घर के गमले में उगाएं काजू; मौका है फ्री में खाने का और अच्छा कमाने का
आज के महंगाई के दौर में हर आदमी की दो ही ख्वाहिश होती हैं, एक अच्छा कमाना और दूसरा अच्छा खाना। डॉक्टर्स भी सेहतमंद जिंदगी जीने के लिए काजू जैसे सूखे मेवे खाने की सलाह देते हैं। काजू ऐसा ड्राईफ्रूट है, जो हर इलाके में रहने वाले हर उम्र के लोग लगभग हर मौसम में खाना पसंद करते हैं। अब सवाल है तो इस बात का कि क्या सेहत का यह खजाना हर किसी की पहुंच में हो सकता है? इस बात का जवाब है हां। कृषि विज्ञान के क्षेत्र में हो रही तरक्की ने यह सब मुमकिन बना दिया है। जानकर हैरानी होगी कि आप अपने घर के गमले में काजू उगाकर न सिर्फ खुद फ्री में खा सकते हैं, बल्कि घर चलाने के लिए पैसे की कमी भी आपके पास नहीं रहेगी। आज के बिजनेस आइडिया में हम आपको इसकी हर बारीकी से रू-ब-रू करा रहे हैं।
20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान वाली जलवायु है उपयुक्त
सबसे पहले तो यह जानना जरूरी है कि काजू होता कहां है। परम्परागत खेती की बात करें तो काजू गर्म जलवायु की फसल है। इसे उगाने के लिए 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए। साथ ही सालभर में 600 से 4500 मिलिमीटर बारिश होती हो। हालांकि समुद्र तट से सटे लाल एवं लेटराइट मिट्टी वाले इलाके इसके सबसे ज्यादा उपयुक्त हैं, लेकिन कृषि वैज्ञानिकाें की मानें तो इसे किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है। कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार केरल, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में काजू बहुतायत में होता है। हालांकि अब झारखंड, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में भी इसकी खेती संभव हो चुकी है। दक्षिण एशियाई क्षेत्रों में जून और सितंबर के बीच इनका रोपण करना ज्यादा लाभकारी होता है।
कौन-कौन सी किस्म उगा सकते हैं आप
कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो काजू के पेड़ 13-14 मीटर ऊंचे होते हैं, लेकिन इसकी हाईब्रिड किस्म 6 मीटर लंबी है। राष्ट्रीय काजू अनुसंधान केंद्र (पुत्तूर) की तरफ से काजू की वेगुरला-4, उल्लाल-2, उल्लाल-4, बी.पी.पी.-1, बी.पी.पी.-2, टी.-40 नामक प्रमुख किस्में उगाने की सिफारिश की जाती है। लोग चाहें तो अपने घर गमले में भी काजू उगा सकते हैं। इसके लिए संकर नस्ल का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
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वैसे भी काजू की जड़ें कम ही फैलती हैं, इसलिए काजू का पौधा लगाते वक्त लगभग 2 से 3 फीट गहरे और उथले कुंड यानि गमले का उपयोग करें। खेत में तैयारी कर रहे हैं तो 60x 60 x 60 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे तैयार करके 15-20 दिन तक खुला छोड़ दें। इसके बाद 5 किलो कम्पोस्ट, 2 किलो रॉक फॉस्फेट या डीएपी के मिश्रण को गड्ढे की ऊपरी मिट्टी में मिलाकर भर दें। वैसे तो 7 से 8 मीटर की दूरी पर वर्गाकार प्लानिंग के साथ लगाया जाता है, लेकिन अगर थोड़ी और सघनता बढ़ाने पर सोचें तो पौधों की दूरी 5x 5 या 4 x 4 मीटर रखी जा सकती है।
किस मौसम में लगाएं पौध?
मिट्टी की जुताई भी कम से कम 3 बार की जानी चाहिए, जिससे कि मिट्टी में दूसरी झाड़ियों आदि की जड़ें न रहें और काजू के पौधे को पनपने के लिए उपयुक्त जगह मिल सके। यही प्रक्रिया गमले आदि में भी अपनाई जा सकती है। जहां तक पौध तैयार करने की बात है, मईसे जुलाई के महीनों में सॉफ्ट वुड ग्राफ्टिंग यानि कलम बनाई जा सकी है। इसके बाद इन्हें वर्षाकाल में लगाएं तो सबसे बेहतर रहेगा।
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पौधों के रखरखाव का सही तरीका
काजू के हर पौधे को सालभर में 10-15 किलो गोबर की खाद के साथ रासायनिक उर्वरक भी इस्तेमाल करने चाहिए। पहले साल में 300 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम रॉक फास्फेट, 70 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश दें। दूसरे साल में इनकी मात्रा दोगुणा तो तीसरे साल में यूरिया 1 किलो, रॉक फास्फेट 600 ग्राम और 200 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश को मई-जून और सितम्बर-अक्टूबर में आधा-आधा बांट दें। काजू में ‘टी मास्कीटो बग’ की समस्या होती है, ये कोपलों, मंजरों, फलों से रस चूस लेते हैं। इनसे निपटने के लिए कोंपलें आते वक्त मोनोक्रोटोफास (0.05 प्रतिशत) का पहला स्प्रे करें। फूल आने लगें तो कर्वेरिल (0.1 प्रतिशत) का दूसरा स्प्रे करें। इसके बाद जब फल आने लगे तो कार्वेरिल (0.1 प्रतिशत) का तीसरा स्प्रे करें। इसके अलावा पौधों को शुरुआत में एक अच्छा ढांचा देना होता है, वहीं फसल की तुड़ाई के बाद सूखी, रोग एवं कीट ग्रस्त शाखाओं को काटते रहें।
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उन्नत किस्मों में एक पेड़ से मिल जाता है करीब 20 किलो काजू
कृषि वैज्ञानिकों की राय है कि काजू का पूरा फल नहीं तोड़ा जाता। सिर्फ गिरे हुए मेवों को ही इकट्ठा करके धूप में सुखाने के बाद जूट के बोरों में भरकर ऊंची जगह पर रख दिया जाता है। तैयार होने के बाद हर पौधे से इस तरह पहले लगभग 8 किलो नट हर साल मिलता था, लेकिन अब विभिन्न उन्नत नस्लों में एक पेड़ से 20 किलो काजू भी मिल जाता है। ऐसे में अगर पूरा जोड़-तोड़ लगाया जाए तो एक हेक्टेयर में 10 टन काजू पैदा हो जाता है। बाद में इसकी प्रोसेसिंग पर भी थोड़ा-बहुत खर्च आता है। बाद में यह थोक में 400 से 800 रुपए किलो तो खुदरा बाजार में 1200 रुपए किलो तक बिकता है। ऐसे में अपना घर चलाने का यह अच्छा तरीका है।
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