राजस्थान में छात्र राजनीति से जुड़ी एक अहम बहस पर आज हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुना दिया. कोर्ट ने छात्र संघ चुनाव करवाने की मांग वाली याचिका खारिज करते हुए साफ कहा कि छात्र संघ चुनाव भले ही लोकतांत्रिक मांग हों, लेकिन इन्हें मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता. चुनाव कराने या नहीं कराने का अधिकार सरकार का है.
क्यों विवाद में फंसा छात्र संघ चुनाव?
पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने छात्र संघ चुनाव पर रोक लगाई थी और मौजूदा भजन लाल सरकार ने भी पिछले दो साल से चुनाव नहीं करवाए. इसी के खिलाफ छात्रों और संगठनों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए कहा कि सरकार लगातार चुनाव टाल रही है, जबकि विद्यार्थियों से छात्र संघ चुनाव के नाम पर शुल्क भी वसूला जा रहा है. यदि चुनाव नहीं करवाने थे तो विद्यार्थियों से आवेदन के वक्त छात्र संघ चुनाव के लिए शुल्क क्यों वसूला गया?
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याचिकाकर्ताओं का तर्क
छात्र संघ चुनाव करवाने की मांग कर रहे हैं, याचिका कर्ता का इस पूरे मामले पर तर्क था कि शिक्षा व्यवस्था बिगड़ने का तर्क सही नहीं है क्योंकि लोकसभा व विधानसभा चुनावों के दौरान भी विश्वविद्यालयों में मतदान व मत गणना होती है,फिर छात्र चुनाव में शिक्षा की गतिविधियां बाधित होने का दावा कैसे मान्य समझा जा सकता है?
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हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने सरकार और विश्वविद्यालयों से सवाल किए और कहा यही सही है कि चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया हैं, लेकिन शिक्षा के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकते. साथ ही कोर्ट ने सरकार से छात्र संघ चुनाव को लेकर स्पष्ट नीति बनाने को कहा. ताकि छात्र संघ चुनाव करवाने को लेकर बनी भ्रम की स्थिति साफ हो सके और छात्रों को अदालत आने की वजह पढ़ाई पर ध्यान देने का मौका मिल सके.
राजस्थान में छात्र राजनीति का इतिहास
राजस्थान में छात्र संघ चुनाव हमेशा विवादों से जुड़ा रहा है. साल 2005 में भारी उपद्रव के बाद राजस्थान के सभी यूनिवर्सिटी और कॉलेज में छात्र संघ चुनाव करवाने पर रोक लगी, इसे लेकर एक जनित याचिका दायर की गई थी जिसके बाद छात्र संघ चुनाव पर रोक का फैसला लिया गया था. छात्रों और जन प्रतिनिधियों की लगातार मांग के बाद साल 2010 में चुनाव फिर शुरू हुए, लेकिन साल 2020-21 में कोरोना के चलते चुनाव फिर से स्थगित करना पड़ा. एक साल बाद चुनाव हुए, फिर रोक लग गई और इस बार मामला फिर से हाई कोर्ट तक पहुंच गया. जिसकी वजह सरकार द्वारा शैक्षणिक सत्र के गड़बड़ा जाने का तर्क दिया गया था. इसलिए छात्र नेता इस बार काफी नाराज थे और मामला कोर्ट तक पहुंच गया.
लिंगडोह कमेटी की सिफारिश क्या कहती है?
लिंगडोह कमेटी ने सुझाव दिया था कि शैक्षणिक सत्र शुरू होने के 8 सप्ताह में चुनाव हों, साफ और निष्पक्ष चुनाव होने चाहिए धनबल के उपयोग पर पूरी तरह सख्ती बरते जाने का भी कड़ा निर्देश दिया गया था. लेकिन इस बार सरकार ने राजस्थान के यूनिवर्सिटी और कॉलेज में छात्र संघ चुनाव नहीं कराए जाने के पीछे यह बड़ी दलील दी कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने की प्रक्रिया के चलते वह चुनाव नहीं करवा पाएगी. यही नहीं लिंगडोह कमेटी की सिफारिश के अनुसार 8 सप्ताह की समय सीमा भी बीत चुकी है, इसलिए चुनाव संभव नहीं.
क्या होगा अब आगे?
हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब साफ हो गया है कि राजस्थान की किसी भी यूनिवर्सिटी और कॉलेज में कम से कम इस शैक्षणिक सत्र में तो छात्र संघ चुनाव नहीं होंगे, लेकिन सरकार को जल्दी ही छात्र संघ चुनाव को नीति बनाने के निर्देश हैं. यानी की भविष्य के चुनाव पर फैसला सरकार करेगी.