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Science News: छत पर कॉफी पीती हुई महिला से टकराया उल्कापिंड

Science News: यूं तो पृथ्वी पर हर दिन सैकड़ों की संख्या में उल्कापिंड आते हैं परन्तु ऐसा बहुत ही दुर्लभ होता है कि वे किसी इंसान के शरीर से टकरा जाए। ऐसी ही एक घटना हाल ही में फ्रांस में हुई है। यहां एक महिला अपने दोस्त के साथ छत पर कॉफी पीते समय उल्कापिंड […]

Science News: यूं तो पृथ्वी पर हर दिन सैकड़ों की संख्या में उल्कापिंड आते हैं परन्तु ऐसा बहुत ही दुर्लभ होता है कि वे किसी इंसान के शरीर से टकरा जाए। ऐसी ही एक घटना हाल ही में फ्रांस में हुई है। यहां एक महिला अपने दोस्त के साथ छत पर कॉफी पीते समय उल्कापिंड की चपेट में आ गई। स्थानीय अखबार लेस डेर्निएरेस नोवेल्स डी'अलसैस (डीएनए) के मुताबिक, महिला की पसलियों में एक रहस्यमयी कंकड़ लगा था। अखबार में महिला के हवाले से कहा गया है कि मैंने पास वाली छत से तेज आवाज सुनी। इसके तुरंत बाद ही मुझे पसलियों पर झटका अनुभव हुआ। ऐसा लगा कि चमगादड़ जैसा कोई जानवर है। बाद में देखा तो एक सीमेंट के टुकड़े जैसा कुछ मिला लेकिन इसमें रंग नहीं था। महिला ने बाद में छत बनाने वाले एक लोकल जानकार से जब इसकी जांच कराई तो उसने इसे उल्कापिंड बताया। इसके बाद, उसने भूविज्ञानी डॉ. थिएरी रेबमैन से चट्टान की जांच कराई, जिन्होंने इसकी अतिरिक्त-स्थलीय उत्पत्ति की पुष्टि की। यह भी पढ़ें: वैज्ञानिकों ने शुक्र ग्रह में जीवन होने का किया दावा, बताई ये वजह रेबमैन ने कहा कि चट्टान में लोहे और सिलिकॉन का मिश्रण है और यह एक उल्कापिंड हो सकता है। अखबार की रिपोर्ट में बताया गया है कि उल्कापिंड के जो टुकड़े बरामद किए गए हैं, उनका वजन 100 ग्राम से अधिक है। रेबमैन के अनुसार ऐसी वस्तुओं से लोगों के टकराने की घटना बेहद दुर्लभ है।

पहला मामला 1954 में दर्ज किया गया था

मीडिया रिपोर्ट्स (Science News) के अनुसार उल्कापिंड के सीधे किसी व्यक्ति से टकराने का पहला पुष्ट मामला 1954 में अमेरिका में हुआ था, जहां एक महिला 3.6 किलोग्राम के पत्थर वाले उल्कापिंड की चपेट में आ गई थी, जो उसकी छत से टकराकर गिर गया था, इससे वह गंभीर रूप से घायल हो गई थी। उल्लेखनीय है कि उल्कापिंड "अंतरिक्ष में घूमती हुई चट्टानें" हैं जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल में बंधकर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं और जमीन से टकराते हैं। इनका आकार धूल के कणों से लेकर कई मीटर तक का हो सकता है। नासा के अनुसार, हर दिन लगभग 50 टन उल्कापिंड सामग्री पृथ्वी पर गिरने का अनुमान है।


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