तब्लीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद पर साल 2020 में कोविड के दौरान महामारी फैलाने का आरोप लगा था। जिसके बाद काफी हंगामा मचा था और मौलाना के खिलाफ हजरत निजामुद्दीन पुलिस थाने में तत्कालीन इंस्पेक्टर ने एफआईआर कराई थी। इंस्पेक्टर ने आरोप लगाया था कि लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करते हुए मौलाना साद ने सोशल मीडिया के माध्यम से तब्लीगी जमात के साथियों को देश-विदेश से बुलाकार निजामुद्दीन मरकज में जमा किया था।
करीब 5 साल की जांच के बाद दिल्ली पुलिस ने मौलाना साद को पाक-साफ बताया है। पुलिस का कहना है कि मौलाना के जब्त किए गए लैपटॉप में जो बयान रिकॉर्ड हुए हैं उनकी जांच की गई थी। इन बयानों में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया है। उनके सभी बयान इस्लाम धर्म से जुड़े निकले हैं। जिसमें मौलाना साद मुसलमानों को बुरी बातों से रोकते हुए और अच्छी बातों पर अमल करने के लिए कह रहे हैं।
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जांच में शामिल नहीं हुए मौलाना साद
2020 से अब तक मौलाना साद दिल्ली पुलिस की जांच में शामिल नहीं हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक दिल्ली पुलिस ने जांच के दौरान मौलाना साद का लैपटॉप और कुछ चीजों को फारेंसिक जांच जमा किए गए थे। अभी इनकी जांच होना बाकी है। जिस लैपटॉप में मौलाना साद के बयान रिकॉर्ड हैं उसकी जांच पूरी कर ली गई है। सभी बयानों में आपत्तिजनक जैसा कुछ भी नहीं मिला है।
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दिल्ली हाई कोर्ट पहले ही दे चुका है राहत
इस मामले में पिछले महीने दिल्ली हाई कोर्ट ने भी फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात का मरकज है। कोविड महामारी की शुरुआत दौरान लोग इस मरकज में रह रहे थे। इस दौरान सरकार की तरफ कोविड की गाइडलाइन जारी की गई थी, ऐसे में मरकज में पहले से रह रहे लोगों ने कोविड नियमों का उल्लंघन नहीं किया है। कोर्ट ने जमात से जुड़े 70 लोगों के खिलाफ दर्ज 16 एफआईआर खारिज करने फैसला सुनाया था।
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