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Bharat Ek Soch: जब इंसानों का सभी काम AI और रोबोट करने लगेंगे तो कैसी होगी दुनिया की अर्थव्यवस्था?

अमेरिका से लेकर चीन तक हर तरह के ह्यूमनॉइड रोबोट को बनाने का काम तूफानी रफ्तार से जारी है .अर्थशास्त्रियों की सोच है कि इंसान की तुलना में ह्यूमनॉइड रोबोट बहुत सस्ते हैं ।ऐसे AI रोबोट्स से इंसान से कई गुना अधिक काम लिया जा सकता है और जोखिम वाले क्षेत्रों यानी खदान के भीतर भेजने से लेकर मैनहोल में सफाई तक जैसा काम आसानी से कराया जा सकता है ।

दुनिया के दिग्गज टेक बिजनेस टायकून एलन मस्क ने एक नई बहस छेड़ दी है.हाल में उन्होंने एक इंटरव्यू में दावा किया कि अगले 10–20 वर्षों में AI और रोबोटिक्स इतना आगे बढ़ जाएंगे कि इंसानों के लिए काम करना जरूरी नहीं रहेगा .मतलब, इंसान के सामने दफ्तर जाने की टेंशन नहीं रहेगी. बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के काम में हाड़-मांस के इंसान की जगह लोहे और AI Algorithm से चलने वाले रोबोट काम करेंगे.गाड़ियां चलाने के लिए ड्राइवर की जरूरत नहीं होगी-क्योंकि ड्राइवर लेस गाड़ियां बाजार में मौजूद हैं .आज की तारीख में मैन्युफैक्चरिंग से लेकर सर्विस सेक्टर तक में जनरेटिव AI और रोबोट्स के मेल से हर सेक्टर में काम-काज को ऑटोमेट करने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है .भविष्यवाणी की जा रही है कि पूरी दुनिया अगले 15-20 वर्षों में बदल जाएगी .अब मेरे मन में सवाल उठ रहा है कि AI और ऑटोमेशन से दुनिया की अर्थव्यवस्था कितनी बदलेगी ?

https://www.youtube.com/live/DqK7DbVkQB4

AI First वाली दुनिया में असली करेंसी क्या होगी ?

हाड़-मांस के इंसान का एक अहम काम होता है – अर्थोपार्जन यानी कमाई करना. जिससे वो अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करता है .जिसमें वो अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाता है.जिसमें वो हमेशा व्यस्त रहता है .अब सवाल उठता है कि जब किसी इंसान के सामने अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए काम करना वैकल्पिक होगा – तो फिर इंसान करेगा क्या ? जब इंसानों का सभी काम AI और रोबोट करने लगेंगे – तो अर्थव्यवस्था कैसी होगी ? Global Economic Order में मौजूदा करेंसी की वैल्यू रहेगी या ये भी पूरी तरह खत्म हो जाएगी ? क्या शेयर बाजार में इंसानों की जगह एआई बॉट्स ट्रेडिंग करेंगे ? AI First वाली दुनिया में असली करेंसी क्या होगी ? दुनिया में किसी भी मुल्क के पास महाशक्ति बनने के लिए किस चीज की जरूरत होगी ? एल्गोरिदम हमारी जिंदगी, हमारी अर्थव्यवस्था और तौर-तरीकों को किस हद तक प्रभावित करेगा ? आज ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे – अपने खास कार्यक्रम में बदल जाएगा दुनिया का बही-खाता ?

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बदल जाएगा दुनिया का बही-खाता?

जरा सोचिए.भारत जब अपनी आजादी की 100वीं वर्षगांठ मना रहा होगा.तब दुनिया-जहान कैसा होगा ? फैक्ट्रियों का वर्क-कल्चर कैसा होगा ? दफ्तरों में किस तरह के कर्मचारी काम करते दिखेंगे ? दफ्तरों में चाय-कॉफी लाने से लेकर असिस्टेंट का रोल कौन निभा रहा होगा ? ऐसे कर्मचारियों की तनख्वाह पर कितना खर्च होगा ? सड़क बनाने से लेकर बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन तक का काम किस तरह से होगा? किचन में खाना-बनाने से लेकर घर की साफ-सफाई की जिम्मेदारी किसके ऊपर होगी ? क्या गाड़ी चलाने के लिए ड्राइवर की जरूरत पड़ेगी ? भविष्यवाणी की जा रही है – आज की तारीख में जो काम इंसान कर रहा है .उसमें से ज्यादातर काम मशीनों को जिम्मे होगा ? दफ्तर से लेकर कारखानों तक में हर जगह ऐसे ह्यूमनॉइड रोबोट मोर्चे पर काम करते दिख सकते हैं – जो किसी मुश्किल स्थिति में इंसानों की तरह फैसला लेने में सक्षम होंगे.जनरेटिव एआई से लैस रोबोट बिना थके काम कर सकेंगे।इंसान की तुलना में कई गुना ज्यादा काम करेंगे .ऐसे में सबसे पहले समझते हैं कि इंसानों के कौन-कौन से काम ह्यूमनॉइड रोबोट करते दिख सकते हैं .

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AI टीचर की लागत करीब 25 हजार रुपये

लखनऊ के एक रेस्टोरेंट में दो साल पहले दो रोबोट को इंसानों की जगह वेटर की ड्यूटी पर लगाया गया.रोबोट वेटर ठीक उसी तरह काम कर रहे थे, जैसे कोई इंसान वेटर अपने ग्राहकों की पसंद-नापसंद का ध्यान रखता है .अब यूपी के बुलंदशहर की इस तस्वीर को देखिए.17 साल के आदित्य ने AI रोबोट टीचर बना दिया.Large Language Model यानी LLM चिपसेट पर तैयार की गई ये AI टीचर छठी से 12वीं क्लास के छात्रों के सवालों का जवाब देने में सक्षम है.LLM तकनीक से दुनिया की बड़ी कंपनियां अपने चैटबॉट्स और रोबोट्स तैयार करती हैं.इस AI टीचर की लागत करीब 25 हजार रुपये है।

ह्यूमनॉइड रोबोट को तेजी से अपनाने में जुटीं कंपनियां

ह्यूमनॉइड रोबोट तेजी से उन सभी क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ने लगे हैं -जहां कल तक सिर्फ इंसान काम करते दिखते थे.ऐसे में अगले कुछ वर्षों में दफ्तरों के भीतर इंसान कम और रोबोट अधिक दिखें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए .दुनिया में सस्ता से सस्ता प्रोडक्ट बनाने की होड़ लगी है .कम समय में अधिक प्रोडक्शन भी बड़ी चुनौती है .ऐसे में कंपनियां ह्यूमनॉइड रोबोट को तेजी से अपनाने में जुटी हैं.मैन्युफैक्चरिंग से लेकर सर्विस सेक्टर तक में, बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन से लेकर घरेलू कामकाज तक में AI रोबोट के बढ़ने के ग्रह-संयोग बन चुके हैं ।

सस्ते ह्यूमनॉइड रोबोट बनाने में जुटा चीन

चीन की कई कंपनियां ऐसे सस्ते ह्यूमनॉइड रोबोट पर भी तेजी से काम कर रही हैं- जो अपनी घरेलू जरूरतों से हिसाब से काम कर सकें .ऐसे रोबोट्स में यूजर यानी उपयोगकर्ता के व्यवहार और जरूरतों से जुड़ा कुछ घंटों का डाटा फिट कर दिया जाए, जिससे जनरेटिव एआई से लैस रोबोट ठीक उसी तरह फैसला ले और काम करे -जैसा कोई इंसान हालात के मुताबिक फैसला लेते हुए काम करता है ।
जिस रफ्तार से पूरी दुनिया में बेहतरीन AI रोबोट तैयार करने का काम हो रहा है-उससे आने वाले वर्षों में फैक्ट्री, वेयरहाउस, कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में ज्यादातर काम ह्यूमनॉइड रोबोट करते दिखेंगे।अकाउंटिंग, लीगल डॉक्यूमेंट ड्राफ्टिंग, कोडिंग, कस्टमर सपोर्ट, ट्रांसलेशन, ग्राफिक्स डिजाइनिंग, एनिमेशन जैसे काम का 75 फीसदी से अधिक हिस्सा रोबोट करते दिख सकते हैं .

श्रम आधारित नौकरियों के खत्म होने के आसार

पर्सनलाइज्ड AI ट्यूटर के रोल में भी ह्यूमनॉइड रोबोट का बड़े पैमाने पर दिखना तय है .अगले दो दशकों से भी कम समय में घरों में साफ-सफाई, खाना बनाने से लेकर खेती तक सब कुछ रोबोट्स करते दिख सकते हैं.ह्यूमनॉइड रोबोट इंसानों की तरह दिखेंगे.बातचीत करेंगे .भावनाओं को समझेंगे और हालात के मुताबिक फैसला लेंगे .ऐसे में माना जा रहा है कि ये तकनीक का नया दौर है - जिससे मजदूरी और श्रम आधारित नौकरियों की जरूरत करीब-करीब खत्म हो जाएगी ।

हादसों को अंजाम देतीं सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियां

आने वाले वर्षों में पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव दिखना तय है.बाजार से लेकर सड़कों तक की तस्वीर बदलनी तय है .हाल में मेरी नजर एक खबर पर पड़ी .सैन फ्रांसिस्को की एक टनल में दो सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियां कभी लेन बदलकर तो कभी जिगजैग करती चल रही थीं.इसे बेतरतीब या आक्रामक ड्राइविंग कहा जा सकता है .इसमें ट्रैफिक नियम भी टूट रहे थे और सड़क पर बड़े हादसे का भी डर था .दरअसल, सेल्फ ड्राइविंग कारों का गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार चौंकाने वाला था.ये तो एल्गोरिदम पर चलती हैं .

सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियों की जिम्मेदारी कौन लेगा?

एक स्टडी के मुताबिक, पिछले 5 वर्षों में सेल्फ ड्राइविंग गाड़ियों से एक्सिडेंट के करीब 4 हजार केस दर्ज हुए, जिसमें 80 से अधिक लोगों की जान गई .इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? इसके लिए दोषी किसे ठहराया जाएगा ? जरा सोचिए . अभी तो मशीनों में इंसानों जैसी सोचने-समझने और निर्णय लेने का शुरुआत हुई है .अगर ह्यूमनॉइड रोबोट भी आपस में कंपटीशन करने लगे .एक-दूसरे को निपटाने लगे.तो क्या होगा? मॉर्गन स्टेनली की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2050 तक ह्यूमनॉइड रोबोट्स 6 करोड़ 20 लाख से अधिक नौकरियां करते दिख सकते हैं..जिसे अभी हाड़-मांस के इंसान कर रहे हैं.इसी तरह एक और स्टडी कहती है कि AI Robots वैश्विक स्तर पर 30 करोड़ से अधिक नौकरियों को प्रभावित तक सकते हैं–जिसमें से ज्यादातर व्हाइट कॉलर जॉब हो सकती है.ऐसे में आने-वाले वर्षों में मशीन का लेबर और लीडर दोनों भूमिका में दिखना तय है .ऐसे में ये समझना भी जरूरी है कि भविष्य में Global Economic Order कैसा होगा और किस तरह काम करता दिख सकता है?

टेस्ला के ह्यूमनॉइड रोबोट की कीमत 18 से 27 लाख रुपये के बीच

आज की तारीख में टेस्ला के Optimus ह्यूमनॉइड रोबोट की कीमत 20 से 30 हजार डॉलर यानी 18 से 27 लाख रुपये के बीच है .वहीं, चीन हर तरह के ह्यूमनॉइड रोबोट बना रहा है - जिसकी कीमत 5 लाख से 25 लाख के बीच है .एक स्टडी के मुताबिक, 2050 तक पूरी दुनिया में 30 करोड़ से एक अरब तक ह्यूमनॉइड रोबोट काम करते दिख सकते हैं .बैंक ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2060 तक दुनिया भर में ह्यूमनॉइड रोबोट की संख्या तीन अरब पहुंच सकती है.तब दुनिया की आबादी 10 अरब से अधिक होने का अनुमान है। मतलब, हर तीन इंसान पर एक रोबोट इस कायनात में तरह- तरह का किरदार निभाता दिख सकता है।

रोबोट को हर महीने सैलरी देने की चिंता नहीं

दुनिया में एक नई वैश्विक व्यवस्था आकार ले चुकी होगी.जिसमें एक बार निवेश के बाद कंपनियों के सामने ह्यूमनॉइड रोबोट को हर महीने सैलरी देने की चिंता नहीं होगी - लेकिन, उनके बेहतर रखरखाव के लिए भारी-भरकम बजट निकालना होगा .AI ह्यूमनॉइड रोबोट मैनेजर के सामने इंसानों की तरह छुट्टी की अर्जी लेकर तो नहीं खड़े होंगे . लेकिन, तकनीक में बदलावों के हिसाब से लगातार अपडेट और अपग्रेड करने की मजबूरी होगी.ऐसा सुरक्षा तंत्र बनाने की हमेशा टेंशन रहेगी जिससे ह्यूमनॉइड रोबोट के एल्गोरिदम में छेड़छाड़ न हो सके।

10 वर्षों में आधी हो जाएगी ह्यूमनॉइड रोबोट की कीमत

एआई एक्सपर्ट और अर्थशास्त्रियों की सोच है कि अगले 5 से 10 वर्षों में ह्यूमनॉइड रोबोट की कीमत आधी हो जाएगी .ऐसे में कंपनियां अपने नफा-नुकसान का हिसाब-किताब ह्यूमनॉइड रोबोट के इस्तेमाल के आधार पर लगाएंगी. जनरेटिव एआई तकनीक इतनी विकसित हो जाएगी कि इंसान और रोबोट के काम में फर्क करना मुश्किल हो जाएगा .इंसानों के जिम्मे सिर्फ Ethics और Creativity रह जाएगी.दूसरे सभी काम इंसानों के निर्देशन में ह्यूमनॉइड रोबोट कई गुना तेजी से और कम खर्चे में करने में सक्षम होंगे।

डिजिटल करेंसी में लेन-देन करती दिखेगी दुनिया

टेक टायकून एलन मस्क की दलील है कि यदि रोबोटिक्स और AI इसी रफ्तार से आगे बढ़ते रहे . तो ऐसी अर्थव्यवस्था आ सकती है, जहां मनी यानी रुपया, डॉलर, यूरो वगैरह का महत्व खत्म हो जाएगा और संसाधनों की कोई कमी नहीं होगी? ऐसे में कोई हैरानी नहीं होगी कि आज की तारीख में जिस करेंसी के दम पर दुनिया का पूरा अर्थशास्त्र चल रहा है-उसका समीकरण अगले कुछ वर्षों में पूरी तरह बदल जाएगा .दुनिया में आर्थिक ताकत का पैमाना जिस GDP को माना जाता है - वो कल की तारीख में पूरी तरह से बदल जाए ?
अगले कुछ वर्षों में AI बैंकिंग से लेकर लेन-देन तक के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव की ओर बढ़ रहा है .पारंपरिक करेंसी की जगह डिजिटल करेंसी में दुनिया लेन-देन करती दिख सकती है-जिसमें क्रिप्टो और ब्लॉकचेन ड्राइविंग सीट पर दिख सकते हैं .AI के दौर में सिर्फ उसी के कामयाब होने के चांस हैं-जो जितनी तेजी से तकनीक को अपना ले और अपनी क्षमता से हिसाब से उसका फायदा उठा सके ।

वक्त के साथ कैसे बदल रहा भारत का बैंकिंग सिस्टम

जेन जी को शायद पता नहीं होगा कि 1980 के दशक में भारत में बैंकिंग सिस्टम किस तरह काम करता था .अगर किसी व्यक्ति को बैंक में पैसा जमा करने या निकालने जाना होता था.तो पूरा दिन लग जाता था .बैंक की लंबी लाइन में खड़ा होगा.जमा करने या पैसा निकालने के लिए पर्ची भरना पड़ता था .बैंक कर्मचारी लेजर और सैंपल दस्तखत को रिकॉर्ड से निकालेगा.पर्ची से मिलान करेगा .एक लंबी मैन्युअल प्रक्रिया के बाद पैसा निकालने की प्रक्रिया पूरी होती थी .साल 1987 में भारत में पहला ATM लगा और आज की तारीख में देशभर में ढाई लाख से अधिक ATM मशीने हैं.जहां से कभी भी कैश निकाला जा सकता है .जिस काम में पूरा दिन लगता था – वो मिनटों में पूरा हो जाता है .एटीएम में बैंक का कोई कर्मचारी नहीं होता.सिर्फ सुरक्षा के लिए गार्ड होता है .

पूरी दुनिया में लेन-देन का तौर-तरीका बदला

इसी तरह स्मार्टफोन पर UPI यानी यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस के जरिए कुछ सेकेंड में लेन-देन का काम हो जाता है.लोग पूरा खाता अपने स्मार्टफोन में लेकर चल रहे हैं .पूरा बैंकिंग सिस्टम बदल चुका है .ह्यूमन इंटरवेंशन दिनों-दिन कम होता जा रहा है .पूरी दुनिया में लेन-देन का तौर-तरीका बदल रहा है .ऐसे में जरा सोचिए. अगले 20 वर्षों में रुपया हो या डॉलर, यूरो हो या पाउंड, रूबल हो या युआन. इनकी भविष्य में वैल्यू क्या रह जाएगी ? क्या आज हमारे हाथों में जो करेंसी दिख रही है – वो कल की तारीख में बेकार हो जाएगी ? क्या क्रिप्टो ग्लोबल करेंसी बन जाएगा? दुनिया में सभी लेनदेन ब्लॉकचेन में होगा? एक और सवाल दुनिया के सामने है कि क्या भविष्य में शेयर मार्केट ट्रेडिंग को इंसान की जगह एआई बॉट्स और एल्गोरिदम प्रभावित करेंगे?

जब 26 मिनट में एक कंपनी की पूंजी हो गई आधी

इसी मंगलवार को अमेरिकी शेयर बाजार में कुछ ऐसा हुआ -जिसने पूरी दुनिया को दंग कर दिया..क्रिप्टो माइनर अमेरिकन बिटकॉइन कॉर्प के शेयरों ने 26 मिनट के भीतर निवेशकों की 51% यानी आधी से अधिक पूंजी डुबो दी . मार्केट खुलते ही एक मिनट के अंदर अमेरिकन बिटकॉइन कॉर्प के शेयर 33% टूटे और आधे घंटे से भी कम समय में निवेशकों की पूंजी आधी से भी कम हो गई. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके परिवार की क्रिप्टो में दिलचस्पी किसी से छिपी नहीं है.इसके बाद भी अमेरिका के क्रिप्टो बाजार में खलबली है.इस गिरावट की वजह पर हर एंगल से विश्लेषण जारी है .लेकिन, सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या क्रिप्टो बाजार और शेयर ट्रेडिंग को भी एल्गोरिदम और AI बॉट्स प्रभावित कर रहे हैं ?

शेयर बाजार में उथल-पुथल के पहले से ज्यादा चांस

शेयर बाजार में उथल-पुथल और अनिश्चितता अब पहले से अधिक होने के चांस है .शेयर बाजार में बार-बार हैरान करने वाली तेजी और गिरावट दोनों ही देखने को मिलेंगे .क्योंकि, अब AI शेयर ट्रेडिंग बॉट्स मैदान हैं - ये ऐसे सॉफ्टवेयर हैं जो एआई और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल कर स्टॉक मार्केट में ट्रेड करते हैं.सेकेंडों में बड़े डेटा का विश्लेषण करते हैं.ट्रेडिंग पैटर्न की पहचान करते हैं.इंसानी भावनाओं को भी समझते हैं.उस हिसाब से रणनीति बनाते हैं और बिना एक सेकंड की देरी के खरीद या बिक्री का फैसला लेते हैं . AI बॉट्स 24 घंटे बिना रूके-बिना थके काम करते हैं . साथ ही अपनी रणनीति की बैकटेस्टिंग भी करते हैं.ऐसे में एल्गोरिदम और AI बॉट्स आने वाले दिनों में शेयर बाजार में खरीद-ब्रिकी को बहुत हद तक प्रभावित करते दिख सकते हैं ।

क्रिप्टो निवेश को आगे आए मिडिल क्लास निवेशक

एक स्टडी के मुताबिक, दुनिया में वित्तीय कारोबार का 60 से 70 फीसदी हिस्से एल्गोरिथमिक ट्रेड में बदल गया है.क्रिप्टो में 70% से अधिक बॉट्स हैं . वित्तीय कारोबार में AI बॉट्स और एल्गोरिदम की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है .फिलहाल, Global Money Supply में क्रिप्टो की हिस्सेदारी 1 फीसदी से भी कम है . क्रिप्टो बाजार में चक्रवर्ती सम्राट की भूमिका में बिटकॉइन हैं-जिसकी भागीदारी आधी से भी अधिक है .बिटकॉइन के बाद दूसरे नंबर पर एथेरियम है.पहले दुनिया के ज्यादातर अमीर लोग ही क्रिप्टो निवेश में खासी दिलचस्पी दिखा रहे हैं.लेकिन, अब मिडिल क्लास निवेशकों को अधिक रिटर्न का सम्मोहन क्रिप्टो की ओर खींच रहा है ।

क्या है क्रिप्टो करेंसी?

क्रिप्टो एक वर्चुअल करेंसी है - जिसे बाजार में मौजूद रियल करेंसी की तरह छुआ या देखा नहीं जा सकता है .क्रिप्टो के हमेशा पास में होने का एहसास डिजिटल खाते में किया जा सकता है.इसे ब्लॉकचेन तकनीक के जरिए सुरक्षित किया जाता है .ब्लॉकचेन तकनीक मूल रूप से जानकारी रिकॉर्ड करने की ऐसी प्रणाली है जो सिस्टम को बदलने, हैक करने या धोखाधड़ी को मुश्किल या असंभव बना देती है.ब्लॉकचेन पर हर बार एक नया लेनदेन होता है.एक नया ब्लॉक बनता है .धोखाधड़ी से बचने के लिए लेनदेन का रिकॉर्ड एक ही समय में हर यूजर के खाता-बही में जोड़ा जाता है.दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में लोग किप्टो को सुरक्षित और ग्लोबल करेंसी के तौर पर देख रहे हैं - जो दुनिया के ज्यादातर देशों में बिना पासपोर्ट-वीजा से भ्रमण कर रही है ।

45 देशों में क्रिप्टो करेंसी को कानूनी वैधता

मौजूदा समय में दुनिया के करीब 45 देशों में क्रिप्टो करेंसी को कानूनी वैधता हासिल है .करीब 20 देशों में सीमित प्रतिबंध है और 10 देशों ने क्रिप्टो को पूरी तरह से बैन कर रखा है.ऐसे में भविष्यवाणी की जा रही है कि अगले कुछ वर्षों में लेनदेन में क्रिप्टो का चलन तेजी से बढ़ेगा..लोग अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा ब्लॉकचेन तकनीक से जोड़ने में दिलचस्पी दिखाएंगे. इससे आने वाले वर्षों में पारंपरिक करेंसी कीGlobal Money Supply में भागीदारी घटने और किप्टो यानी डिजिटल करेंसी की हिस्सेदारी बढ़ने के चांस बनने लगे हैं ।

हर तरह का काम मशीनें करेंगी तो इंसान क्या करेगा ?

कभी गोल्ड और प्रॉपर्टी में निवेश को सबसे सुरक्षित और फायदे का माना जाता था .बेहतर रिटर्न की उम्मीद में शेयर बाजार में लोग धड़ल्ले निवेश करते हैं .लेकिन, अब हमारे देश के लोग क्रिप्टो SIP में भी अच्छी खासी दिलचस्पी दिखा रहे हैं .इस साल देश में 5 लाख 72 हजार से अधिक क्रिप्टो SIP खुली.जो पिछले साल की तुलना में 7 गुना अधिक है .एक और गंभीर पक्ष पर बात करना जरूरी है .दफ्तर से घर तक.फैक्ट्री से खेत-खलिहान तक जब हर तरह का काम मशीनें करेंगी तो इंसान क्या करेगा ? AI वाले World Economic Order में महाशक्ति बनने के लिए किस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत होगी .दलील दी जा रही है कि इंसान जैसी सोचने-समझने, फैसला लेने और काम करने में सक्षम मशीनों को चलाने के लिए बहुत ऊर्जा की जरूरत होगी .ऐसे में दुनिया का सिकंदर वही बनेगा – जिसके पास अत्याधुनिक AI टेक्नोलॉजी होगी, जिसके पास ह्यूमनॉइड रोबोट चलाने के लिए Energy यानि ऊर्जा होगी.चाहे वो सूरज की रौशनी से पैदा की जाए.पानी से बिजली निकाली जाए या फिर हवा से तैयार की जाए.

AI का असली ईंधन डाटा नहीं Energy होगी

मतलब, AI का असली ईंधन डाटा नहीं Energy होगी और यही कूटनीतिक सौदेबाजी का भी आधार बन सकती है .अब एक और पहलू पर विचार करना जरूरी है .जिन देशों की आबादी कम है.जो युवा वर्क फोर्स की कमी से जूझ रहे हैं – वहां तो हम्यूमनाइड रोबोट का इस्तेमाल ठीक है .फायदे का सौदा है.लेकिन, जहां बड़ी युवा आबादी बेरोजगार घूम रही है.Unskilled है .वहां ऐसी व्यवस्था क्या अमीर को अमीर और गरीब को और गरीब नहीं बनाएगी? क्या समाज में गरीब और अमीर के बीच बढ़ती खाई बड़े असंतोष, सामाजिक उथल-पुथल और हिंसा की वजह नहीं बनेंगे ?

AI से लैस मशीनों को काम पर लगाना कितना उचित?

एक अरब चालीस करोड़ आबादी वाले भारत में दुनिया के सबसे अधिक युवा हैं .भारत की युवाशक्ति के बड़े हिस्से के पास रोजगार नहीं है.ऐसे में सवाल उठता है कि जहां इंसान को रोजगार नहीं मिल रहा, वहां जनरेटिव AI से लैस मशीनों को काम पर लगाना कितना उचित है ?
दुनिया के जाने-माने पॉडकास्टर निखिल कामत से बातचीत में एलन मस्क ने बताया कि जनरेटिव एआई और मशीनें इतनी एडवांस हो जाएंगी कि सबकुछ संभव होगा.कुछ भी असंभव नहीं .मतलब, इंसानी सभ्यता पूरी तरह से मशीनों के प्रभाव में आगे बढ़ेगी.ऐसे में जब पूछा गया कि एआई क्रांति के दौर में इंसान क्या करेगा? तो मस्क का जवाब था भविष्य में लोग शायद अपनी पसंद के क्रिएटिव कामों में ज्यादा समय बिताएंगे.यह समाज को एक नए दिशा में ले जा सकता है, जहां मूलभूत जरूरतें मशीनें पूरी करेंगी और इंसान अपनी जिंदगी अपनी पसंद से जिएगा ।

एआई के असर के हर पहलू पर गंभीरता से मंथन

तकनीक और अर्थशास्त्र दोनों की समझ रखने वाले विशेषज्ञों की सोच है कि जनरेटिव आई और ह्यूमनॉइड रोबोट दुनिया में असमानता को बढ़ावा देंगे .मुट्ठी भर लोग यानी AI कंपनियों को मालिक और टॉप क्रिएटिव लोग पूरी दौलत को कंट्रोल में करेंगे .दुनिया के बाकी बचे लोग UBI यानी यूनिवर्सल बेसिक इनकम के सहारे जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ाते दिख सकते हैं ।
इतिहास गवाह रहा है कि समाज में आर्थिक असमानता बड़े असंतोष को जन्म देती है.समाजिक ताने-बाने के भीतर कई तरह की हलचल और दिक्कतें पैदा करती है. जिससे लोकतंत्र को सबसे अधिक खतरा रहता है .ऐसे में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एआई के असर के हर पहलू पर गंभीरता से मंथन चल रहा है - चाहे वो आर्थिक हो या फिर मानवीय ।

इंसान के सामने सबसे बड़ी चुनौती

जब भारत आजादी की सौवीं वर्षगांठ की ओर बढ़ रहा होगा – तब मुझे देश के भीतर फैक्ट्री से लेकर दफ्तरों तक में जनरेटिव AI से लैस रोबोट्स की भरभार दिख रही है .ह्यूमनॉइड रोबोट एक अनुशासित लेबर फोर्स की तरह हर मोर्चे पर दिखेंगे. ये उत्पादन की रफ्तार बढ़ाने के साथ लागत कम करने में भी मददगार साबित होंगे .लेकिन, इंसान के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन ह्यूमनॉइड रोबोट को हमेशा कंट्रोल में रखने की होगी .रोजगार के मौके IIT पासआउट से अधिक ITI वालों के पास होंगे–जो रोबोट की प्रोग्रामिंग, सर्विस और रिपेयरिंग में बड़ी भूमिका निभाएंगे .इसी तरह दुनिया भर में सरकारें AI टैक्स, डाटा टैक्स, रोबोट टैक्स वसूलेगी .पूरी-दुनिया में लेन-देन और बही खाते का सिस्टम भी बदल जाएगा .जिसमें क्रिप्टो और ब्लॉकचेन बड़ी भूमिका निभाएंगे .

एनर्जी और टेक्नोलॉजी धुरी की भूमिका में

सरकारों के बीच डील में एनर्जी और टेक्नोलॉजी धुरी की भूमिका में दिख सकते हैं .समाज दो हिस्सों में बंटा दिख सकता है– एक एलिट.जिसके पास AI के इस्तेमाल से बेहिसाब दौलत होगी .दूसरा, यूजलेस. जिसके पास कोई काम नहीं होगा.जो अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकारी मदद की ओर देख रहा होगा.जिसकी जिंदगी में शून्यता होगी .डिप्रेशन होगा .बोरियत होगी .जिसके भटकने के चांस ज्यादा होंगे .ऐसे में 2025 का कैलेंडर पलटने से पहले एआई से जहां एक ओर बहुत खूबसूरत दुनिया की उम्मीद दिख रही है .दूसरी ओर, इससे नकारात्मक पक्ष डिस्पोटिया पर भी गंभीरता से सोचना जरूरी है .टेक टायकूंस जितनी शिद्दत से जनरेटिव AI की मदद से दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव की स्क्रिप्ट तैयार करने में जुटे हैं.उन्हें उतनी ही शिद्दत से AI के मानवतावादी अवतार पर भी काम करना चाहिए .आज के इस एपिसोड में बस इतना हीं.फिर मिलेंगे किसी ऐसे मुद्दे के साथ, जिसे जानना और समझना हम सबके लिए बहुत जरूरी होगा


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