Rath Yatra 2025: पुरी में इस समय महाप्रभु जगन्नाथ का सबसे बड़ा पर्व रथयात्रा मनाया जा रहा है। इस त्योहार को पूरे 9 दिनों तक मनाया जाता है। इन दिनों में अलग-अलग रस्में भी निभाई जाती है। बता दें कि रथयात्रा का त्योहार विश्व का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है, जिसमें एक साथ दुनिया के लाखों लोग शामिल होते हैं। इस यात्रा के लिए भगवान अपने मंदिर से बाहर आते हैं, ताकि सभी भक्तों को दर्शन दे सके। कहते हैं कि यह इकलौते ऐसे देव है, जो अपने मंदिर से बाहर आते हैं।
इस यात्रा की शुरुआत श्रीमंदिर के बड़ा दांड से होती है, जो सीधे श्री गुंडिचा मंदिर तक जाती है। गुंडिचा मंदिर भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर होता है। प्रभु अगले 7 दिनों तक यहां रुकते हैं। इस बीच आड़पा मंडप की रस्म निभाई जाती है। आइए जानते हैं इसके बारे में।
क्या है आड़पा मंडप रस्म?
यह रस्म मौसी के घर जाने से पहले निभाई जाती है, जिसकी शुरुआत 29 जून को हो चुकी है। रविवार की शाम इसकी शुरुआत होती है। इस रस्म में प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को गुंडिचा मंदिर में ले जाया जाता है। इस अनुष्ठान को 'अदापा मंडप बिजे' के नाम से भी जाना जाता है। कथाओं के अनुसार, गुंडिचा मंदिर भगवान का जन्मस्थान होता है। इस साल यह रस्म सोमवार तक आगे बढ़ गई है क्योंकि रथों को दो दिनों तक खींचा गया था।
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विशेष मंडप में बैठते हैं महाप्रभु
इस रस्म के अनुसार, गुंडिचा मंदिर के गर्भगृह में एक विशेष मंच तैयार किया जाता है, जिसे आड़पा मंडप या जन्म बेदी कहा जाता है। देवी-देवताओं की मौसी के घर पर 7 दिनों तक रहने के लिए इस खास जगह को तैयार किया जाता है।
क्यों खास है यह रस्म?
आड़पा मंडप में इन भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन के दर्शन करने से मोक्ष मिलता है और सौ जन्मों का पाप मिटता है। भगवान जगन्नाथ की हर दिन होने वाले अनुष्ठान जो श्रीमंदिर में होते हैं, वह सभी इस मंदिर में होते हैं जैसे की उनकी प्रति दिन 6 बार प्रसाद की रस्म और मंगल आरती। यहां भोग के लिए खासतौर पर आड़पा अबड़ा बनाया जाता है।
कैसे होती है रस्में?
इस रस्म में सबसे पहले चक्रराज सुन्दर चक्र यानी सुदर्शन को मंदिर में ले जाया जाता है और उसी क्रम से तीनों भाई-बहन मंदिर में पाहंडी बिजे की धुनों के साथ ताहिया पर बिठाकर मंदिर के अंदर ले जाया जाता है। इस रस्म के बाद शाम को संध्या दर्शन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त मंदिर आते हैं। इस आरती में हिस्सा लेने से भी पुण्य मिलता है।
कब समाप्त होगी रथयात्रा?
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा 27 जून को शुरू हुई थी। 9 दिनों तक चलने वाले इस पर्व का आखिरी दिन 8 जुलाई को होगा। बाहुड़ा यात्रा 5 जुलाई को मनाई जाएगी, जिस दिन प्रभु मौसी का घर छोड़ वापस श्रीमंदिर की ओर बढ़ते हैं।
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