Yogendra Pratap Singh ( Kanpur)Kanpur City The Doors Of Dashanan Temple Open Today: पूरा देश आज दशहरा के दिन रावण दहन कर अधर्म पर धर्म की जीत की खुशियां मनाते है, देशभर में रावण के बड़े बडे पुतले लगाकर उसका दहन किया जाता है, वहीं उत्तर प्रदेश के कानपुर में दशानन रावण के सौ साल पुराने मंदिर के दरवाजे आज विशेष पूजन और दर्शन के लिए खोले जाते हैं। दशानन रावण के इस मंदिर में केवल दशहरे के दिन ही पूजा होती है। कानपुर के शिवाला में दशानन शक्ति के प्रहरी के रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर के पट सिर्फ और सिर्फ विजयादशमी यानी दशहरा के दिन खोले जाते हैं।
वर्ष 1868 में हुआ था मंदिर का निर्माण
मंदिर का निर्माण वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे। उन्होंने ही कैलाश मंदिर परिसर में शक्ति के प्रहरी के रूप में रावण का मंदिर निर्मित कराया था। विजयदशमी को सुबह मंदिर में प्रतिमा का श्रृंगार-पूजन कर कपाट खोले जाते हैं। शाम को आरती उतारी जाती है। यह कपाट साल में सिर्फ एक बार दशहरा के दिन ही खुलते हैं।
200 साल से अधिक पुराना है मंदिर
कानपुर के शिवाला में मौजूद कैलाश मंदिर दशानन रावण का बेहद प्राचीन मंदिर मौजूद है। यह मंदिर लगभग 200 साल से अधिक पुराना है और हर साल सिर्फ दशहरा के दिन यह मंदिर खोला जाता है। साल केवल एक बार ही यह मंदिर खुलता है। यहां पर रावण को भगवान के रूप में पूजा जाता है। भक्त दूर-दूर से भक्त इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं।
केवल दशहरे के दिन खुलता है मंदिर
यह मंदिर सिर्फ दशहरा के दिन खुलता है। सुबह से भक्तों की भीड़ दूर-दूर से मंदिर के दर्शन करने आती है। और भगवान के रूप में रावण की पूजा की जाती है। पूजा करने के बाद फिर यह मंदिर एक साल के लिए बंद कर दिया जाता है। अगले साल दशहरा के दिन मंदिर के पट दोबारा खोले जाते हैं। नियमानुसार पूजा की जाती है।
अहंकार न करने की मिलती है सीख
मंदिर में दशानन के दर्शन करते समय भक्तों को अहंकार नहीं करने की सीख भी मिलती है, क्योंकि ज्ञानी होने के बाद भी अहंकार करने से ही रावण का पूरा परिवार मिट गया था। शिवाला स्थित दशानन मंदिर का पट रविवार की सुबह खुला तो विधि विधान से पूजन अर्चन किया गया। शुक्रवार को प्रातः मंदिर सेवक ने मंदिर के पट खोले तो भक्तों ने साफ सफाई करके दशानन की प्रतिमा को दूध, दही गंगाजल से स्नान कराया। इसके बाद विभिन्न प्रकार के पुष्पों से मंदिर को सजाया गया और आरती उतारी गई।