कांवड़ क्या है?
बांस की लकड़ी से बने एक डंडे, जिसके दोनों सिरों पर डोरियों के सहारे दो कलश लटके होते हैं, को कांवड़ कहते हैं। इन कलशों में गंगा, नर्मदा, क्षिप्रा जैसी पवित्र नदियों का जल भरा होता है, जिसे कंधे पर ढोकर यात्रा की जाती है। बांस न मिलने पर शुभ लकड़ियों से भी कांवड़ बनाए जाते हैं। कांवड़ को रंग-बिरंगे चमकीले पताकों और फूलों से सजाया जाता है। इस पर भगवान शिव के प्रतीक उनसे संबंधित चीजें, जैसे त्रिशूल, नाग, नंदी बैल और शिवलिंग आदि भी जड़े जाते हैं, जो धातु, लकड़ी या प्लास्टिक के होते हैं।कांवड़ यात्रा का महत्व
कब शुरू होगी कांवड़ यात्रा?
साल 2024 में सावन की शुरुआत ही सोमवार 22 जुलाई से हो रही है। इसलिए भगवान शिव का पहला जलाभिषेक इस दिन ही होगा। इसके लिए कांवड़ यात्रा की शुरुआत शुभ दिन और मुहूर्त में 18 जुलाई से ही शुरू हो जाएगी। पंडितों के मुताबिक लंबी यात्रा करने वालों के लिए आषाढ़ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानी भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत का दिन सर्वोत्तम है, ताकि वे सोमवार को बाबा भोलेनाथ को जल अर्पित कर सकें। साल 2024 की आषाढ़ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 18 जुलाई, 2024 को पड़ रही है। कम दूरी यात्रा करने वाले भक्त चतुर्दशी तिथि और उससे भी कम दूरी तक जाने वाले श्रद्धालु पूर्णिमा के दिन अपनी कांवड़ यात्रा आरंभ कर सकते हैं, ताकि वे समय पर यानी सावन के पहले सोमवार को शिवजी का जलाभिषेक कर पाएं। कांवड़िया को त्रयोदशी, चतुर्दशी या पूर्णिमा तिथि का निर्धारण यात्रा की दूरी और अपने पैदल चलने की क्षमता के अनुसार करनी चाहिए। बता दें, कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ सहित खुद की शुचिता और पवित्रता ध्यान रखना बहुत जरूरी है। ये भी पढ़ें: Chaturmas 2024: इन 4 माह में किन देवी-देवताओं की पूजा से लाभ? सो रहे हैं भगवान विष्णु ये भी पढ़ें: सावन में इस शिवलिंग की पूजा से पूरी होंगी मनोकामनाएं, जानें कितने तरह के होते हैं शिवलिंग
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।