इराक में खुदाई में मिली 2700 साल पुरानी मूर्ति, जिसमें इंसान-पक्षी और बैल तीनों का मेल; वजन 18 टन
Massive 2700 Years Old Winged Deity Sculpture found in Iraq, बगदाद: धरती के गर्भ में बहुत से रहस्य दफन हैं, जो रह-रहकर बाहर आते रहते हैं। अब इराक में खुदाई के दौरान पुरातत्वविदों को एक विशालकाय मूर्ति मिली है। लगभग 2700 साल पुरानी बताई जा रही मूर्ति का वजन 18 टन है। इसके अलावा एक और दिलचस्प बात यह भी है कि जिस शरीर का यह प्रतिमान है, उसे समझ पाना बड़ी टेढ़ी खीर है। इस एक ही शरीर में आदमी, बैल और पक्षी तीनों का मेल है।
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अलबास्टर शिल्पकला का उदाहरण है 24 अक्टूबर को उत्तरी इराक में मिली पंखों वाले असीरियन देवता लामासु की यह मूर्ति
एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार यह मूर्ति 24 अक्टूबर को उत्तरी इराक में मिली थी। यह अलबास्टर (जिप्सम का एक प्रकार) शिल्पकला का उदाहरण है, जिसका इस्तेमाल मूर्तियां, फूलदान और अन्य सजावटी चीजें बनाने के लिए किया जाता है। पुरातत्वविदों की मानें तो यह विशालकाय मूर्ति पंखों वाले असीरियन देवता लामासु की है। इसका माप 3.8 × 3.9 मीटर है और वजन भी पूरा 18 टन है। खुदाई का नेतृत्व कर रहे फ्रांसीसी पुरातत्वविद् पास्कल बटरलिन (पेरिस आई पेंथियन-सोरबोन विश्वविद्यालय में मध्य पूर्वी पुरातत्व के प्रोफेसर) ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में पहले कभी इतनी बड़ी कोई चीज नहीं पाई थी।
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उन्होंने यह भी बताया कि यह मूर्ति प्राचीन शहर खोरसाबाद के प्रवेश द्वार पर बनाई गई थी, जो आधुनिक शहर मोसुल से लगभग 15 किमी उत्तर में है। मूर्तिकला में भगवान लामासु को दर्शाया गया है, जिनका सिर इंसान का, शरीर बैल का था, वहीं एक पक्षी के पंख भी थे। इसके अलावा रिपोर्ट्स ऐसी भी हैं कि पुरातत्वविदों को यह मूर्ति दो टुकड़ों में, लेकिन बिल्कुल सही हालत में मिली है। news.com.au की रिपोर्ट के मुताबिक इस विशाल मूर्ति से केवल सिर गायब था, जिसके बारे में पता चला कि वह पहले से ही बगदाद में इराक संग्रहालय में रखा हुआ है। इसे 1990 के दशक में सीमा शुल्क अधिकारियों ने तस्करों से जब्त किया था।
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असीरियन सभ्यता का इतिहास
इतिहासकार बताते हैं कि दजला नदी के उपरी हिस्से में स्थित हालिया इराक यानि प्राचीन मेसोपोटामिया में बीसवीं सदी ईसापूर्व से सातवीं सदी ईसापूर्व तक असीरियाई साम्राज्य अस्तित्व में था। फिर यहां फारस के हखामनी वंश का शासन रहा। इसके बाद जब तैमूर लंग ने अपने ही लोगों को मारना शुरू करा दिया तो असीरियाई साम्राज्य के राजधानी नगर अश्शूर का नाम-ओ-निशां मिट गया। बताया जाता है कि यह शहर इस सभ्यता के एक प्रमुख देवता अश्शूर के नाम पर ही बसा था, जिन्हें साम्राज्य का संरक्षक माना जाता था। 2003 के खाड़ी युद्ध के बाद से यह क्षेत्र खतरे में पड़ी विश्व धरोहरों की श्रेणी में शामिल और यूनेस्को की देखरेख में है। असीरिया सभ्यता की सबसे बड़ी देन उसकी शासन प्रणाली मानी जाती है। राज्य का स्वामी देवता और राजा को देवता का प्रतिनिधि माना जाता था। इस काल में चित्र और भवन निर्माण कला ने काफी तरक्की। घरों की नींवे पक्की ईंटों की तो दीवारें धूप में सुखाई गई ईंटों की होती थी।
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