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Yogini Ekadashi Paran: किस दिन और कब होगा योगिनी एकादशी का पारण? जानें व्रत तोड़ने का सही मुहूर्त और विधि

Yogini Ekadashi Paran: हिन्दू धर्म की मान्यताओं और आचार्यों के अनुसार, एकादशी व्रत का सही विधि से पालन करना बेहद बहुत जरूरी है, जिसमें पारण करना यानी व्रत तोड़ना काफी महत्व रखता है। आइए जानते हैं कि योगिनी एकादशी का व्रत तोड़ने का सही मुहूर्त और उचित विधि क्या है?

Yogini Ekadashi Paran: साल की सभी 24 एकादशियों में से आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी कहते हैं। भगवान विष्णु को समर्पित है। इस एकादशी का व्रत रखने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के पुण्य के साथ सभी पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। द्रिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 21 जून को सुबह 7:18 AM बजे शुरू होगी और 22 जून को सुबह 4:27 AM बजे समाप्त होगी. आपको बता दें कि चूंकि एकादशी की उदयातिथि 21 जून को है, इसलिए योगिनी एकादशी का व्रत 21 जून को रखा जाएगा।

कब तोड़ें योगिनी एकादशी व्रत?

सनातन पंचांग के अनुसार, योगिनी एकादशी का पारण यानी व्रत तोड़ने की प्रक्रिया 22 जून को दोपहर बाद की जाएगी। द्रिक पंचांग के अनुसार, पारण करें यानी व्रत तोड़ने का सही समय दोपहर बाद 01:47 PM से 04:35 PM के बीच है। इस व्रत को रखने वाले व्रतियों को इस व्रत को तोड़ने के लिए कुल 48 मिनट का समय मिलेगा। आपको बता दें कि 22 जून को यानी पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय सुबह में 09:41 AM है। ये भी पढ़ें: कड़ी मेहनत के बाद भी नहीं मिल रहा मनचाहा फल? ये असरदार वास्तु उपाय बनाएंगे बिगड़े काम

क्या है योगिनी एकादशी व्रत तोड़ने की विधि?

पारण का अर्थ है, उपवास को विधिपूर्वक समाप्त करना। यह एकादशी व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को किया जाता है। मान्यता है कि यदि व्रती पारण नहीं करता या अनुचित समय पर करता है, तो शास्त्रों के अनुसार व्रत का फल अधूरा रह जाता है। आइए जानते हैं कि योगिनी एकादशी व्रत तोड़ने की विधि क्या है?
  • पारण का समय बहुत सीमित होता है। एकादशी का पारण हमेशा द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद उचित समय पर करना चाहिए।
  • यह हमेशा द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले होना चाहिए।
  • व्रत तोड़ने से पहले स्नान कर श्रीहरि विष्णु की पूजा और ध्यान करना चाहिए।
  • तुलसी को जल अर्पित कर कुछ तुलसी दल तोड़ लेना चाहिए।
  • तुलसी दल को भगवान को अर्पित कर स्वयं तुलसी दल ग्रहण करना चाहिए।
  • व्रत खोलने के लिए हल्का और सात्विक आहार लेना चाहिए, लेकिन इसमें चावल का होना अनिवार्य है।
  • पारण हमेशा हरि वासर समाप्त होने के बाद ही करना चाहिए।
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