Delhi-NCR Earthquake: दिल्ली और नोएडा में आज सुबह 9:04 मिनट पर भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। ये झटके दिल्ली के अलावा, गुरुग्राम, फरीदाबाद और रोहतक, सिमसौर में भी महसूस किए गए थे। बता दें कि भूकंप लगातार 10 सेकंड तक आया था। इसके बाद दिल्ली और नोएडा में मेट्रो को भी 2 से 3 मिनट के लिए रोका गया था। दरअसल, जब भी भूकंप आता है, तो मेट्रो को सेफ्टी मेजर्स के तहत रोका जाता है। मगर ऐसा सामान्य पैसेंजर ट्रेनों के साथ क्यों नहीं होता है? आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
मेट्रो क्यों रोकी जाती है?
भूकंप के समय मेट्रो को यात्रियों की सुरक्षा के लिए रोका जाता है। बता दें कि अधिकांश मेट्रो अंडरग्राउंड होती है, ऐसे में मेट्रो चलने से सुरंगों और ट्रैक के क्षतिग्रस्त होने की संभावना रहती है। भूकंप के झटकों से मेट्रो डिरेल हो सकती है और कभी-कभी पटरियां भी टूट जाती है, जिससे बड़ा हादसा हो सकता है। मेट्रो अंडरग्राउंड और एलीवेटेड ट्रैक्स पर दौड़ती है, इसलिए भूकंप आने से पुल ढह सकते हैं, जो बड़ा हादसा कर सकती है।
कैसे रुकती है मेट्रो?
अधिकतर मेट्रो स्टेशनों के पास Earthquake Detection Sensor होता है, जिससे उन्हें भूकंप आते ही पता चल जाता है, जिससे वह तुरंत रुक जाती है। ट्रेन इस समय धीमी गति के साथ रुकती है और दोबारा तब शुरू होती है, जबतक पूरी तरह सुरक्षा की जांच न हो जाए।
ट्रेन क्यों नहीं रुकती है?
इसके कई कारण हो सकते हैं, जिनमे सबसे सामान्य वजह यह है कि मेट्रो हल्की होती है और ट्रेन हैवी वेट के साथ चलती है, जिस कारण उसे रोकना मुश्किल होता है। इतने भारी पैसेंजर ट्रेन को अचानक रोकने से ट्रेन के साथ खतरनाक हादसा हो सकता है। इसके अलावा, ट्रेन की स्पीड और मेट्रो की स्पीड में भी बहुत अंतर होता है। रेलगाड़ी के रोकने की प्रक्रिया एयर ब्रेकिंग सिस्टम से पूरी होती है, जिसमें ट्रेन को उसके डेस्टिनेशन पॉइंट से काफी पहले ही धीमा कर दिया जाता है, ताकि रोकने में आसानी हो।
टेक्निकल कारण क्या है?
मेट्रो को रोकने के लिए उसमें अलग तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। मेट्रो आधुनिक ब्रेक सिस्टम और भारतीय ट्रेन पारंपरिक तरीके से रोकी जाती है। मेट्रो को रिजनरेटिव ब्रेक्स और इलेक्ट्रिक ब्रेक्स की मदद से रोका जाता है, जिसमें ये कुछ सेकंड के अंदर ही रुक जाती है। रेलगाड़ी के 20 भारी कोच को रोकना मेट्रो की 8 हल्की कोच को रोकना कठिन काम होता है। ट्रेन की ब्रेक friction की मदद से लगाई जाती है। इसमें रेल पटरी और पहियों के बीच घर्षण बहुत कम होता है, जिससे ट्रेन का स्लो डाउन होने में समय लगता है। मेट्रो सिस्टम में ट्रैक पर रबर या मैगनेटिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे उसे घर्षण और नियंत्रण आसानी से हो जाता है।
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