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क्या पाकिस्तान को अमेरिका और चीन के हाथों गिरवी रख चुके हैं जनरल मुनीर? डर के साये में जी रही PAK की आबादी

भारत को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का रवैया पूरी दुनिया के सामने हैं . चीन एक ओर भारत के साथ कारोबार करता है. दूसरी ओर, भारत के दुश्मन चीन को हथियारों की सप्लाई करता है . युक्रेन के साथ युद्ध लड़ रहा रूस एक ओर भारत को कच्चा तेल बेचता है.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर कहा करते थे, 'दोस्त बदले जा सकते हैं लेकिन, पड़ोसी नहीं '. भारत के पश्चिम में पाकिस्तान नाम का एक ऐसा पड़ोसी मुल्क है, जिसके बारे में कोई भी भविष्यवाणी करना मुश्किल है जहां कभी भी और कुछ भी हो सकता है. 25 करोड़ से अधिक आबादी वाले पाकिस्तान के लोग भी बहुत टेंशन में हैं, उन्हें डर सता रहा है कि कहीं उनके मुल्क के फिर से कई टुकड़े न हो जाएं. भले ही आज की तारीख में पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार है, जिसके मुखिया शहबाज शरीफ हैं. वहीं, राष्ट्रपति की कुर्सी पर आसिफ अली जरदारी हैं . किसी भी विवाद की स्थिति में फैसला सुनाने के लिए अदालतें हैं, जिसके टॉप पर सुप्रीम कोर्ट है . लेकिन, पाकिस्तान में असली ताकत जनरल आसिम मुनीर के पास है. जो अगले पांच साल के लिए चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज है .

पाकिस्तान के संविधान में संशोधन करवा कर खुद को जीवन भर के लिए फील्ड मार्शल भी बनवा लिया . इतना ही नहीं, जनरल मुनीर ने ऐसा इंतजाम भी कर लिया है, जिससे उनके ऊपर कोई केस-मुकदमा नहीं चल सके . ये सब पाकिस्तान में ही संभव है . आपके जेहन में सवाल उठ रहा होगा कि पाकिस्तान में जो कुछ चल रहा है – उससे हमें क्या लेना-देना ? जनरल मुनीर जो कुछ कर रहे हैं – उसका हिसाब-किताब पाकिस्तान जाने, हम क्यों टेंशन लें? लेकिन, जब पड़ोस में आग लगती है – तो लपटे पड़ोसी के घर तक भी पहुंचती हैं . ऐसे में अस्थिर पाकिस्तान भारत के लिए भी टेंशन की एक वजह बन सकता है . जनरल मुनीर जिस तरह पाकिस्तान को चलाना चाहते हैं – वो साल 1971 के जनरल याह्या खान मॉडल से बहुत हद तक मेल खाता है. जिसका नतीजा रहा – पाकिस्तान के दो टुकड़े, जिसका नतीजा रहा ढाका में पाकिस्तानी आर्मी के 93 हजार फौजियों का सरेंडर. अब सवाल उठता है कि क्या आज की तारीख में पाकिस्तान उसी ओर बढ़ रहा है ? क्या जनरल मुनीर पाकिस्तान को अमेरिका और चीन के हाथों गिरवी रख चुके हैं ? वो अमेरिका के साथ हैं या फिर चाइना के साथ ? अगर अमेरिका और चीन में सीधा टकराव हुआ तो पाकिस्तान किसके साथ खड़ा होगा ? अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप आखिर जनरल मुनीर पर इतने मेहरबान क्यों हैं और अगर चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग उखड़े तो पाकिस्तान क्या करेगा ?

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पाकिस्तान के लोग परेशान हैं . उन्हें साल 1971 की याद आ रही है . 16 दिसंबर को ढाका के रेसकोर्स मैदान में पाकिस्तानी आर्मी के अफसर और जवानों के सरेंडर की तस्वीरें याद आ रही हैं. जिसे युद्ध इतिहास में दुनिया का सबसे बड़ा सरेंडर कहा गया है . उस जनरल याह्या खान की याद आ रही है – जिसने बंगाली राष्ट्रवाद को कुचलने के लिए तब के पूर्वी पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश में इतना जुल्म किया कि लोग त्राहिमाम करने लगे . अपने ही मुल्क की सेना के अत्याचार से बचने के लिए सरहद पार कर यानि भारत में शरण लेने लगे. तब भारतीय फौज ने पूर्वी पाकिस्तान में दाखिल होने के फैसला किया . वो साल 1971 का था. 3 दिसंबर से युद्ध का ऐलान हो चुका था और 13 दिसंबर की शाम तक भारतीय फौज ने ढाका को चारों ओर से घेर लिया था. पूर्वी पाकिस्तान में हिल्ली, बोगरा, रंगपुर, सिलहट, अटग्राम, मेमन सिंह, जमालपुर और तंगेल जैसे अहम ठिकानों पर भारतीय सेना का कब्जा हो चुका था . भारतीय सैनिक आगे तो बढ़ रहे थे – लेकिन, आगे क्या होगा ? इसका उन्हें अंदाजा नहीं था . इसी तरह पूर्वी पाकिस्तान में मौजूद पाकिस्तान आर्मी के अफसर और जवान लड़ तो रहे थे . लेकिन, उन्हें भी अंदाजा नहीं था कि लड़ाई का अंजाम क्या होगा ? इस लड़ाई में अमेरिका पाकिस्तान की कितनी मदद कर पाएगा – इसे लेकर भी पूर्वी पाकिस्तान में लड़ रहे फौजियों के भीतर शक-शुबहा बना हुआ था . आज की तारीख में भले ही पाकिस्तान किसी दूसरे मुल्क की फौज के साथ जंग नहीं लड़ रहा है . लेकिन, एक बड़ी अंदरूनी जंग पाकिस्तान के भीतर ही चल रही है . 55 साल पहले बंगाली राष्ट्रवाद को दबाने की कोशिश ने पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए . अब जनरल मुनीर के सामने सिंधी राष्ट्रवाद, बलूच राष्ट्रवाद और पश्तून राष्ट्रवाद बड़ी चुनौती के रूप में खड़े हैं . ऐसे में पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में उभर रहे आक्रोश और आंदोलन को दबाने के लिए जनरल मुनीर मुल्क में कई छोटो-छोटे प्रांत बनाने की स्क्रिप्ट आगे बढ़ाते दिख रहे हैं . अभी जो ब्लू प्रिंट सामने आ रहा है, उसमें पाकिस्तान को 12 प्रांतों में बांटने की तैयारी चल रही है यानी 8 नए प्रांत बनाने की योजना. आज का पाकिस्तान चार प्रांतों में बंटा है .

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आबादी के हिसाब से पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में 53%, सिंध में 23%, खैबर पख्तूनख्वा में 17%, बलूचिस्तान में 6% लोग रहते हैं . लंबे समय से सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान से अलग होने के लिए आंदोलन कर रहे हैं . ठीक उसी तरह जिस तरह से 1971 से पहले पूर्वी पाकिस्तान के लोग भी पश्चिमी पाकिस्तान के वर्चस्व के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे . पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को अपनी बोली, पहचान और परंपरा खतरे में दिख रही थी .

पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर पाकिस्तान में इतने अधिक ताकतवर बन चुके हैं कि उन्होंने खुद को ही प्रमोट कर फील्ड मार्शल बना लिया. अगले पांच वर्षों के लिए खुद को चीफ ऑफ डिफेंस फोर्स नियुक्त करा लिया. यानी पाकिस्तानी सेना की एक तरह से सभी शक्तियां उनकी मुट्ठी में आ चुकी है . उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती मुल्क के लोगों के असंतोष से जूझने की है . ऐसे में पाकिस्तान के चारों प्रांतों को 12 हिस्सों में बांटने की स्क्रिप्ट आगे बढ़ाई जा रही है .

पाकिस्तान के संचार मंत्री अब्दुल अलीम खान कह चुके हैं कि छोटे-छोटे प्रांत बनना अब तय है . उनकी दलील है कि छोटे प्रांत से प्राशसनिक नियंत्रण मजबूत होगा और लोगों को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी . ऐसे में पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में तीन-तीन प्रांत बनाने की बात सामने आ रही है . मतलब, पाकिस्तान में 4 की जगह 12 प्रांत दिख सकते हैं . इस बंटवारे की स्क्रिप्ट का असली मकसद सिंध, बलूच और पश्तून राष्ट्रवाद को कमजोर करना है . वहां की राजनीतिक ताकतों को बांटना है .

कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के 12 छोटे प्रांतों में बांटने की योजना के पीछे दिमाग जनरल मुनीर का है . जिसका शहबाज सरकार में शामिल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी भी विरोध कर रही है. बिलावल भुट्टो साफ-साफ कह चुके हैं कि सिंध का बंटावारा किसी कीमत पर मंजूर नहीं . बलूच राष्ट्रवादी दल भी इसे बांटो और राज करो नीति का नाम दे रहे हैं . छोटे-छोटे प्रांत बनने से बड़े दलों की राजनीतिक ताकत कमजोर पड़ सकती है . अभी सिंध को भुट्टो परिवार का गढ़ माना जाता है. पंजाब में शरीफ परिवार का सिक्का चलता है . खैबर-पख्तूनख्वा में इमरान खान की पार्टी का दबदबा है. जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को पाकिस्तानी आर्मी मुल्क के लिए खतरा बता चुकी है . ऐसे में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के कार्यकर्ता लगातार सड़कों पर हैं .

खैबर-पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में पाकिस्तान का सिर्फ नाम का कंट्रोल है . जहां विद्रोहियों से निपटना पाकिस्तानी सेना के लिए लोहे के चने चबाने जैसा रहा है. इसलिए, माना जा रहा है कि जनरल मुनीर बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वा को ध्यान में रखकर खासतौर से नए प्रांत बनाना चाहते हैं. जिससे वहां सेना और सरकार की पकड़ और मजबूत की जा सके. लेकिन, जिस तरह छोटे प्रांतों की स्क्रिप्ट को आगे बढ़ाया जा रहा है- उससे पाकिस्तान में हालात सुधने की जगह बिगड़ने के चांस अधिक बनते दिख रहे हैं .

पाकिस्तान के 25 करोड़ से अधिक लोगों को डर सता रहा है कि जनरल मुनीर कहीं कोई ऐसा बड़ा फैसला न कर लें, जो उनके मुल्क के टुकड़े-टुकड़े होने की बड़ी वजह बन जाए. ये किसी से छिपा नहीं है कि जनरल मुनीर ने हाल में जिस तरह खुद को पाकिस्तान में सर्वशक्तिमान बनाया. उसमें वहां की सिविलियन गवर्नमेंट की कोई भूमिका नहीं रही . ये सब पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम शहबाज शरीफ की मर्जी के खिलाफ हुआ . रावलपिंडी में बैठने वाले आर्मी के टॉप जनरल भी नहीं चाहते थे कि आसिम मुनीर इतने ताकतवर बन जाएं . लेकिन, ऐसा हुआ . क्योंकि, जनरल मुनीर की पीठ पर अमेरिका का हाथ है . उन्हें पाकिस्तान में सर्वशक्तिमान बनाने में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का बड़ा हाथ है . ठीक उसी तरह जैसा 1971 में जनरल याह्या खान को ताकतवर बनाने में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन का हाथ था . राष्ट्रपति ट्रंप पहले ही जनरल मुनीर को अपना पसंदीदा फील्ड मार्शल बता चुके हैं. दरअसल, जनरल मुनीर ने अमेरिकी की रेयर अर्थ मिनरल्स की जरूरत पूरा करने के लिए बलूचिस्तान में एंट्री का रास्ता साफ करने में बड़ी भूमिका निभाई है . अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष से हाल में पाकिस्तान को 1.2 बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद देने का फैसला लिया. हालांकि, कई शर्तों भी थोंपी हैं. लेकिन, अमेरिका और पाकिस्तान की नजदीकियां लगातार बढ़ रही हैं . हाल में अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए 686 मिलियन डॉलर का एफ-16 अपग्रेड पैकेज मंजूर किया है, जिसमें नए एवियोनिक्स, मिसाइल्स और लॉजिस्टिक सपोर्ट शामिल है.

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की पाकिस्तान पर मेहरबानियां लगातार जारी हैं. हाल में ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान को F-16 लड़ाकू विमानों के आधुनिकीकरण के लिए बड़े पैकेज का ऐलान किया है. आतंकियों को पालने-पोसने वाले पाकिस्तान की एयरफोर्स को मजबूत करने का काम खुल्मम-खुल्ला अमेरिका कर रहा है . दुनिया के अर्थतंत्र के समझने वाले ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से किसी भी मुल्क को बिना अमेरिकी रजामंदी के आर्थिक मदद मिलनी मुश्किल है . पाकिस्तान को IMF से 7 बिलयन डॉलर के बेलआउट को सशर्त हरी झंडी मिल चुकी है. अब सवाल उठता है कि आखिर बिजनेस माइंडेड अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप पाकिस्तान का इतना समर्थन क्यों कर रहे हैं? पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल मुनीर की पीठ पर अमेरिका का हाथ क्यों है?

दरअसल, 4 साल पहले अमेरिकी फौज अफगानिस्ता से निकल चुकी है. राष्ट्रपति ट्रंप के दूसरी पारी में दुनिया का शक्ति संतुलन तेजी से बदला है . राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ डिप्लोमेसी की वजह से अमेरिका और चीन आमने-सामने हैं . 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने जिस तरह चौधरी बनने की कोशिश की, उसे भारत ने खारिज कर दिया. भारत को लेकर राष्ट्रपति ट्रंप का रवैया किसी से छिपा नहीं है . बदले समीकरणों में अमेरिका को दक्षिण एशिया में एक ऐसे सहयोगी की जरूरत है - जिसकी जमीन से शक्ति संतुलन के लिए गोटियां चली जा सकें .

जनरल मुनीर की मदद से अमेरिका पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक मिलिट्री बेस की तरह कर सकता है. पाकिस्तान जानता है कि फिलहाल अमेरिका को सबसे ज्यादा जरूरत रेयर अर्थ मिनरल्स की है - जिसे अमेरिका को देने से चीन ने मना कर दिया है . ऐसे में जनरल मुनीर ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को बलूचिस्तान में रेयर अर्थ मिनरल्स के बड़े भंडार का सपना दिखा दिया है . ये सच है कि बलूचिस्तान की जमीन बेशकीमती खनिजों से भरी हुई है. पूरे बलूचिस्तान में 16 हजार से अधिक खदान हैं-जिनमें 80 मिनिरल्स का भंडार है . लेकिन, एक सवाल ये भी है कि अमेरिका को जिस तरह के रेयर अर्थ मिनरल्स की जरूरत है? क्या वो बलूचिस्तान की जमीन के नीचे मौजूद हैं ? इतना ही नहीं, क्या बलूचिस्तान में मौजूद रेयर अर्थ मिनिरल्स पर कब्जे के लिए अमेरिका और चीन आमने-सामने नहीं आएंगे ?

जनरल मुनीर अच्छी तरह जानते हैं कि अमेरिका और चीन के बीच क्या चल रहा है ? चाइना को रोकने के लिए राष्ट्रपति ट्रंप किस हद तक जा सरते हैं? ऐसे में अमेरिका और पाकिस्तान के हुक्मरानों के बीच भीतरखाने ऐसी डील चल रही है - जिसमें
एक ओर मुल्क की बेहतरी की बातें हो रही हैं . दूसरी ओर एक-दूसरे को निजी फायदा पहुंचाने की सोच भी भीतरखाने आगे बढ़ रही है .

जनरल मुनीर ने जिस तरह अमेरिका में लॉबिंग की है . उससे राष्ट्रपति ट्रंप को अपने मुल्क के लिए पाकिस्तान से रेयर अर्थ मिनरल्स मिलता दिख रहा है . अफगानिस्तान और ईरान को टाइट करने लिए पाकिस्तान की जमीन दिख रही है . चीन और भारत के साथ शक्ति संतुलन का मौका दिख रहा है . इतना ही नहीं निजी तौर पर पाकिस्तान की जमीन से ट्रंप परिवार को अपना क्रिप्टो कारोबार बढ़ाने में मदद भी दिख रही है . दूसरी ओर, जनरल मुनीर को अपने प्यारे पाकिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों से आर्थिक मदद और अमेरिका जैसे सहयोगी का साथ दिख रहा है. जनरल मनीर अच्छी तरह जानते हैं कि पाकिस्तानी आर्मी के भीतर भी अमेरिका की अच्छी पैठ है. बिना अमेरिका के सहयोग के वो ज्यादा दिनों तक ताकतवर नहीं बने रह सकते हैं . पाकिस्तान के आर्मी जनरलों में एक अद्भुत गुण होता है . उन्हें एक साथ दो नावों की सवारी में भी महारत होती है . जनरल मुनीर एक ओर अमेरिका को साध रहे हैं और दूसरी ओर चाइना को . दोनों महाशक्तियों के टकराव का पूरा फायदा चीन उठा रहा है . जनरल मुनीर के देश में चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के रूप में 60 बिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट चल रहा है . पिछले कुछ वर्षों से पाकिस्तान ने सबसे ज्यादा हथियार चाइना से खरीदे हैं . स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट यानी सिपरी के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में चीन ने पाकिस्तान के 81% हथियारों की सप्लाई की है . अब एक और शख्स का जिक्र करना जरूरी है – जो फिलहाल पाकिस्तान की जेल में बंद है. जो बीजिंग और इस्लामाबाद के बीच रिश्ता मजबूत करने की कोशिश कर रहा था . अमेरिका के खिलाफ मोर्चा खोले हुए था. मैं इमरान खान की बात कर रही हूं . जनरल मुनीर से इमरान खान की अदावत किसी से छिपी नहीं है . साल 1971 में तब शेख मुजीब-उर-रहमान को जनरल याह्या खान ने जेल में डाल दिया था. अब इमरान खान जेल में बंद हैं. दुनिया में जिस तरह से सत्ता समीकरण बदल रहे हैं–उसमें कभी भी अमेरिका और चीन आमने-सामने आ सकते हैं . ऐसे में सवाल उठता है कि अगर जनरल मुनीर को राष्ट्रपति ट्रंप और राष्ट्रपति जिनपिंग में से किसी एक को चुनना पड़े तो क्या करेंगे ?

भले ही अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से ट्रेड वार चल रहा हो. भले ही राष्ट्रपति ट्रंप की दूसरी पारी में वाशिंगटन और बीजिंग के बीच टैरिफ वार खतरनाक मोड ले चुका हो. भले ही रूस और चीन की दोस्ती अमेरिका को खटक रही हो . लेकिन, पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है - जिसकी अमेरिका-चीन दोनों से नजदीकियां हैं . आर्थिक कंगाली झेल रहे पाकिस्तान पर अगर अमेरिका की मदद से डॉलरों की बरसात हो रही है.तो चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट CPEC भी पाकिस्तान में चल रहा है . पाकिस्तानी आर्मी के तरकश में मौजूद हर तरह के छोटे-बड़े Made in China हथियार मौजूद हैं . ऐसे में सवाल उठता है कि अमेरिका और चीन के बीच सीधी टक्कर की स्थिति में पाकिस्तान किसके साथ खड़ा होगा ?

पाकिस्तान में सेना का सिस्टम हमेशा से मजबूत रहा है . लोगों द्वारा चुनी गई सरकारों को सेना किस तरह बेदखल करती है या कठपुतली बनाकर छोड़ देती है. ये भी किसी से छिपा नहीं है .चाहे पाकिस्तान में वो जनरल अयूब खान का दौर रहा हो या फिर जनरल याह्या खान का. चाहे जनरल जिया-उल-हक का रहा हो या फिर जनरल परवेज मुशर्रफ का. पाकिस्तानी जनरल अमेरिका के चहेते रहे हैं . इस कड़ी में पाकिस्तान में इतिहास बन चुके सैन्य तानाशाहों से भी दो कदम आगे जनरल आसिम मुनीर निकलते दिख रहे हैं .

भीतरखाने जनरल मुनीर चाहेंगे कि पाकिस्तान की जमीन पर कम-से-कम अमेरिका और चीन आमने-सामने न आए, लेकिन, वो ये जरूर चाहेंगे कि दूसरे मुल्कों के बीच टकराव में अमेरिका और चीन के बीच तनातनी इस कदर रहे - जिससे पाकिस्तान को डॉलर और हथियारों दोनों महाशक्तियों से मिलता रहे. पाकिस्तान एक बार फिर बड़े राजनीतिक और सैन्य संकट के मुहाने पर खड़ा है, जिसमें फील्ड मार्शल मुनीर अफगानिस्तान को धमकी देते हुए कह चुके हैं कि काबुल या तो पाकिस्तान को चुन ले या फिर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को .

एक कहावत है - 'भई गति सांप छछूंदर केरी' . मतलब, जनरल मुनीर के लिए अमेरिका को छोड़ने में भी नुकसान है और चाइना को भी . कूटनीति में रिश्ते नफा-नुकसान के आधार पर तय होते हैं . मान लीजिए अगर ताइवान के मुद्दे पर अमेरिका और चीन आमने-सामने आते हैं . तो क्या होगा ? ऐसे में मेरी कूटनीतिक समझ कहती है कि पाकिस्तान चाइना के साथ खड़ा होगा. लेकिन, ईरान और अफगानिस्तान के मुद्दे पर अगर चीन-अमेरिका के बीच टकराव होता है…तो जनरल मुनीर के लिए पाला चुनना बहुत मुश्किल होगा . ऐसे में पाकिस्तान अपने फायदे के हिसाब से वाशिंगटन डीसी और बीजिंग दोनों के साथ सौदेबाजी की स्क्रिप्ट पर आगे बढ़ सकता है . पाकिस्तान अच्छी तरह जानता है कि दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को ऊपर-नीचे करने में उसकी जमीन सामरिक रूप से कितनी अहम है . ऐसे में बारूद के ढेर पर बैठे पाकिस्तान और उसके साइड इफेक्ट्स को लेकर कूटनीतिज्ञ अपने-अपने हिसाब से अनुमान लगा रहे हैं. अब सवाल उठता है कि भारत क्या करे ? साल 1971 में भारत ने एक ऐसी कूटनीतिक राह चुनी, जिसमें रूस मजबूती से दिल्ली के साथ खड़ा रहा . चीन एक तरह से चुप रहा . अमेरिका जैसी महाशक्ति के हर दांव को भारत ने नाराम करते हुए न सिर्फ पाकिस्तान को बुरी तरह हराया. बल्कि आजाद मुल्क के रूप में बांग्लादेश वजूद में आया. 2025 का कैलेंडर पलटने से पहले कूटनीतिज्ञों के सामने सबसे बड़ी उलझन यही है कि आखिर दिल्ली का जिगरी दौस्त कौन है ? क्या मेल-मुलाकात के दौरान जो केमेस्ट्री दिखती है–वो किसी संकट के समय भी उसी तरह की दिखेगी ?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत ने जिस तरह ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया और पाकिस्तान में बैठे आतंकी कारखानों को निशाना बनाया. उसके बाद पूरी दुनिया देखा पाकिस्तान के तरकश में हथियार कहां से आए ? चीन से पाकिस्तान को किस तरह के हथियार मिले हैं? ये सभी समझ में आया की आतंक के खिलाफ जंग लड़ने की बात करने वाली दुनिया की ताकतों की कथनी और करनी में कितना अंतर है ? हाल में रूस के राष्ट्रपति पुतिन भारत आए. प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनकी बेहतर केमेस्ट्री दिखी . लेकिन, एक सवाल ये भी है कि आज की तारीख में अगर रूस को भारत और चीन में से किसी एक को चुनना होगा, तो राष्ट्रपति पुतिन क्या करेंगे?

भारत और अमेरिका के बीच एक ओर ट्रेड डील चल रही है . हाल ही में राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी के बीच वैश्विक रणनीतिक साझेदारी पर बात हुई, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या भारत के खिलाफ आतंकियों को पालने-पोसने वाले पाकिस्तान को अमेरिका मदद देना बंद कर देगा? क्या राष्ट्रपति ट्रंप फील्ड मार्शल मुनीर से कहेंगे कि भारत के खिलाफ आतंक का खेल बंद कीजिए ? यूरोप भी अपनी सहूलियत के हिसाब से पाला चुनता रहता है . मुस्लिम वर्ल्ड भी नए समीकरणों की ओर तेजी से बढ़ रहा है. बहुध्रुवीय दुनिया में खुद को ताकतवर बनाने की नई रेस जारी है . जिसमें सभी अपनी सहूलियत और जरूरतों के हिसाब से रिश्ता जोड़ और तोड़ रहे हैं. ऐसे में दोस्त के दुश्मन और दुश्मन के दोस्त बनने में ज्यादा देर नहीं लग रहा है .

ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान के फील्ड मार्शल मनीर की समझ में एक बात अच्छी तरह आ गईं कि उनकी सेना कितनी पानी में है ? भारत के साथ सीधा टकराव का अंजाम क्या हो सकता है? ऐसे में अब इसके चांस अधिक हैं कि जनरल मुनीर भारत के खिलाफ आतंकियों को पालने-पोसने के खेल को नए सिरे से आगे बढ़ाए. बहुत हद तक ये भी संभव है कि टेरर के एक ऐसे मॉड्यूल की स्क्रिप्ट पर काम हो-जिसमें सरहद पार का कनेक्शन साबित करना मुश्किल हो . जिसका जवाब भारत सर्जिकल स्ट्राइक, एयरस्ट्राइक या ऑपरेशन सिंदूर की तरह दे .तब साफ होगा कि दिल्ली के साथ कौन चट्टान की तरह खड़ा है. कौन महाशक्तियों के इशारे पर पाला बदलता है और कौन तटस्थ रहता है? कूटनीति से आदर्शवाद बहुत पीछे छूट चुका है. आर्थिक नफा-नुकसान ड्राइविंग सीट पर है . उसी को केंद्र में रखते हुए कूटनीतिक रिश्ते बन-बिगड़ रहे हैं .

भारत को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का रवैया पूरी दुनिया के सामने हैं . चीन एक ओर भारत के साथ कारोबार करता है. दूसरी ओर, भारत के दुश्मन चीन को हथियारों की सप्लाई करता है . युक्रेन के साथ युद्ध लड़ रहा रूस एक ओर भारत को कच्चा तेल बेचता है. भारतीय सेना आज भी रूसी हथियारों पर भरोसा करती है . रूस के राष्ट्रपति पुतिन हाल में भारत आए…मेल-मुलाकात की तस्वीरें टीवी के जरिए पूरी दुनिया ने देखी . लेकिन, कल की तारीख में अगर पाकिस्तान की किसी हिमाकत का जवाब भारतीय फौज ने ऑपरेशन सिंदूर 2.0 के रूप में दिया. पाकिस्तान के साथ चीन मजबूती से खड़ा रहा तो क्या रूस उसी गर्मजोशी के साथ भारत के साथ खड़ा रहेगा? जैसा 1971 में रूस खड़ा था . शायद नहीं . पाकिस्तान के जनरल मुनीर एक ऐसे रास्ते आगे बढ़ रहे हैं – जिसमें पाकिस्तान के कई टुकड़ों में बंटने का ग्रह-गोचर बन रहे हैं . पाकिस्तान के लोग पहले से ही आर्थिक तंगी और असंतोष की आग में जल रहे हैं. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लोगों का सेना, सत्ता और सिस्टम तीनों में वर्चस्व है.

इसलिए सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में आजादी के लिए आंदोलन चल रहा है. पीओके के लोग भी पाकिस्तानी आर्मी के जुल्म के खिलाफ कई बार आवाज बुलंद कर चुके हैं . ऐसे में अगर जनरल मुनीर अपनी सेना को ठीक उसी तरह आदेश देते हैं जैसा 55 साल पहले जनरल याह्या खान ने किया. तो क्या होगा? पाकिस्तान के लोग भी अपनी जान बचाने के लिए सरहद पार करेंगे. शरण के लिए पड़ोसी मुल्कों की ओर देखेंगे . ऐसे में न्यूक्लियर पावर पाकिस्तान के कई हिस्सों में टूट सकता है. ऐसे में ये भी संभव है कि पाकिस्तान के कुछ हिस्सों पर चीन अपनी कठपुतली सरकार बनाए. कुछ हिस्सों पर अमेरिका के इशारे पर सत्ता चले . कुछ हिस्सों पर तालिबान के प्रभाव वाली हुकूमत चले और कुछ हिस्सों पर ईरान के इशारे पर सत्ता समीकरण में बने-बिगड़े . पाकिस्तान के भविष्य को लेकर वहां के 25 करोड़ लोग बहुत चितिंत हैं. वहीं, भारत के लोग ये सोच रहे हैं कि एक अच्छे खासे मुल्क को किस तरह वहां के सेना के जनरलों ने अपने निजी फायदे के लिए बर्बाद कर दिया . मुनीर का मतलब होता है उज्जवल-चमकादार लेकिन, यक्ष प्रश्न यही है कि जनरल मुनीर पाकिस्तान को उजाले की ओर ले जा रहे हैं या अंधेरे की ओर धकेल रहे हैं?


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