Friendship Day: देश के इन दो मंदिरों में होती है दोस्ती की पूजा, जानें कृष्ण-सुदामा की अमर मित्रता की कहानी
Friendship Day 2022: दरिद्रता से घिरे सुदामा द्वारका में कृष्ण से मिलने पहुंचे। फटे हाल एक साधू को देख द्वारपालों से उन्हें रोक दिया। पूछा-कहां जा रहे हो। सुदामा ने कहा- कृष्ण से मिलना है। द्वारपालों ने कहा कि क्या काम है महाराज से, तो सुदामा बोले-कृष्ण मेरे बाल सखा है। इस पर द्वारपाल हंसने लगे। काफी मिन्नतों के बाद एक द्वारपाल कृष्ण के पास गया और कहा कि प्रभु को साधू द्वार पर खड़ा है और आपको अपना बाल सखा बता रहा है।
मित्र को गले लगाने नंगे पैर दौड़े थे कृष्ण
जब द्वारपाल ने साधू का नाम बताया तो कृष्ण नंगे पैर ही महल के द्वार की ओर दौड़ पड़े। कृष्ण दौड़ते हुए पहुंचे और सुदामा को गले लगा लिया। दो दिन कृष्ण ने सुदामा की सेवा की। जब सुदामा बिना कुछ मांगे अपने घर पहुंचे तो राजपाट पाया। कृष्ण और सुदामा की अमर दोस्ती की कहानी के साक्षी हैं भारत के मात्र दो मंदिर। गुजरात के पोरबंदर और मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित नारायणधाम में कृष्ण और सुदामा के मंदिर मंदिर हैं।
संदीपनी मुनि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करते थे कृष्ण-सुदामा
दोस्ती की बात हो और कृष्ण-सुदामा का नाम न आए। ऐसा कभी नहीं हो सकता। आदिकाल से कृष्ण और सुदामा को परम मित्र के तौर पर जाना जाता है। इस फ्रेंडशिप डे पर आज की प्रचलित कहानियों से अलग हटकर बात करते हैं कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण बालपन में ऋषि संदीपनी मुनि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। इसी आश्रम में ब्राह्मण परिवार में जन्मे सुदामा भी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।
राजपरिवार से कृष्ण तो गरीब ब्राह्मण थे सुदामा
आश्रम में ही कृष्ण और सुदामा की गहरी दोस्ती हो गई। सुदामा गरीब ब्राह्मण थे, जबकि कृष्ण राजपरिवार से थे। शिक्षा ग्रहण करने के बाद दोनों आश्रम से चले गए। कहा जाता है कि सुदामा सिर्फ पांच घरों से ही भिक्षा मांगते थे। अगर इन पांच घरों से कुछ नहीं मिलता था तो परिवार भूखा ही रहता था। दिन प्रतिदिन सुदामा का परिवार दरिद्रता की ओर जाने लगा।
पत्नी ने सुदामा को भेजा कृष्ण से मदद मांगने
सुदामा की पत्नी सुशीला उन्हें रोज कृष्ण के पास जाकर मदद मांगने के लिए कहती थीं। कई दिनों तक सुशीला के कहने के बाद सुदामा ने द्वारका जाकर श्रीकृष्ण से मिलने की बात कही। सुदामा द्वारका पहुंचे। द्वारपालों ने उन्हें रोका। सुदामा बोले कि मैं कृष्ण का बाल रखा हूं। इस पर द्वारपालों ने महल के अंदर जाकर महाराज कृष्ण को बताया कि एक साधू आपको अपना बाल सखा बता रहा है। साधू का नाम सुनते ही कृष्ण नंगे पैर ही द्वार की ओर दौड़ पड़े। बीच रास्ते कुष्ण ने सुदामा को गले लगा लिया। एक राजा और निर्धन साधू की दोस्ती को देख हर एक की आंखों से आंसू बहने लगे।
पोटली से दो बार खाया पोहा
कृष्ण सुदामा को हाथ पकड़ कर बड़े प्रेम से महल के अंदर ले गए। कहा जाता है कि अपने बाल सखा और परम मित्र के लिए चावल से बने पोहे लेकर गए थे, लेकिन एक राजा को भेंट में चावल देने के नाम पर सुदामा लज्जित हो रहे थे। इस पर कृष्ण ने उनसे वो पोटली ले ली। कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण ने पोटली से दो मुट्ठी पोहे खाए, तीसरी मुट्ठी पोहा खाने ही वाले थे कि कृष्ण की पटरानियों ने पोटली छीन ली और खुद खा गईं। दो दिन तक कृष्ण के साथ महल में रहने के बाद सुदामा बिना कुछ मदद मांगे ही वापस चले आए।
लौटते समय निराश हो गए सुदामा, घर पहुंचे तो चकित
वापसी के रास्ते में सुदामा विचार कर रहे थे कि अब घर जाकर पत्नी को क्या कहेंगे। पत्नी ने कृष्ण से मदद मांगने के लिए भेजा था, लेकिन वो अपने सखा से लज्जा के कारण कुछ मांग नहीं पाए। सोचते-सोचते सुदामा अपने घर पुहंचे, जहां का नजारा देखकर वह हैरान रह गए। उनकी टूटी से झोपड़ी के स्थान पर एक सुंदर महल था। महल से एक सुंदर ने स्त्री बाहर निकल कर आई तो सुदामा दंग रह गए। वो सुदामा की पत्नी थीं। उन्होंने सुदामा से कहा, ये आपके बाल सखा कृष्ण का प्रताप है। उन्होंने हमारे सारे दुख-दर्द दूर कर लिए। इस पर सुदामा की आंखों से आंसू बहने लगे और अपने परम मित्र को प्रेम से याद किया। आपको बता दें कि भारत में सिर्फ गुजरात के पोरबंदर और मध्यप्रदेश के उज्जैन के पास नायाराण धाम में कृष्ण और सुदामा के मंदिर हैं। इन दोनों मंदिरों में कृष्ण-सुदामा को पूजा जाता है।
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