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आजादी का अमृत महोत्सव: उन आम भारतीय महिलाओं की खास कहानियां, जो सभी के लिए नज़ीर बन गईं

नई दिल्ली: भारत समेत दुनियाभर में आधी आबादी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है। विगत दो दशकों में भारत में महिलाओं की शिक्षा की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। प्रजनन दर नियंत्रित हुई है। विश्व भर में इन कारणों से पारिश्रमिक युक्त कार्यों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हो रही है, भारत […]

नई दिल्ली: भारत समेत दुनियाभर में आधी आबादी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है। विगत दो दशकों में भारत में महिलाओं की शिक्षा की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। प्रजनन दर नियंत्रित हुई है। विश्व भर में इन कारणों से पारिश्रमिक युक्त कार्यों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हो रही है, भारत में भी ये बदलाव देखने को मिल रहे हैं। आजादी के 75 वर्ष में देश की उन्नति और विकास में नारी शक्ति ने पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर महती भूमिका निभाई है। चिकित्सा, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों के साथ ही सेना में भी महिलाओं की एंट्री हो चुकी है। देश में ऐसे अनेक परिवार हैं जिन्होंने बेटियों के पंखों को कतरा नहीं, उन्हें आगे बढ़ने से रोका नहीं और इन्हीं घरों की लड़कियां आज सिविल सेवा और अन्य प्रतिष्ठित भूमिकाओं में हैं।

पुरुषों के वर्चस्व वाले पेशे में भी महिलाओं की भागीदारी

कई कार्यक्षेत्र तो ऐसे हैं जहां महिलाओं की भागीदारी 50 फीसदी तक भी पहुंच रही है। इसी तरह से कैब ड्राइवर, ऑटो ड्राइवर और यहां तक कई प्रकार की होम डिलीवरी का काम भी महिलाएं करने लगी हैं। दुनिया भर के देशों में टैक्‍सी हो या फिर दूसरे यातायात के साधन आमतौर पर इन्‍हें चलाने का काम पुरुष ही करते हैं। कुछ देश तो ऐसे भी हैं जहां पब्लिक कन्‍वेंस तो क्‍या महिलाओं को अपनी पर्सनल गाड़ी चलने तक की भी परमीशन नहीं होती है। मगर कुछ देश ऐसे भी है जहां महिलाओं टैक्‍सी और कैब चलते देखा जा सकता है। [caption id="attachment_8132" align="alignnone" ] प्रतीकात्मक तस्वीर[/caption] टैक्सी या ऑटो चलाना केवल पुरुषों का कम नहीं रह गई है। कई महिलाओं ने अपने दम पर ये साबित किया है कि वे कोई भी काम कर सकती हैं। भारत में अब तक यह कल्चर नहीं था। देश में महिलाओं को गाड़ी चलाने की परमीशन तो थी मगर कैब, टैक्‍सी और ऑटो जैसे पब्लिक यातायात के साधन महिलाएं नहीं चला रही थीं। मगर अब ऐसा नहीं है। भारत के कई शहरों में अब महिला कैब या ऑटो ड्राइवर्स देखने को मिल जाती हैं। इसके साथ महिलाओं को सुरक्षा देने के उद्दश्‍य से भारत में महिला ड्राइवरों की संख्‍या बढ़ाने का काम चल रहा है। इसी के तहत कैब और ऑटो चलाने वाली कई महिलाएं लोकप्रिय हो चुकी हैं। आज हम ऐसी ही कुछ महिला ड्राइवर (women drivers) की बात करेंगे, जिन्‍हों ड्राइविंग को पैशन नहीं प्रोफैशन की तरह चुना है। ऐसे कई उदाहरण हैं जो हम सबके लिए प्रेरणादायक हैं, देश में कई ऐसी भी महिलाएं हैं जो रात में कैब चलाने के साथ अपने बच्चों को भी पढ़ाती हैं।

टैक्सी चालक मीनाक्षी ने बच्चों के लिए अपनाया यह पेशा

शिमला की एक महिला ने अपने दम पर ये साबित किया है कि महिलाएं भी पुरुष से बेहतर काम कर सकती हैं। हम बात कर रहे हैं शिमला की पहली महिला टैक्सी चालक मीनाक्षी की। जिन्होंने कोरोना काल में बेटियों की पढ़ाई पर कोई रूकावट न आए इसके लिए मीनाक्षी ने टैक्सी चलना शुरू कर दिया। [caption id="attachment_8121" align="alignnone" ] मीनाक्षी[/caption] मीनाक्षी की इस मेहनत को देखकर आसपास के लोगों द्वारा उनकी सराहना करते हुए देखा जा सकता हैं। मीनाक्षी आज कई महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गयी हैं।

हैदराबाद की कैब ड्राइवर लावन्या का सपना

एक ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी हैदराबाद की लावान्‍या की है जिन्होंने कुछ महीनों पहले ही ओला कैब सर्विस कंपनी को ज्‍वाइन किया है। इस कंपनी में वो मैनेजर या ऑपरेटर नहीं हैं बल्कि लावान्‍या इस कंपनी में एक कैब ड्राइवर हैं। बता दें लावान्‍या एक महिला ड्राइवर हैं, जो कैब चलाती हैं। इस प्रोफेशन को उन्‍होंने किस मजबूरी नहीं बल्कि अपनी चाहत से चुना है। बचपन से ही ड्राइव करना लावान्‍या का पैशन था। पढ़ाई खत्‍म होने के बाद लावान्‍या ने तय किया कि वह लोगों को कार चलाना सिखाएंगी। मगर लावान्‍या ने कभी नहीं सोचा था कि कार चलाते- चलाते एक दिन वह इस पेशे को अपना करियर ही बना चलेंगी। [caption id="attachment_8122" align="alignnone" ] लावन्या[/caption] वह कहती हैं कि, 'महिलाएं यही सोचती हैं कि कैब और ऑटो चलना उनके बस की बात नहीं। कुछ महिलाएं इसे पुरुषों का पेशा समझती हैं। यह सच भी है। महिलाओं के इस पेशे में आने से पहले पुरुषों का ही इस फील्‍ड में वर्चस्‍व था। मगर अब ऐसा नहीं है। महिलाएं भी ड्राइवर बन सकती हैं और यह पेशा उतना ही अच्‍छा है जितना महिलाओं के लिए दूसरे पेशे होते हैं। मुझे लगता है मैं एक ऐसा काम कर रही हूं जो महिलाओं को एक नई दिशा दिखाएगा और हमारी आगे आने वाली पीढि़यों में बेटियों के भविष्‍य को बेहतर बनाएगा।'

ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग प्लेटफॉर्म जोमैटो ने लिए ये निर्णय

ऐसे ही देश के कई हिस्सों में लेबर का काम हो या गाड़ी चलाने का महिला हर काम को कर सकती है और एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकती हैं। बात करें ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग प्लेटफॉर्म में भी महिलाए काम करते हुए नजर आ रही हैं। ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग प्लेटफॉर्म जोमैटो ने हाल ही में अपनी डिलीवरी सर्विस में महिलाओं की संख्या को साल के अंत तक 10 फीसदी तक बढ़ाने का फैसला लिया है।

अभी लक्ष्य हासिल करना बाकी है

हालांकि देश में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में कोरोना महामारी की वजह से गिरावट देखने को मिली है। बता दें कि हाल ही के दिनों में कई ऐसे सर्वे भी सामने आये हैं जिसमें बताया गया है कि कोरोना महामारी के चलते कामकाजी महिलाओं की संख्या में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। लॉकडाउन के बाद देश में 10 करोड़ लोगों ने नौकरी गंवा दी। दो सालों बाद देश कोरोना को पीछे छोड़ चुका है लेकिन महिला वर्कफोर्स जो काम किया करती थी उनमें से बहुतों की काम पर अभी तक उनकी वापसी नहीं हुई है। ऐसी स्ठिति केवल भारत में ही दुनिया के कई देशों में देखी जा रही है। साथ ही, देश में महिलाओं की आबादी के अनुपात में कार्यबल में महिलाओं की संख्या कम है। लेकिन, यदि कार्यबल में महिलाओं के लिए नए द्वार खुलते हैं तो इससे तमाम महिलाओं में निहित संभावनाओं को फलीभूत करने का मार्ग प्रशस्त होगा और हम अपने राष्ट्र की आबादी में मौजूद संभावनाओं का लाभ उठा सकेंगे। इसके लिए सरकार और निजी क्षेत्र दोनों को नए सिरे से आगे आना होगा।


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