क्यों की जाती है भस्म से आरती
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दूषण नाम का राक्षस उज्जैन में तबाही मचा रखी थी। उसकी तबाही से वहां के ब्राह्मण परेशान थे। सभी ब्राह्मण अपनी समस्या लेकर भगवान शिव के पास गए और उस राक्षस के प्रकोप से बचाने के लिए प्रार्थना की। मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने सभी ब्राह्मणों की प्रार्थना स्वीकार किया और राक्षस राज दूषण को ऐसा न करने लिए कहा। भगवान शिव के मना करने के बावजूद भी दूषण नहीं माना। दूषण के लगातार बढ़ते प्रकोप से भगवान शिव के भक्त त्राहि-त्राहि हो उठे थे, तब भगवान शिव क्रोधित होकर दूषण राक्षस को भस्म कर दिए। भस्म करने के बाद वे उस भस्म को अपने पूरे शरीर में लगाकर श्रृंगार किए। तब से लेकर अब तक भगवान शिव का श्रृंगार भस्म से की जाती है। अब इसे भस्म आरती के नाम से भी जाना जाता है। यह भी पढ़ें- मार्च में दैत्य गुरु शुक्र करेंगे शनि की राशि में प्रवेश, 3 राशियों की खुल जाएगी किस्मतक्या है भस्म बनाने की प्रक्रिया
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आज से कई साल पहले महादेव की आरती जिस भस्म से की जाती थी वह श्मशान घाट से लाई जाती थी, लेकिन अब महाकाल की भस्म आरती करने का तरीका बदल गया है। बता दें कि अब चिता की राख से नहीं बल्कि कई ऐसे तत्व हैं जिससे भस्म तैयार की जाती है। भस्म आरती बनाने के लिए सबसे पहले पीपल, कपिला गाय के गोबर से बने गोइठा (कंडे) शमी, पलाश की लकड़ी, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर बनाया जाता है। भस्म की आरती होने के बाद भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो लोग भस्म को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं, उनको भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही सभी प्रकार के रोग-दुख से मुक्ति मिलती है। यह भी पढ़ें- मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए आज जरूर करें ये 5 चमत्कारी उपाय, घर में आएगी बरकतडिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।
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