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Ram Katha: बचपन में ऐसी थी बालक राम और भाइयों की शरारतें, जानें रामकथा के मनमोहक दुर्लभ प्रसंग

Ram Katha: कहते हैं, त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने जब राम रूप में जन्म लिया तो अयोध्या आनंद और प्रकाश से भर उठी. माता कौशल्या की गोद में आते ही शिशु राम का दिव्य स्वरूप सबके हृदय को शांति से भर देता था. आइए जानते हैं, कैसा था बालक राम का बचपन और उनकी लीलाएं?

Ram Katha: तुलसीदास जी रामचरित मानस में लिखते हैं कि त्रेतायुग में जब भगवान विष्णु ने अपने सातवें अवतार में राम रूप धारण कर राजा दशरथ और माता कौशल्या के आंगन में जन्म लिया, तो अयोध्या जैसे एक दिव्य आलोक से भर उठी थी. हर गली में मंगल गीत फूट पड़े थे. राजमहल से लेकर साधारण झोपड़ी तक, सबके हृदय में एक ही भावना थी कि आज कुछ अत्यंत शुभ घटित हुआ है. कौशल्या माता ने जब पहली बार शिशु राम को गोद में लिया, तो ऐसा लगा जैसे करुणा और शांति स्वयं उनके द्वार आकर ठहर गई हो. आइए जानते हैं, कैसा था बालक राम का बचपन और उनकी लीलाएं?

ठुमक-ठुमक चलत रामचंद्र

बालक राम की चाल किसी साधारण बालक जैसी नहीं थी. जब वे अपने नन्हें पांव उठाकर महल में चलते थे, तो उनकी पायल की मधुर झंकार पूरे वातावरण को मोह लेती थी. उनके हर कदम में मर्यादा थी. किसी चीज को छूना भी उनके लिए मानो किसी अनुष्ठान जैसा था. तुलसीदास ने इसलिए लिखा- 'ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां, किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय, धाय मात गोद लेत दशरथ की रनियां….' राम का बचपन चंचलता से अधिक शांति और माधुर्य का प्रतीक था. उनकी मुस्कान में ऐसी कोमलता और ऐसा सौम्य तेज था, जो देखने वाले को सहज ही मोहित कर लेती थीं.

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प्रभु लीला के लिए देवता भी तरसते थे

राम की बाल-लीला इतनी मनोहर थी कि देवता तक उसे देखने को तरस उठते थे. कहते हैं भगवान शंकर स्वयं वृद्ध ब्राह्मण बनकर दर्शन के लिए आए थे. पार्वती जी ने भी उनके साथ खड़े होकर बालक को निहारते हुए कहा- 'ऐसा दिव्य रूप तो सृष्टि में दुर्लभ है.' हनुमान जी भी वानर वेश छोड़कर शांत बालक के चरणों में वंदना करने पहुंचे थे. जहां-कहीं भी राम की कोमल हंसी की ध्वनि सुनाई देती, वहां देवताओं के मन तक आनंद की तरंगें पहुंच जाती थीं.

राम लीला देती है ये संदेश

राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न, जब चारों भाई एक साथ खेलते तो पूरा अयोध्या का वातावरण खिल उठता था. ये खेल कभी तीर-कमान के होते, तो कभी मिट्टी के छोटे-छोटे महल बनाने के और कभी लुका-छिपी खेलने के. बहुत बार ऐसा होता कि राजा दशरथ बुलाते, पर बालक समाज के बीच खेलने में मगन भाई जाने को तैयार ही नहीं होते थे. अंत में माता कौशल्या या सुमित्रा आकर उन्हें प्यार से मनातीं. इस दृश्य का गहरा संकेत है राम तभी आते हैं जब 'ज्ञान' यानी दशरथ पर 'भक्ति' यानी कौशल्या की कृपा होती है.

बालक राम के स्वभाव से सीख

राम की बाल-लीला हमें सिखाती है कि ईश्वर की प्राप्ति कठिन तपस्या से नहीं होती. उन हृदयों में निवास करते हैं जहां सरलता, प्रेम और अनुराग हो. उनकी हर छोटी चेष्टा बताती है कि मर्यादा और प्रेम ही जीवन का वास्तविक सौंदर्य है.

शांति भी आकर्षक होती है

राम का बचपन यह भी दर्शाता है कि बच्चे में शांति भी आकर्षक हो सकती है, अनुशासन भी हंसी की तरह सुंदर होता है और विनम्रता भी प्रभाव पैदा करती है. भगवान राम अपनी दिव्यता दिखाकर भक्त को चमत्कृत नहीं करते, बल्कि प्रेम से अपनापन देते हैं.

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।


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