अब तक हम सोचते थे कि शरीर मर गया तो हर कोशिका खत्म, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने मौत की परिभाषा ही बदल दी है. टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने साबित कर दिया कि मरी हुई कोशिकाएं भी नई जिंदगी की तलाश में खुद को बदल लेती हैं. इसे उन्होंने 'थर्ड स्टेट' का नाम दिया, इसका मतलब है कि कोशिकाएं न पूरी तरह जिंदा होती हैं और न ही पूरी तरह मुर्दा. नेचर जर्नल में छपी इस रिसर्च ने अब दुनिया में तहलका मचा दिया है.
सड़ने की बजाए 'जेनोबॉट' बन गई कोशिकाएं
सबसे पहले अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अफ्रीकी मेंढक (Xenopus laevis) के मृत भ्रूण से त्वचा की कोशिकाएं निकालीं. लैब की प्लेट में रखा तो उम्मीद थी कि सड़ जाएंगी, लेकिन कोशिकाएं आपस में चिपक गईं और छोटे-छोटे रोबोट जैसे जीव बन गईं, जिसे जेनोबॉट का नाम दिया गया. ये जेनोबॉट सिर्फ 0.5 से 1 मिलीमीटर के होते हैं, खुद चलते हैं, घाव भरते हैं और सबसे चौंकाने वाली बात ये कि आसपास की ढीली कोशिकाओं को इकट्ठा कर अपने जैसे नए जेनोबॉट पैदा कर देते हैं.
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इंसानी कोशिकाओं पर भी हुआ कमाल
अब यह कमाल इंसानी कोशिकाओं पर भी देखा गया है. मृत व्यक्ति के फेफड़ों से ली गई कोशिकाएं लैब में 'एंथ्रोबॉट' नाम के छोटे गोले बन गईं. ये गोले पानी में तैरते हैं, क्षतिग्रस्त नर्व सेल्स को जोड़ते हैं और ऊतक दोबारा बनाते हैं. खास यह कि कोई डीएनए बदलाव नहीं किया गया, बस कोशिकाओं को बिना शरीर के दबाव के आजादी दी तो वे क्रिएटिव हो गईं. शोध बताता है कि मौत के बाद कोशिकाएं प्लास्टिक हो जाती हैं. आसान भाषा में कहें तो खुद को रीबूट कर नया रूप ले लेती हैं.
आने वाले समय में ट्रांसप्लांट की नहीं होगी जरूरत
वैज्ञानिक कहते हैं कि यह स्टेम सेल थेरेपी से कहीं आगे है, क्योंकि यहां कोशिकाएं खुद सोचती-समझती हैं. टफ्ट्स के माइकल लेविन जैसे विशेषज्ञ मानते हैं कि शरीर मरने के बाद भी कोशिकाओं में क्रिएटिविटी बाकी रहती है. आने वाले दशक में यह खोज ट्रांसप्लांट की जरूरत खत्म कर देगी.