अक्षय नवमी पर क्यों होती है आंवले के पेड़ की पूजा?
सनातन व्रत परंपरा के मुताबिक, अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा होती है। मगर ऐसा क्यों होता है, इसके बारे में पौराणिक कथा का जिक्र भी शास्त्रों में किया गया है। शास्त्रों में वर्णित एक कथा के मुताबिक, एक बाद मां लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर पधारीं। इस दौरान उन्हें रास्ते में भगवान विष्णु और शिवजी की एक साथ पूजा करने की इच्छा हुई। फिर मां लक्ष्मी ने विचार किया कि एकसाथ भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा कैसे की जा सकती है। भगवान विष्णु को तुलसी प्रिय है जबकि शिवजी को बेलपत्र पसंद है। ऐसे में मां लक्ष्मी को ख्याल आया कि तुलसी और बेल के गुण एक साथ आंवले के पेड़ में ही मौजूद होता है। ऐसे में आंवले के वृक्ष को भगवान विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की विधिवत पूजा की। जिसके परिणामस्वरूप मां लक्ष्मी के सामने भगवान विष्णु और शिवजी प्रकट हुए। कहते हैं कि मां लक्ष्मी ने आंवले वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर दोनों देवताओं को खिलाया। फिर स्वयं भी भोजन किया। कहा जाता है कि जिस दिन मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा की थी उस दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी। मान्यता है कि तभी से अक्षय नवमी के दिन आंवले वृक्ष की पूजा होने लगी। जिसका प्रचलन समाज में आज भी है। इस दिन लोग आंवले वृक्ष के नीचे खाना पकाकर ब्राह्मणों को भोजन करवाते हैं।कब है अक्षय नवमी 2023?
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास शुक्ल नवमी तिथि 21 नवंबर 2023 मंगलवार को है। नवमी तिथि का आरंभ 21 नवंबर को दोपहर 3 बजकर 16 मिनट से हो रहा है। जबकि नवमी तिथि का समापन 22 नवंबर को देर रात 1 बजकर 09 मिनट पर होगा। ऐसे में इस साल अक्षय नवमी 21 नवंबर को ही मनाई जाएगी।
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