेपो रेट में कटौती होती है, तो लोन सस्ते होने का रास्ता खुल जाता है।


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