भाग 1 – ब्रह्म तत्व क्या है, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज से जानिए
- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
भगवान को पाने में जो परमानंद है, उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती। यदि ब्रह्माण्ड को परार्ध (अर्थात् ब्रह्मा की आधी आयु, जो खरबों, अरबों वर्ष है) से गुणा कर दें तो भी वह भगवान कृष्ण की भक्ति से मिलने वाले परमानंद के सामने एक बिंदु समान भी नहीं है। यही कारण है कि जो सगुण स्वरूप श्रीकृष्ण में खो जाता है, वह सब दुखों से मुक्त हो जाता है। यह कृष्ण की बांसुरी का ही कमाल है कि उसकी आवाज सुनते ही भगवान शिव भी कैलाश पर्वत से दौड़े चले आते हैं। भगवान श्रीकृष्ण में चार ऐसे गुण हैं जो ब्रह्मा, विष्णु और शंकर तथा उनके किसी भी अवतार में भी नहीं हैं। उनमें सबसे पहला सुख है प्रेमानंद। हम खुद भी उन्हीं का अंश हैं, इसलिए हमें उन्हीं की ओर जाना चाहिए। भगवान हमें अनंत बार अपनी ओर बुलाते हैं लेकिन आत्मारुपी हम लोग ही उसे टाल देते हैं। जबकि वहीं परम परमेश्वर अनंत अंशों के रूप में हमारा स्वरूप धारण किए हैं।
ब्रह्म और जीव को अलग मानने के कारण ही होता है दुख
इस घटना को हम ऐसे समझ सकते हैं कि किसी मेले में एक छोटा बालक खो जाता है। उसकी माता पुलिस में रिपोर्ट लिखाती है। इस पर पुलिस मेले में मिले बच्चों की पहचान करवाती है। पहचान के दौरान भी माता पुलिस द्वारा ढूंढे गए बहुत ही सुंदर बच्चों को छोड़कर अपने सांवले बच्चे को ही ढूंढती है। उसी तरह हम भी अनंत आनंदमयी भगवान के स्वरूप को छोड़कर अपनी ही वासनाओं में उलझे रहते हैं। सभी संत और शास्त्र भी यही कहते हैं कि हम अपने अज्ञान (ब्रह्म और जीव को अलग-अलग मानने) के कारण ही अनंत प्रेमानंद से वंचित रह जाते हैं।
यह भी पढ़ें: गायत्री मंत्र जितना ही शक्तिशाली है ‘राम’ नाम का जप, हर दुख दूर कर देता है सुख-सौभाग्य-संपत्ति
परब्रह्म ही जगत का आधार और आश्रय ही है
वेदों और शास्त्रों में ब्रह्म तत्व पर विचार किया गया है और बताया गया कि जो बड़ा हो, अनंत मात्रा का हो, उसकी शक्ति और गुण भी अनंत मात्रा के हों, जो अपनी इच्छानुसार सगुण और निर्गुण दोनों रुप धारण कर ले, जो एक होकर भी अनंत हो जाए, वही निर्गुण और सगुण है, वही साकार और निराकार दोनों है, वही अणु जितना सूक्ष्म और अनंत ब्रह्मांड जितना विशाल है, वही कर्ता भी है, वही अकर्ता भी है। वही सबके अंदर है, वही सबके बाहर भी है, वह अनेकों विरोधी गुणों का स्थान है। वही सबका आश्रय और आधार है। उसके आगे स्वजातीय, विजातीय जैसे भेद नहीं चलते।
परमात्मा परब्रह्म भगवान ही सबके कर्षक है। वह सबको आकर्षित करते हैं, इसलिए उनका नाम श्रीकृष्ण पड़ा। श्रीकृष्ण उपनिषद में लिखा है कि वही ब्रह्म हैं, वही अनंत ब्रह्माण्डों के अनंत ग्रहों के अनंत जीवों के अनंत देशों,स्थानों और उनमें स्थित जलाशयों में बैठे करोड़ों प्रकार के अनंत जीवों के कर्मों को लिखे हुए बैठे हैं और अभी भी उनके कर्मों को लिख रहे हैं। अनंत जीवों के कर्मों से लिखे गए इसी खाते से वह जीवों के भविष्य के लिए प्रारब्ध का निर्माण भी कर रहे हैं।
जीव शक्ति भी भगवान परब्रह्म का ही अंश है
वेदों में जिसे सच्चिदानंद ब्रह्म कहा गया है वहीं श्रीकृष्ण हैं। यदि जीवों पर विचार करें तो जो स्वयं जीवित रहे और शरीर को भी जीवित रखें, उसी शक्ति का नाम जीव है। यह शक्ति भगवान की ही है, उसे गीता में पराशक्ति और पुराण में क्षेत्रज्ञ शक्ति कहा गया है। वह शक्ति तटस्थ शक्ति है। शास्त्रों में भघवान की तीन शक्तियां बताई गई हैं। इनके नाम पराशक्ति, अपराशक्ति (माया) तथा जीव शक्ति हैं। ये तीनों ही तटस्थ हैं और भगवान की ही शक्ति होने के कारण ये उनका ही अंश हैं।
जैसे पत्थर से ब्रह्म की तुलना नहीं हो सकती है, ऐसे ही जीव से ब्रह्म की तुलना नहीं हो सकती है यद्यपि हम भगवान के ही अंश हैं। ब्रह्म तत्व और जीव तत्व पर वेदांतों में भी सूत्र लिखे गए हैं। वेदांत और गीता में भी जीव और ब्रह्म की एकात्मकता को दर्शाया गया है। हम भगवान के अंश होकर भी सदा दुखी ही रहते हैं। अगर एक बार स्वप्न में भी वास्तविक सुख मिल जाए तो फिर उस जीव को जीवन में कभी दुख नहीं आ सकता।
जो मिल के न छिन सके, उसी को सुख या प्रकाश कहा जाता है। यदि कभी प्रकाश हो जाए तो फिर कभी अंधकार नहीं आ सकता । भगवान ही वह प्रकाश है, श्रीकृष्ण ही सूर्यरूप प्रकाश हैं और माया अंधकार रूप है। जहां कृष्ण रूपी सूर्य है वहां अंधकारी रुपी माया आ ही नहीं सकती। अतः जीवों को सदैव उन्हीं तक पहुंचने का प्रयास करना चाहिए।
Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world
on News24. Follow News24 and Download our - News24
Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google
News.