त्रेता युग से नहीं होती है चने की खेती
पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस क्षेत्र में त्रेता युग से ही चने की खेती नहीं होती है। इसके बारे में कहानी कुछ इस प्रकार है कि भगवान राम सीता जी के साथ जनकपुर से अयोध्या लौट रहे थे। जिस रास्ते से वे जा रहे थे, उसी मार्ग में किसान के खेत में चने की फसल काटी गई थी। मगर, चने के खूंट खेत में ही पड़ी थी। यह भी पढ़ें: सीता माता का यह मंदिर महिलाओं के लिए खास, मिलता है अखंड सौभाग्य का वरदान!सीता जी के पैर में चुभ गई थी खूंटी
कहते हैं कि चने की एक खूंटी माता सीता के पैर में चुभ गई। जिसके उन्हें अत्यधिक कष्ट हुआ। कष्ट की वजह से माता सीता का मन भी दुखी हो गया। दुखी मन से माता सीता ने श्राप दे दिया कि दुबारा वहां चने की खेती नहीं होगी। साथ ही जो कोई चने की खेती करेगा उसका अच्छा नहीं होगा।हो जाता है अनिष्ट
हर्रैया तहसील के स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां चने की खेती ना करने की परंपरा तभी से चली आ रहा है। साथ ही लोग यह भी बताते हैं कि अगर कोई यहां चने की खेती करने की हिम्मत भी करता है तो उसके साथ कुछ ना कुछ अनिष्ट हो ही जाता है।चने की खेती न करने की है परंपरा
चने की खेती से जुड़ी इस श्राप के बारे में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं कहा जा सकता, मगर परंपरा चली आ रही है कि लोग यहां चने की खेती नहीं करते। चने की खेती को अशुभ मानकर लोग ऐसा करने से बचते हैं। यह भी पढ़ें: Ram Katha: केवट ने क्यों धोए थे श्रीराम के पैर? जानें रहस्य राम कथा
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