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लखीसराय की ऐतिहासिक धरोहर को दुनिया भर में पहचान दिलाने की पहल, टूरिज्म को मिलेगी नई दिशा

लखीसराय की मिट्टी में छिपे इतिहास और संस्कृति को अब नई पहचान मिलने जा रही है। तीन दिन तक चले इस खास आयोजन में देश-विदेश से आए मेहमानों ने भाग लिया। इस पहल से लखीसराय को पर्यटन के नक्शे पर खास जगह दिलाने की कोशिश की जा रही है।

Lakhisarai tourism
लखीसराय में तीन दिन तक एक पर्यटन संगोष्ठी और विरासत विहार का आयोजन किया गया, जिसमें जिला प्रशासन, पर्यटन विभाग और बिहार फाउंडेशन ने सहयोग किया। इस कार्यक्रम की शुरुआत आज संगम होटल के सेमिनार हॉल में जिलाधिकारी मिथिलेश मिश्र ने दीप जलाकर और प्रार्थना करके की। पहले सत्र में देश-विदेश से आए बौद्ध भिक्षु, शोधकर्ता और छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। उनके उत्साह और समर्थन ने इस कार्यक्रम की महत्ता को और बढ़ा दिया।

जिलाधिकारी का संदेश और पर्यटन के विकास पर विचार

जिलाधिकारी मिथिलेश मिश्र ने कहा कि लखीसराय की ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर को दुनिया भर में पहचान दिलाना जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि इस कार्यक्रम से लखीसराय का पर्यटन और मजबूत होगा और भविष्य में यहां की सांस्कृतिक धरोहर के लिए नए मौके मिलेंगे। कार्यक्रम में सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, भूटान, तिब्बत और बोधगया से आए बौद्ध भिक्षुओं ने भी हिस्सा लिया, जिससे यह आयोजन अंतरराष्ट्रीय बन गया।

इतिहासकार का व्याख्यान और धरोहरों का महत्व

इतिहासकार अशोक कुमार सिंह ने अपने भाषण में लखीसराय के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि उरेन, धनौरी, लाली पहाड़ी और सहमालपुर जैसे गांवों में बौद्ध धर्म से जुड़ी ऐतिहासिक धरोहरें मिली हैं। ये जगहें कभी बौद्ध शिक्षा और साधना का महत्वपूर्ण केंद्र थीं। इसके अलावा जिला प्रशासन ने पर्यटन के विकास के लिए नई सुविधाएं बनाने की योजना पर भी चर्चा की।

संगोष्ठी का उद्देश्य और आगामी सत्रों की योजना

तीन दिन चलने वाले इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य लखीसराय की ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को संजोना और पर्यटन के जरिये इसे दुनिया भर में पहचान दिलाना है। अगले सत्रों में लखीसराय के पुरानी जगहों का दौरा और शोध पर आधारित प्रस्तुतियां होंगी। इस कार्यक्रम में उप विकास आयुक्त सुमित कुमार, जिला पर्यटन प्रभारी शशि कुमार और अन्य बड़े अधिकारी भी मौजूद थे।


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