Zulfikar Ali Bhutto पर जब लगा था विपक्षी उम्मीदवार के अपहरण का आरोप, पढ़ें पाकिस्तान चुनाव का रोचक किस्सा
जुल्फीकार अली भुट्टो
दिनेश पाठक, वरिष्ठ पत्रकार
Pakistan General Election 1977 Memoir : पाकिस्तान में लंबे समय से जारी राजनीतिक उथल-पुथल के बाद आम चुनाव की घोषणा हुई। 8 फरवरी 2024 को मतदान हुआ। पाकिस्तान के राजनीतिक दलों ने 5 हजार से ज्यादा प्रत्याशियों को चुनावी रण में उतारा है। उम्मीदवारों में करीब 300 महिलाएं भी हैं। 55 महिलाएं निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं।
आजादी के बाद से ही कभी लोकतंत्र तो कभी तानाशाही की मार झेल रहे पड़ोसी देश पाकिस्तान में चुनावी नतीजे चाहे जो भी रहें, एक स्थिर सरकार बनाने में मुश्किलें आती ही रहीं। वहीं चुनाव को दौरान दिलचस्प घटनाएं भी होती रहीं हैं। ऐसी ही एक घटना पाकिस्तान में 1977 में हुए चुनाव से जुड़ी, जब प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो पर इल्जाम लगा था कि उन्होंने विपक्षी उम्मीदवार का अपहरण करवा लिया है। आइए जानते हैं कि क्या था पूरा मामला?
जुल्फीकार अली भुट्टो के लिए था लोगों में गुस्सा
1977 के आम चुनाव में पाकिस्तानी लोगों में जुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ काफी गुस्सा था। ऐसे में उनके लिए चुनाव में अपनी साख बचाने की चुनौती भी थी। भुट्टो हर हाल में दोबारा सरकार बनाना चाहते थे। उनकी सरकार में धार्मिक मामलों के एक मंत्री थे कौसर नियाजी, जिन्होंने अपनी किताब 'लास्ट डेज ऑफ प्रीमियर भुट्टो' में 1977 के चुनाव के बारे में विस्तार से लिखा।
निर्विरोध जीतना चाहते थे जुल्फिकार अली भुट्टो
कौसर नियाजी लिखते हैं कि भुट्टो को पता था कि आम चुनाव में दो तिहाई बहुमत से जीत पाना मुश्किल है। फिर भी उन्होंने वरिष्ठ अफसरों से कहा था कि दो तिहाई बहुमत से जीत कर आएंगे। विपक्ष की 9 पार्टियों ने मिलकर भुट्टो को उखाड़ फेंकने के लिए गठबंधन बना रखा था। इसको देखते हुए भुट्टो ने सभी 200 सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए और 19 सीटें निर्विरोध जीत लीं। खुद भुट्टो लरकाना सीट से चुनाव लड़ रहे थे और वहां से निर्विरोध जीतना चाहते थे। इसलिए उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार मौलाना जान मोहम्मद अब्बासी से कहा कि वह अपनी सीट छोड़ दें।
जुल्फिकार अली भुट्टो के लिए लरकाना सीट इसलिए भी जरूरी थी, क्योंकि बंटवारे के वक्त जूनागढ़ रियासत के दीवान रहे उनके पिता शाह नवाज भुट्टो भागकर लरकाना ही गए थे और वहां जमींदार बन गए थे। इस इलाके में उनकी बड़ी साख थी, जिसे बचाए रखने के लिए भुट्टो यह सीट निर्विरोध जीतना चाहते थे। इसलिए अब्बासी से लरकाना सीट छोड़ने की पेशकश की और यहां तक कह दिया कि वह दूसरी जिस भी सीट से लड़ेंगे, वहां भुट्टो की पीपुल्स पार्टी कोई उम्मीदवार ही नहीं खड़ा करेगी।
विपक्षी उम्मीदवार अब्बासी ने नहीं माना प्रस्ताव
भुट्टो की यह बात मानने से अब्बासी ने इनकार कर दिया और लरकाना से चुनाव लड़ने की ठान ली। इससे भुट्टो के मंसूबो पर पानी फिरता दिख रहा था। नामांकन की आखिरी तारीख 19 जनवरी 1977 को अब्बासी पर्चा भरने जा रहे थे, लेकिन रास्ते में अचानक लापता हो गए। ब्रिटिश पत्रकार ओवेन बेनेट जोंस ने अपनी किताब 'द भुट्टो डाइनेस्टी द स्ट्रगल फॉर पावर इन पाकिस्तान' में इस घटना का जिक्र किया। वह लिखते हैं कि जान मुहम्मद अब्बासी को कथित रूप से अगवा किए जाने के बाद से ही आम चुनाव में धांधली शुरू हो गई थी।
कौसर नियाजी ने ऐसे बताई घटना
वहीं कौसर नियाजी लिखते हैं कि नामांकन पत्र भरने की आखिरी तारीख की शाम को रेडियो और टीवी पर खबर आई कि प्रधानमंत्री अपनी सीट से निर्विरोध जीत गए हैं। अगले दिन अखबारों में भी इसका जिक्र था। हालांकि बाद में रिपोर्ट आई थी कि जान मोहम्मद अब्बासी को 18 जनवरी की शाम को ही पुलिस ने अपनी हिरासत में ले लिया था और नामांकन का समय समाप्त होने के बाद रिहा किया था। 7 मार्च 1977 को पाकिस्तान में मतदान हुआ और चुनाव में भुट्टो को अप्रत्याशित जीत मिली। प्रधानमंत्री भुट्टो की पार्टी ने 200 में से 155 सीटें जीत ली थीं। विपक्षी गठबंधन केवल 36 सीटें जीत पाया था।
जीत के बावजूद लगाना पड़ा था मार्शल लॉ
आम चुनाव के नतीजों की घोषणा के बाद आरोप लगने लगे कि इसमें धांधली हुई है। भुट्टो की पार्टी के जो उम्मीदवार निर्विरोध जीते, उनमें से 17 ने विपक्षी उम्मीदवारों को ठिकाने लगा दिया था। इसको लेकर विपक्षी गठबंधन ने फिर से चुनाव कराने की मांग कर दी तो पाकिस्तान में आंशिक मार्शल लॉ तक लगाना पड़ गया था। उसी पाकिस्तान में एक बार फिर से मतदान हो रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिर इसका नतीजा क्या निकलता है?
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