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Bangladesh Crisis: देश छोड़ो या अंजाम भुगतो! शेख हसीना को सेना ने द‍िया था इतने म‍िनट का अल्‍टीमेटम

Bangladesh Political Crisis: पिछले एक महीने से छात्रों के प्रदर्शन का सामना कर रहा बांग्लादेश अब राजनीतिक संकट में फंस गया है। शेख हसीना प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे चुकी हैं और देश छोड़ चुकी हैं। इसी बीच रिपोर्ट्स आई हैं जो ऐसे संकेत दे रही हैं कि उन्हें सेना के सामने मजबूर होकर पीएम पद छोड़ना पड़ा।

Bangladesh Crisis : पिछले एक महीने से ज्यादा समय से बांग्लादेश में छात्रों का विरोध प्रदर्शन चल रहा है। समय के साथ यह आंदोलन इतना बड़ा हो गया कि शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया। रिपोर्ट्स के अनुसार शेख हसीना बांग्लादेश छोड़ चुकी हैं और फिनलैंड चली गई हैं। वहीं, इस पूरे मामले को लेकर एक और बड़ी जानकारी आई है। सूत्रों के अनुसार बांग्लादेश की सेना ने शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद छोड़ने के लिए अल्टीमेटम दिया था और इसके लिए उन्हें पूरे एक घंटे का समय भी नहीं मिला था। रिपोर्ट्स के अनुसार बांग्लादेशी आर्मी ने कथित तौर पर सोमवार की दोपहर शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से हटने के लिए 45 मिनट का समय दिया था। बता दें कि पूरे बांग्लादेश में टल रहे इन प्रदर्शनों में अब तक 300 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। पिछले महीने शुरू हुआ यह आंदोलन पूरे देश में तब फैला जब ढाका यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट एक्टिविस्ट्स की पुलिस और सरकार समर्थक प्रदर्शनकारियों के साथ हिंसक भिड़ंत हो गई थी। इस आंदोलन का कारण विवादित कोटा सिस्टम है जो सरकारी नौकरियों में आरक्षण देता है।

क्या है बांग्लादेश की कोटा व्यवस्था?

बांग्लादेश की कोटा व्यवस्था सरकारी नौकरियों में स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार वालों को 30 प्रतिशत का आरक्षण देती थी। हाईकोर्ट ने 5 जून को 30 प्रतिशत आरक्षण को खत्म करने वाले आदेश को अवैध करार दिया था जिसके बाद प्रदर्शनों की शुरुआत हुई थी। छात्र इसके खिलाफ हैं और इसके स्थान पर मेरिट सिस्टम से नौकरियां दिए जाने का सिस्टम लाने की मांग कर रहे हैं। बता दें कि 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर एक नया देश बना था जिसे बांग्लादेश नाम मिला। इससे पहले इसे पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। विरोध करने वाले छात्रों का कहना है कि यह सिस्टम सरकार में मौजूद लोगों को ज्यादा फायदा पहुंचाता है। जैसे-जैसे छात्रों का यह प्रदर्शन उग्र हुआ सरकार पर भी इसे लेकर दबाव बढ़ा। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आदेश दिया कि 93 प्रतिशत सरकारी नौकरियां मेरिट आधारित सिस्टम से दी जाएं। वहीं, 7 प्रतिशत नौकरियों को आरक्षित कैटेगरी में रखा गया। इनमें से पांच प्रतिशत नौकरियां आजादी की लड़ाई में शामिल रहे लोगों के परिजनों के लिए और 2 प्रतिशत जॉब्स अन्य वर्गों के लिए की गई थीं।


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