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इसलिए बेंगलुरु में बनाया गया था ISRO का हैडक्वार्टर, ये है इसरो की पूरी कहानी

पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह तक पहुंच कर और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान की सफलतापूर्वक लैंडिंग करवाकर ISRO ने इतिहास रच दिया है। भारतीय स्पेस एजेंसी द्वारा एक के बाद एक लगातार अर्जित की जा रही सफलताओं ने पूरे विश्व का ध्यान भारत की ओर आकर्षित किया है। ऐसे में सभी लोग […]

पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह तक पहुंच कर और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान की सफलतापूर्वक लैंडिंग करवाकर ISRO ने इतिहास रच दिया है। भारतीय स्पेस एजेंसी द्वारा एक के बाद एक लगातार अर्जित की जा रही सफलताओं ने पूरे विश्व का ध्यान भारत की ओर आकर्षित किया है। ऐसे में सभी लोग सीमित संसाधनों में हासिल की गई असाधारण उपलब्धियों के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को सराह रहे हैं। आइए जानते हैं इसरो के बारे में ISRO की कहानी देश की आजादी के लगभग डेढ़ दशक बाद शुरु हुई थी। वर्ष 1962 में विक्रम साराभाई ने देश में स्पेस रिसर्च शुरू करने के लिए भारत में एक सरकारी इंस्टीट्यूट बनाने का विचार रखा। इस विचार को मूर्त रूप देते हुए 15 अगस्त 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization) की स्थापना की गई। अब तक इसरो के कुल 25 सब-सेंटर्स स्थापित किए जा चुके हैं। यह भी पढ़ें: ISRO ने जारी किया प्रज्ञान रोवर का वीडियो, इस तरह लैंडर से बाहर निकल कर चंद्रमा की सतह पर चला इसरो की स्थापना के पांच वर्ष बाद भारत ने अपना पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट एक सोवियत रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा। वर्ष 1979 में देश ने अपना पहला रॉकेट बनाया जिसे सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-3 (SLV-3) नाम दिया गया था। धीरे-धीरे देश के वैज्ञानिकों ने अपनी मेहनत और रिसर्च के जरिए देश को अंतरिक्ष विज्ञान में बुलंदियों तक पहुंचा दिया।

पहले बेंगलुरु में नहीं था ISRO का ऑफिस

इसरो का ऑफिस बेंगलुरु लाने के पीछे भी एक कहानी छिपी है। पहले इसरो का हैडक्वार्टर इस शहर में नहीं था। वरिष्ठ वैज्ञानिक सतीश धवन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने इसरो का हैडक्वार्टर बेंगलुरु ले जाने का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने तुरंत ही स्वीकार कर लिया। विज्ञान के क्षेत्र में उनके द्वारा दिए गए योगदान को देखते हुए श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष केंद्र का नामकरण भी सतीश धवन के नाम पर किया गया।

इसलिए बेंगलुरु लाया गया इसरो का ऑफिस

धवन का कहना था कि बेंगलुरु में स्पेस रिसर्च एकेडमी के लिए जरूरी सभी इंफ्रास्ट्रक्चर है। यहां पर वर्ष 1940 में हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट (अब एरोनेटिस्क) लिमिटेड की स्थापना की गई थी। इसके बाद 1942 में IISC को बेंगलुरु में स्थापित किया गया था। सतीश धवन इसी आईआईएससी के निदेशक थे। इस तरह इसरो के इस शहर में आने से सभी जरूरी चीजें एक ही जगह पर मिल गई थी, जिसके बाद देश ने अंतरिक्ष विज्ञान में सफलता की नई कहानियां लिखनी शुरू कर दी। यह भी पढ़ें: 2 सितंबर को सूर्य की यात्रा पर निकलेगा Aditya-L1, ऐसा करने वाला अमरीका के बाद दूसरा देश होगा भारत

ISRO से जुड़े रोचक तथ्य

  • इसरो की गिनती दुनिया की छह सबसे बड़े स्पेस रिसर्च एकेडमियों में की जाती है।
  • इसरो ने 2017 में अपने रॉकेट PSLV C37 से एक साथ 104 सैटेलाइट लॉन्च कर एक नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया था जिसे 2021 स्पेसएक्स ने तोड़ा।
  • पूरे विश्व में कम्यूनिकेशन सैटेलाइट्स और रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट्स को कंट्रोल करने वाली संस्थाओं में इसरो का नाम टॉप पांच एजेंसियों में शामिल है।
  • सैटेलाइट ल़ॉन्च करने के लिए इसरो ने देश में तीन जगहों (1) बेंगलुरु, (2) श्रीहरिकोटा तथा (3) तिरुवनंतपुरम में लॉन्चिंग सेंटर स्थापित किए हैं।


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