पटना: बिहार में बदलाव और नीतीश कुमार के 2024 में प्रधानमंत्री कैंडिडेट बनने के सवाल पर प्रशांत किशोर ने अपनी राय रखी है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि जो कुछ भी बिहार में हो रहा है, ये बिहार सेंट्रिक है। मेरी जो समझ है, शायद गलत होगी। ऐसा नहीं है कि राष्ट्रीय स्तर पर कोई रणनीति या प्रयास किया गया है, उसके बाद बिहार में ये सब कुछ हुआ है। बिहार में जो कुछ भी हो रहा है, उसका बाद में नेशनल राजनीति में जरूर कुछ असर पड़ सकता है या नहीं, ये तो समय बताएगा।
न्यूज 24 से बातचीत में प्रशांत किशोर ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री जनता तय करती है, जनता ही बता पाएगी कि कौन प्रधानमंत्री बन सकता है। किसी राज्य में अगर सरकार बदल रही है और नई सरकार बन रही है तो उसकी वजह से पूरे देश में कोई आंदोलन खड़ा हो सकता है, मुझे ऐसा नहीं लगता है, ये ख्याली पुलाव वाली बात है।
राजनीतिक अस्थिरता में एक और कड़ी जुड़ गई है: प्रशांत किशोर
नीतीश कुमार के एनडीए फोल्डर से बाहर आने पर प्रशांत किशोर ने कहा कि 2012-13 से बिहार में राजनीतिक अस्थिरता का जो दौर शुरू हुआ है, उसी के अध्याय में एक और कड़ी जुड़ गई है। पिछले 10 साल में नीतीश सरकार का ये छठवां प्रयोग है। हर प्रयोग में दो चीजें समान रही हैं। एक ये कि नीतीश कुमार हर बार मुख्यमंत्री बने हैं और दूसरा ये कि बिहार के लोगों की जो परेशानी है, उसमें कोई चेंज नहीं आया है। पहले भी रातों रात सत्ता बदली है और आज भी बदली है।
नीतीश कुमार 2017 से जिस गठबंधन में थे, मुझे उनके साथ रहकर या दूर रहकर जो लगा वो ये कि नीतीश एनडीए के साथ उस तरह से कम्फर्टेबल नहीं थे जैसे कि वे 2017 के पहले रहते थे और जब आप किसी व्यवस्था में कम्फर्टेबल नहीं होते हैं तो उसका लंबे समय तक चल पाना संभव नहीं होता है। प्रशांत ने कहा कि 2017 में जो व्यवस्था बनाई गई, उसकी नींव में ही वो मजबूती नहीं थी जो उसके पहले थी।
प्रशांत ने कहा कि नई सरकार को जनता को अपना एजेंडा बताना चाहिए। उन्होंने कहा कि 2015 का चुनाव नीतीश ने सात निश्चय पर लड़ा, 2017 में एनडीए के साथ गए तो कहा कि एनडीए के पुराने एजेंडे पर सरकार काम करेगी। 2020 में जब विधानसभा चुनाव में गए तो सात निश्चय पार्ट टू पर चुनाव लड़ा गया।
अब जो नई सरकार बनेगी उसे भी अपना एजेंडा लोगों के सामने रखना चाहिए। मैं ये देखना चाहता हूं कि राजद ने विधानसभा चुनाव में जो घोषणा पत्र में कहा था जिसके बल पर राजद के करीब 80 विधायक चुनकर आए थे, उन घोषणाओं को इस सरकार में कितना शामिल किया जाता है। क्या जो 10 लाख लोगों को नौकरी देने की बात कही गई थी, वो इस सरकार में पूरा होगा, ये देखने वाली बात होगी।
नीतीश कुमार के स्थिति में कमी आई है
प्रशांत किशोर ने कहा कि 2010 और 2015 के मुकाबले नीतीश कुमार की स्थिति में कमी आई है और ये नंबर में भी दिखता है। 2010 में नीतीश कुमार के नाम पर चुनाव लड़ा गया था, अकेले जदयू के 117 विधायक जीते थे। वो बाद में घटकर 72 हो गए और अब 42 के करीब आ गए हैं।
बता दें कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इन दिनों बिहार में जन सुराज नाम का अभियान चला रहे हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था कि सत्य यह है कि 30 साल के लालू-नीतीश के राज के बाद भी बिहार आज देश का सबसे गरीब और पिछड़ा राज्य है। बिहार को बदलने के लिए एक नयी सोंच और प्रयास की ज़रूरत हैं और यह सिर्फ वहां के लोगों के सामूहिक प्रयास से ही सम्भव है।
विधानसभा अध्यक्ष को हटाया गया
उधर, बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा को उनके पद से हटा दिया गया है। पिछले साल मार्च में विधानसभा में राष्ट्रीय जनता दल के विधायकों ने हंगामा किया था। अनुशासन समिति ने इस मामले की जांच की थी। माना जा रहा था कि अनुशासन समिति ने विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा को इसकी रिपोर्ट सौंप चुका है और इस रिपोर्ट के आधार पर विजय सिन्हा कभी भी आरजेडी के 18 विधायकों को सस्पेंड कर सकते हैं। इसी को देखते हुए विजय सिन्हा को उनके पद से हटा दिया गया है।
उधर, बिहार के पूर्व मंत्री और भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने नीतीश कुमार पर जमकर निशाना साधा है। नीतीश कुमार के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल शाहनवाज ने कहा कि नीतीश जी के साथी अच्छे नहीं हैं। 'अच्छा सिला दिया हम लोगों के प्यार का' ये तो बड़ी गलत बात है। जब भी मिले कभी आभास नहीं हुआ कि वे छोड़ कर जाएंगे। लोकसभा के चुनाव में 40 सीट भाजपा जीतेगी।