हमास और हिज्बुल्लाह बहाना, तो फिर क्या है असली निशाना?
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Bharat Ek Soch: इजरायल-हमास के बीच पिछले तीन हफ्ते से भीषण जंग जारी है, जिसमें दोनों ओर के करीब 8700 लोग मारे जा चुके हैं। इजरायली सेना दक्षिणी लेबनान में भी एयर स्ट्राइक कर रही है...मतलब, युद्ध इजरायल और गाजा पट्टी से आगे बढ़ चुका है। इस युद्ध में दूसरी ताकतें भी खुलकर एंट्री ले चुकी हैं। इजरायल खुल कर कह रहा है कि हमास का समर्थन करने वाले ईरान और लेबनान के कट्टरपंथी संगठन हिजबुल्लाह को धरती से मिटा देंगे...वहीं, ईरान कह रहा है कि हमास के खिलाफ गाजा में हमले जारी रहे तो अमेरिका भी नहीं बच पाएगा।
युद्ध के 12वें दिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन इजरायल की राजधानी तेल अवीव गए थे...उनका कहना था कि इजरायल और यूक्रेन का अपने-अपने युद्धों में जीतना अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अहम है। मतलब, दोनों मोर्चों पर चल रहे युद्ध में बड़ा खिलाड़ी अमेरिका भी है। हमास–इजरायल जंग का अंजाम क्या होगा...इसे लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं, लेकिन किसी भी युद्ध की आड़ में स्वार्थ होता है। आर्थिक नफा-नुकसान होता है।
ऐसे में International Studies की Student होने के नाते जब मैं इजरायल-हमास युद्ध को देखने की कोशिश करें तो हर लेंस से अलग-अलग तस्वीर दिख रही है। भूमध्य सागर में मौजूद गैस का वो भंडार भी दिख रहा है...जिस पर कई देशों की बाज की तरह नजर है। इतिहास गवाह रहा है कि पिछले 100 साल में किस तरह दुनियाभर में मौजूद तेल और गैस भंडारों पर कब्जे के लिए तरह-तरह के तिकड़म आजमाए गए।
भीषण जंग का अगला पड़ाव लेबनान तो नहीं
किस तरह युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार करने में तेल-गैस ने बड़ी भूमिका निभाई है? अरब देशों के तेल भंडारों को इस्तेमाल कर किस तरह यूरोपीय और अमेरिकी देशों ने अपनी आर्थिक तरक्की की बुलंद कहानी तैयार की...ऐसे में सवाल ये भी उठ रहा है कि पिछले 611 दिनों से यूक्रेन में जंग लड़ रहे रूस की नजरें भी कहीं वहां के प्राकृतिक गैस भंडार पर तो नहीं है? कहीं, इजरायल-हमास के बीच भीषण जंग का अगला पड़ाव लेबनान तो नहीं है...क्योंकि, भूमध्य सागर में मौजूद प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार पर इजरायल-लेबनान दोनों का दावा है? ऐसे में आज के स्पेशल शो युद्ध का ‘तेल-गैस’ अध्याय में समझने की कोशिश करेंगे कि क्या दुनिया में ज्यादातर जंग की वजह एनर्जी सोर्सेज पर कब्जे वाली सोच है?
आज की तारीख में जमीनी युद्ध में किसी भी पक्ष का पलड़ा मजबूत करने में टैंक बड़ा Role play करते हैं...लेकिन, टैंकों को आगे बढ़ाने के लिए किस चीज की सबसे पहले जरूरत होती है ? आपका जवाब होगा पेट्रोल-डीजल ? सेना को एक-जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए जिन भारी-भरकम गाड़ियों का इस्तेमाल होता है - उन गाड़ियों के पहियों को रफ्तार देने के लिए किस चीज की जरूरत होती है– आपका जवाब होगा पेट्रोल-डीजल ... युद्ध में किसी पक्ष का पाला मजबूत और दूसरे का हल्का करने में अहम भूमिका निभाने वाले फाइटर जेट को उड़ाने के लिए ईंधन की जरूरत पड़ती है । समुद्री लड़ाई में बड़े युद्धपोत मोर्चा संभालते हैं...उन्हें भी चलाने के लिए तेल की जरूरत पड़ती है।
तेल एक तरह से ड्राइविंग सीट पर है
युद्ध में कौन किस पर भारी पड़ेगा...इसका फैसला करने में तेल एक तरह से ड्राइविंग सीट पर है...उसी तरह किसी भी छोटे-बड़े मुल्क के औद्योगिक विकास को रफ्तार देने में पेट्रोल-डीजल और प्राकृतिक गैस प्राणवायु का काम करते हैं । ऐसे में दुनिया भर में ईंधन के नए-नए ठिकानों की खोज और फिर उन पर कब्जे के लिए कभी कूटनीतिक दांव-पेंच तो कभी युद्ध का रास्ता आजमाया जाता रहा है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि अगर इजरायल-हमास में जंग जारी रही तो दुनिया की एनर्जी सप्लाई चेन का प्रभावित होना तय है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का भी कहना है कि सऊदी अरब, रूस के तेल उत्पादन में कटौती और चीन से मजबूत मांग के बीच जंग निश्चित रूप से तेल बाजार के लिए अच्छी खबर नहीं है। आशंका ये भी जताई जा रही है कि कहीं भूमध्य सागर में प्राकृतिक गैस क्षेत्र को लेकर जो विवाद चल रहा था ... उसमें कहीं समुद्री सीमा फिर से परिभाषित करने की स्थिति पैदा न हो जाए ? ऐसे में सबसे पहले ये समझने की कोशिश करते हैं कि इजरायल-हमास युद्ध लंबा खींचा तो इससे दुनिया की तेल-गैस सप्लाई चेन किस हद तक प्रभावित हो सकती है?
इजरायल और लेबनान के बीच भूमध्य सागर में मौजूद तेल और प्राकृतिक गैस के अकूत भंडारों को लेकर रहा झगड़ा है। दोनों देश दावा करते रहे हैं कि प्राकृतिक गैस वाला हिस्सा उनकी समुद्री सीमा का हिस्सा है..ऐसे में वर्षों चली दावेदारी के बाद पिछले साल अमेरिका की मध्यस्थता में लेबनान-इजरायल के बीच समुद्री सीमा का फैसला हुआ था। लेबनान के हिस्से आए ब्लॉक 9 यानी काना-सिडोन गैस क्षेत्र में ड्रिलिंग का काम शुरू हो चुका है। पूर्वी भूमध्य सागर में मौजूद गैस का ये भंडार तुर्किए, मिस्र, इजराइल, सीरिया, ग्रीस, साइप्रस और लेबनान के बीच मौजूद है। गैस के इस भंडार पर कई देशों की नजर है । मन ही मन इजरायल चाहता रहा है कि वह इस क्षेत्र से गैस निकाले और यूरोप के बाजार में बेचे। इसी तरह यूक्रेन की जमीन के नीचे भी प्राकृतिक गैस का बड़ा भंडार मौजूद होने की भविष्यवाणी की गई है... माना जाता है कि यूक्रेन में यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस भंडार है। ऐसे में सवाल उठता है कि कहीं रूस की मंशा मन ही मन यूक्रेन में मौजूद Unexplored Natural Gas को हासिल करने की तो नहीं थी। क्योंकि, यूक्रेन में खारकीव, पोलटावा, कीव और ब्लैक सी क्षेत्र में सबसे ज्यादा Natural Gas के भंडार हैं...रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप के कई देशों के सामने बड़ा एनर्जी संकट पैदा हो गया था...इसकी वजह ये रही कि ज्यादातर यूरोपीय देश अपने घर को गर्म रखने से लेकर रोशनी तक के लिए रूस की गैस पर निर्भर थे।
दुनिया को बदलने में तेल ने बहुत बड़ी भूमिका
रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरुआती दौर में कई बार तेल-गैस की सप्लाई रोकने जैसी धमकियां भी आईं...यूरोपीय देश अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए दूसरे विकल्पों की ओर देखने लगे। तेल सप्लाई ने रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित किया। इतिहास गवाह रहा है कि दुनिया को बदलने में तेल ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है...जिस देश ने तेल की अहमियत को जितनी जल्दी समझा, उसने उतनी ही तेजी से तरक्की की । वैसे तो तेल का इतिहास करीब 200 साल पुराना है...साल 1829 में रूस के बाकू में तेल मिला... वहां कारखाना लगा, लेकिन रूसियों को इस बेशकीमती चीज की अहमियत समझ में नहीं आई ... वहीं, अमेरिका ने तेल की अहमियत को बहुत अच्छी तरह समझा। भारत में साल 1857 में जब कंपनी राज से आजादी के लिए संग्राम चल रहा था, उस दौर में अमेरिका में तेल क्रांति आकार ले रही थी । वहां के पेंसिल्वेनिया में प्रांत में तेल के लिए ड्रिलिंग हुई ...तेल कारोबार में कई दिग्गजों ने हाथ आजमाया-लेकिन, जॉन विलियम डी. रॉकफेलर ने इस धंधे में सबको पीछे छोड़ दिया । रूस को तेल की वैल्यू बाद में समझ आई... फ्रांस के एक कारोबारी थे- रोथशिल्ड। जो यहूदी थे... तब रूस के लोग यहूदियों को देखते ही नाक-मुंह सिकोड़ने लगते थे। लेकिन, तेल के लिए रूस ने रोथशिल्ड का दोनों हाथ खोलकर स्वागत किया....तो साल 1917 की रूस की क्रांति की बड़ी वजहों में से एक तेल भी था..क्योंकि, बाकू-बाटुम के तेल कुओं में काम करने वाले मजदूरों के शोषण के खिलाफ आवाज व्लादिमीर लेनिन ने बुलंद की । जोसेफ स्टालिन का भी तेल युद्ध से गहरा नाता रहा..प्रथम विश्वयुद्ध के बाद महाशक्तियों ने उन क्षेत्रों की ओर खासतौर से फोकस किया... जहां की जमीन के नीचे तेल का अकूत भंडार दबा पड़ा था।
शक्ति संतुलन को कई बार बदला
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनिया का शक्ति समीकरण पूरी तरह बदल गया। यूरोपीय देश आर्थिक और सैन्य रूप से बहुत कमजोर पड़ चुके थे और अमेरिका सबसे ताकतवर बन चुका था...वहीं, दूसरी बड़ी ताकत था – USSR...पूरी दुनिया अमेरिका और रूस के बीच जारी Cold War में दो हिस्सों में तेजी से बंटती जा रही थी। अमेरिका की नजर अरब वर्ल्ड के देशों पर थी। अमेरिका के पास तेल निकालने की तकनीक थी..बाजार था। वहीं, अरब देशों की जमीन के नीचे दबा तेल का विशाल भंडार था ... ऐसे में अमेरिका ने सऊदी अरब को डॉलर में तेल का कारोबार करने के लिए तैयार कर लिया और धीरे-धीरे इस क्षेत्र के दूसरे देशों में भी घुसने लगा। अमेरिका ने ऐसा खेल किया कि ईरान वॉशिंगटन के करीब पहुंच गया... लेकिन, तेल और डॉलर की चमक की वजह से ईरान के समाज में गरीब-अमीर के बीच चौड़ी खाई पैदा हो गई... जिससे ईरान में साल 1979 में इस्लामिक क्रांति हुई। इसका असर पड़ोसी देशों पर भी पड़ा...इतिहास गवाह रहा है कि तेल कुओं पर कब्जे के लिए इराक और कुवैत के बीच जंग हुई...ये इराक के तेल कुओं से होने वाली कमाई ही थी -जिससे ISIS जैसे खूंखार आतंकी संगठन को वर्षों दाना-पानी मिला। तेल ने दुनिया के शक्ति संतुलन को कई बार बदला है...इस पर कब्जे की चाह ने कई बार दुनिया को युद्ध की आग में झोंका है?
तेल और गैस पर कब्जे की भी मंशा
दुनिया के इतिहास को पिछले 100 साल में कई बार रक्तरंजित करने में तेल की बड़ी भूमिका रही है...भले ही ग्लोब पर कई युद्धों का ट्रिगर प्वाइंट कुछ और बताया जाता रहा हो... लेकिन, इसके पीछे एक मंशा तेल और गैस पर कब्जे की भी रही है। अमेरिका समेत पश्चिमी देशों की तरक्की में तेल और प्राकृतिक गैस इंजन की भूमिका में रहा है। ऐसे में पिछले कुछ वर्षों में ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राकृतिक गैस और तेल के दूसरे विकल्पों की ओर बहुत गंभीरता से विचार हो रहा है। लेकिन, अभी बड़ा संकट ये है कि अगर इजरायल-हमास युद्ध लंबा खिंचा और ईरान भी इस युद्ध में कूद गया... तो दुनिया के बड़े हिस्से में तेल-गैस की सप्लाई प्रभावित होनी तय है । पहले से ही आर्थिक सुस्ती की छाया से गुजर रहे दुनिया के ज्यादातर देशों को तेल और गैस के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है..ऐसे में लोगों की मुश्किलें और बढ़नी तय हैं। दूसरी ओर, अगर इजरायल के पड़ोसी लेबनान तक भी युद्ध की लपटें पहुंच गईं...तो ये भी हो सकता है कि भूमध्य सागर में प्राकृतिक गैस के लिए ड्रिलिंग का जो काम चल रहा है...उस पर भी असर पड़े और नए सिरे से भूमध्य सागर में मौजूद गैस के खजाने पर दावेदारी की नई कहानी तैयार हो?
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