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परंपरा के नाम पर बरसते पत्थर, क्या है वो प्रेम कहानी? जिसकी याद में मध्य प्रदेश में मनाया जाता है गोटमार मेला

Gotmar Mela Chhindwara: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में हर साल एक ऐसा मेला लगता है, जिसमें पत्थर बरसाने की परंपरा निभाई जाती है। 2 गांवों के लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। इस बार पथराव में करीब एक हजार लोग घायल हुए हैं। आइए इस मेले में बारे में जानते हैं...

हर साल एक दिन का गोटमार मेला छिंदवाड़ा में लगता है।

Gotmar Mela Chhindwara MP: भारत देश में बेहद अजीबोगरीब और विचित्र परंपराएं निभाई जाती हैं, जिनके सुनकर लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। कहीं लंगूरों का मेला लगता है तो कही मेंढकों की शादी कराई जाती है। कहीं शराब का लंगर लगता है तो जलते अंगारों पर चला जाता है। कहीं लड़की की शादी केले के पेड़ से कराने का रिवाज है तो कहीं बच्चों को ऊपर से 50 मीटर नीचे हवा में फेंककर भाग्योदय किया जाता है।

मध्य प्रदेश का गोटमार मेला

ऐसी ही एक परंपरा मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में निभाई जाती है, जहां गोटमार मेले में परंपरा के नाम पर पत्थर बरसाकर एक-दूसरे का सिर फोड़ा जाता है। इस दौरान लोग बुरी तरह घायल होते हैं। किसी की टांग टूटती है तो किसी की बाजू टूट जाती है। इसलिए घायलों का इलाज करने के लिए अस्पतालों में मेला शुरू होने से पहले ही तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। जिला प्रशासन द्वारा विशेष इंतजाम किए जाते हैं और पुलिस तैनात होती है।

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कब लगता है गोटमार मेला?

गोटमार मेला हर साल मनाया जाने वाला उत्सव है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा में यह अनूठा और विवादास्पद पारंपरिक उत्सव भाद्रपद अमावस्या यानी पोला पर्व के दूसरे दिन मनाया जाता है। जाम नदी के तट पर लगने वाले इस मेले में पांढुर्णा और सावरगांव गांवों के लोग एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। इस बार लगे मेले में करीब एक हजार लोग घायल हुए, जिनमें से 2 घायलों को नागपुर अस्पताल में रेफर किया गया।

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विधायक ने भी बरसाए पत्थर

बता दें कि इस बार 23 अगस्त को लगे मेले में पांढुर्णा विधायक नीलेश उइके ने भी हिस्सा लिया। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं के साथ पांढुर्णा की ओर से सावरगांव के खिलाड़ियों पर पथराव किया। जिला प्रशासन ने घायलों के इलाज के लिए 6 अस्थायी स्वास्थ्य केंद्र बनाए थे। 58 डॉक्टर और 200 मेडिकल स्टाफ तैनात किए। 600 पुलिस जवान तैनात रहे। कलेक्टर अजय देव शर्मा ने धारा 144 भी लागू की, लेकिन असर नहीं दिखा।

सैकड़ों साल पुरानी है परपंरा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सैकड़ों वर्ष पूर्व से चली आ रही परंपरा के अनुरूप पोला त्योहार के दूसरे दिन मनाया जाने वाला गोटमार मेला विश्व विख्यात उत्सव है। छिदंवाड़ा में मराठी भाषा बोलने वाले नागरिकों की बहुलता है और मराठी भाषा में गोटमार का अर्थ पत्थर मारना होता है। वहीं मेले के आयोजन और पत्थर मारने की परंपरा को लेकर कई किवदंतियां भी भारतीय समाज में प्रचलित हैं।

एक मान्यता प्रेम कहानी की

मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में पांढुर्णा नगर का एक युवक पड़ोसी गांव सावरगांव की एक युवती पर मोहित हो गया था, लेकिन इन दोनों के प्रेम प्रसंग को विवाह बंधन में बदलने के लिए लड़की वाले राजी नहीं हुए। युवक ने अपनी प्रेमिका को अपना जीवन साथी बनाने के लिए भागने की योजना बनाई। इसके लिए वह लाभप्रद अमावस्या के दिन लड़की को पांढुर्णा लाने के लिए सावरगांव गया।

युवक-युवती रास्ते में जाम नदी को पार कर रहे थे कि गांव के लोग जुट गए। लोगों ने लड़की के भागने की बात को अपनी प्रतिष्ठा पर आघात समझा और लड़के पर पत्थरों की बौछार कर दी। जैसे ही लड़के वालों को नदी पर हुए हंगामे का पता चला तो वे अपने बेटे को बचाने आए। उन्होंने भी लड़के के बचाव में पत्थरों की बौछार शुरू कर दी। पत्थरों की बौछारों से दोनों प्रमियों की मौत हो गई।

सावरगांव और पांढुर्णा के लोग जगत जननी मां चंडिका के परम भक्त थे, इसलिए दोनों गांवों के लोगों ने घटनाक्रम को शर्मिंदगी मानकर दोनों शवों को उठाकर किले पर मां चंडिका के दरबार में रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। मान्यता है कि इसी घटना की याद में मां चंडिका की पूजा-अर्चना करके गोटमार मेले के मनाए जाने की परिपाटी चली आ रही है।

हर साल की तरह इस साल भी पांढुर्णा नगर के प्रतिष्ठित कावले परिवार द्वारा जन सहयोग से पलाश का वृक्ष जंगल से लाकर घर पर पूजा-अर्चना करने के बाद सुबह 4 बजे दोनों पक्षों की सहमति से जाम नदी के बीच झंडे के रूप में गाड़ा गया। लगभग 80 हजार की आबादी वाले पांढुर्णा नगर और सावरगांव के बीचों-बीच जाम नदी बहती है। यहीं श्री राधा कृष्ण मंदिर वाले हिस्से में मेला लगता है।

धार्मिक भावनाओं से जुड़ा पत्थरों का युद्ध दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक पूरे शबाब पर होता है। मेले में प्रतिबंध के बावजूद खुलेआम बिकने वाली शराब मेले की भयावहता को बढ़ा देती है। हर आदमी एक अजीब से उन्माद में नजर आता है। घायल होने पर लोग मां चंडिका के मंदिर की भभूति घाव पर लगाकर दोबारा मैदान में उतर जाता है। मान्यता है कि भभूत लगाने पर चोट तत्काल ठीक हो जाती है।

पत्थरबाजी करते हुए दोनों गांवों के लोग पलाश के पेड़ को उखाड़कर लाने का प्रयास करते हैं। मान्यता है कि शाम के 6 बजे तक यदि पांढुर्णा गांव के योद्धा पलाश वृक्ष या उस पर लगे झंडे को मां के चरणों में अर्पित करते हैं तो वे विजयी हो जाते हैं और यदि वे झंडा तोड़कर नहीं ला पाते तो सावरगांव को विजयी माना जाता है। इसी के साथ गोटमार मेला समाप्त हो जाता है।


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