National Saving Certificate vs Bank Fixed Deposit: निवेश में टैक्स कम करने के लिए ज्यादातर लोग नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट (NSC) और बैंक फिक्स्ड डिपॉसिट (FD) को प्रथामिकता देते हैं। इनमें न सिर्फ रिटर्न की गारंटी होती है बल्कि सेक्शन 80C के अंतर्गत टैक्स में भी भारी छूट मिलती है। हालांकि इसके लिए कम से कम 5 साल का निवेश करना जरूरी है। अब सवाल यह है कि NSC और FD में क्या अंतर होता है? दोनों में से क्या ज्यादा बेहतर है? आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में...
जनवरी से मार्च 2025 के बीच NSC ने 7.7% सालाना ब्याज दर दी है। वहीं रिपोर्ट्स के अनुसार FDs में 6.5% - 7.5% तक का ब्याज दर मिलता है। HDFC बैंक और ICICI बैंक FDs में 7% तक का ब्याज दर देता है। वहीं SBI और PNB जैसे बैंक 6.5%, DCB बैंक 8%, इंडस्लैंड बैंक और यस बैंक 7.25%, उत्कर्ष बैंक 7.50% तक का ब्याज दर देते हैं।
NSC और FD में TDS
बता दें कि NSC में निवेश के लिए टैक्स डिडक्शन एट सोर्स (TDS) की कोई आवश्यकता नहीं होती है। वहीं FDs में अगर सालाना ब्याज दर 40,000 रुपए (आम नागरिक) या 50,000 (वरिष्ठ नागरिक) से ज्यादा है, तो TDS देना अनिवार्य होगा। वहीं अगले वित्त वर्ष से यह लिमिट बढ़ा दी जाएगी। ऐसे में आम नागरिकों 50,000 से ज्यादा के ब्याज दर पर TDS देना होगा और वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह सीमा बढ़ाकर 1 लाख तक कर दी जाएगी।
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NSC और FD के टैक्स में छूट
टैक्स छूट की बात करें तो NSC और FD दोनों में ही सेक्शन 80C के अंतर्गत 1.5 लाख रुपए पर टैक्स लगता है। NSC में ब्याज दर पर टैक्स पड़ता है। पांच साल में निवेश की अवधि पूरी होने पर टैक्स कटता है। वहीं FD पूरी तरह से आयकर के अंतर्गत आती है। FDs पर TDS कटता है।
NSC और FD का लॉक इन पीरियड
NSC और FD का लॉक इन पीरियड अमूमन पांच साल का होता है। इससे पहले इन्हें नहीं निकाला जा सकता है। हालांकि मृत्यु या अदालत के निर्देश पर इसे मैच्योर (5 साल) से पहले निकाल सकते हैं। इसके अलावा NSC और FD में लोगों को कम से कम 5 साल के लिए निवेश करना पड़ता है।