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जिस स्कूल में कभी शाम को सजती थीं शराबियों की महफिलें, उसी स्कूल की टीचर को बेस्ट टीचर अवार्ड, जानें संघर्ष की कहानी

Teachers Day Special Asiya Farooqui Success Story: पूरा देश आज शिक्षक दिवस मना रहा है। आज के दिन भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन भी था। वे राजनीति में आने से पहले शिक्षक थे। आज के दिन राष्ट्रपति देश के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक को सम्मानित करती है। आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू फतेहपुर की प्रिंसिपल […]

Asiya Farooqui
Teachers Day Special Asiya Farooqui Success Story: पूरा देश आज शिक्षक दिवस मना रहा है। आज के दिन भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन भी था। वे राजनीति में आने से पहले शिक्षक थे। आज के दिन राष्ट्रपति देश के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक को सम्मानित करती है। आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू फतेहपुर की प्रिंसिपल आसिया फारुकी को सम्मानित करेंगी। आइये जानते हैं आसिया फारुकी के बारे में। आसिया फिलहाल उत्तरप्रदेश के फतेहपुर में अस्ती में प्राइमरी स्कूल की प्रिंसिपल है। उन्होंने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में बताया कि प्रमोशन मिलने के बाद मैं प्रिंसिपल बनकर पहली बार अस्ती गांव के प्राइमरी स्कूल पहुंची। जहां मेरी तैनाती हुई थी। मैंने स्कूल का गेट खोला तो जगह.जगह शराब की बोतलें बिखरी पड़ी थीं। कक्षा कक्ष के सामने कचरे का ढेर था और बच्चों के खेलने की जगह खूंटे गड़े थे। वह स्कूल कम तबेला ज्यादा लग रहा था।

5 बच्चों से की शुरुआत

पहले दिन सिर्फ 5 बच्चे स्कूल आए थे। उसमें से एक ने बताया कि यहां रोजाना स्कूल बंद होने के बाद शराबी जुआ खेलने आते हैं। महिलाएं यहीं पर कपड़े धोती है, फिर स्कूल की चारदीवारी पर सूखने के लिए डाल देती थी। स्कूल की हालत इतनी खराब थी कि पता नहीं कब छत गिर जाए। मैंने बच्चों से कहा कि मैं आपकी स्कूल की नई टीचर हूं आज से मैं आपको रोज पढ़ाने आउंगी। मैंने ठान लिया था कि चाहे जो कुछ हो जाए मुझे यहां के बच्चों के लिए कुछ करना है। मैं पिछले 6 साल से यहां पोस्टेड हूं पहले दिन यहां 5 बच्चे थे आज संख्या 250 को पार चुकी है। जिस स्कूल में कभी महफिलें सजा करती थीं आज उसी स्कूल की टीचर को राष्ट्रपति राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित कर रही है।

बदमाशों से मिलती थीं धमकियां

आसिया बताती हैं कि स्कूल की संपत्ति पर गुंडे और जुआरी कब्जा करना चाहते थे। वह मुझे परेशान करने के लिए नए-नए तरीके खोजते। कभी मेरा स्कूटर पंचर कर देते कभी मेरी गाड़ी का शीशा तोड़ देते। एक दिन तो हद हो गई जब उन्होंने स्कूल के बाहर लगे नोटिस बोर्ड पर बड़े अक्षरों में लिखा था चली जाओ वरना स्कूल नहीं आ पाओगी। इसके बाद मैंने पुलिस से शिकायत की तो बदमाशों ने मुझे परेशान करना बंद कर दिया।

सैलरी का आधा हिस्सा स्कूल कार्य में किया खर्च

आसिया आगे बताती है कि मैं जब स्कूल आई तो दीवारें टूटी हुईं थी। कई साल रंग रोगन नहीं हुआ था। मेरे अलावा और कोई टीचर नहीं था। इसके बाद मैंने फैसला किया कि सैलरी का आधा हिस्सा स्कूल के सुधार कार्य में लगाउंगी। इसके बाद साफ-सफाई करवाई। विद्यालय की मरम्मत से लेकर रंगाई पुताई तक सारा काम मैंने करवाया। मेरी मेहनत को देखकर गांव के लोगों ने मेरा साथ दिया इसके बाद बच्चों की संख्या भी बढ़ने लगी।

10 वाॅलेंटियर्स को दे रही सैलरी

आसिया कहती है मैं स्कूल की अकेली शिक्षक हूं न तो कोई अनुदेशक है और न ही कोई शिक्षा मित्र। इसे देखते हुए मैंने स्कूल में 10 वाॅलेंटियर्स की एक टीम तैयार की है। जो मेरे साथ स्कूल में लगे रहते हैं। इन्हें मैं हर महीने अपने वेतन से 10 हजार रूपए देती हूं। अस्ती में अधिकतर महिलाएं अनपढ़ हैं। साइन करने की जगह अंगूठा लगाती थीं। आसिया ने बच्चों के साथ महिलाओं के लिए भी साक्षरता कार्यक्रम चलाया। पाठशाला में आने वाली महिलाएं अब रोज अखबार पढ़ रही हैं।


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