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राजस्थान के विधायक तीन-आरोप संगीन, विधानसभा की राजनीति क्या जीरो टॉलरेंस के इम्तिहान में पास होगी?

Rajasthan Politics three MLA against Serious allegation: राजस्थान में स्टिंग ऑपरेशन में बेनकाब हुए तीनों विधायक विधानसभा की सदाचार समिति के सामने पेश हुए. अपना पक्ष रखा और सवालों के जवाब भी दिए . राजस्थान के तीन विधायकों पर लगे आरोप बेहद ही संगीन है और राजनीति के चेहरे पर फिर सवाल. ऐसे में किसका सच भारी होगा और किसका जवाब हल्का साबित होगा—ये अभी तय होना बाकी है. देखिए ये खास रिपोर्ट

Rajasthan Politics three MLA against Serious allegation: विधानसभा की गलियारों में आज माहौल थोड़ा अलग था. खींवसर से भाजपा विधायक रेवत राम डांगा, करौली की हिंडौली से कांग्रेस विधायक अनीता जाटव और भरतपुर के बयाना से निर्दलीय विधायक रितु बणावत. नोटिस मिलने के बाद ये तीनों आज सदाचार समिति के सामने थे. आरोप यह कि विधायक निधि से विकास कार्य कराने की अनुशंसा के एवज में 40 प्रतिशत तक कमीशन मांगा गया. वीडियो सामने आए, सोशल मीडिया पर वायरल हुए और फिर बना सवाल ,क्या जनता के पैसे से विकास… या विकास के नाम पर सौदेबाज़ी? समिति के सामने आज तीनों विधायकों ने खुद को निर्दोष बताया. कहा यह साज़िश है… फंसाने की कोशिश है. समिति ने समय माँगने पर उन्हें दस्तावेज़ पेश करने का मौका दिया. लेकिन दिलचस्प यह रहा कि सुनवाई के बाद जहां रितु बणावत सामने आईं, मीडिया से बात की. वहीं बाकी दो विधायक मीडिया से मुंह छुपाते सरकते ही नजर आए.

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वीडियो वायरल हुए तो सरकार भी सक्रिय

वीडियो वायरल हुए तो सरकार भी सक्रिय हुई. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने तुरंत विधानसभा अध्यक्ष से जांच की मांग की. और मामला पहुंच गया सदाचार समिति के पास, जहां अध्यक्ष कैलाश वर्मा बीजेपी से हैं… सदस्य कांग्रेस और बीजेपी दोनों के. यानी तालिका में सत्ता और विपक्ष दोनों बैठे हैं… पर नजरें आम जनता की उन उम्मीदों पर हैं जो माननीयों पर भरोसा करती है. समिति का दावा है ज़ीरो टॉलरेंस के आधार पर इन संगीन आरोपों की जांच होगी.लेकिन सवाल—क्या विधानसभा की राजनीति ज़ीरो टॉलरेंस के इम्तिहान में पास होगी?

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असली सवाल नोटिस का नहीं, नतीजे का

अब समिति आरोपी विधायकों का पक्ष सुन चुकी है. अगला कदम वीडियो बनाने वाले पक्ष को बुलाकर तकनीकी परीक्षण करवाएगी. इधर कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ने अपने-अपने विधायकों को कारण बताओ नोटिस थमा दिया है.पर असली सवाल नोटिस का नहीं, नतीजे का है. क्या यह जांच राजनीतिक रस्म अदायगी बनकर रह जाएगी? या पहली बार सदाचार सच के साथ खड़ा नज़र आएगा?जनता को जवाब चाहिए और जवाब सिर्फ यह नहीं कि कमीशन मांगा या नहीं. जवाब यह भी कि जनता के पैसे की कीमत, आख़िर किसके लिए है, विकास के लिए या दलालियों के लिए?

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