क्यों नहीं खोला जाता है पुरी का रत्न भंडार?
पुरी के रत्न भंडार को लेकर धार्मिक मान्यताएं हैं कि रत्न भंडार भगवान जगन्नाथ का निजी खजाना है, इसे खोलने से देवता नाराज हो सकते हैं। इसे लेकर लोगों में अभिशाप का भी डर है, लोगों का मानना है कि रत्न भंडार पर श्राप है और इसे खोलने से बुरी घटनाएं हो सकती हैं। वहीं, एक डर यह है जताया जाता रहा है कि मंदिर रत्न भंडार में इतने अमूल्य रत्न और आभूषण हैं कि लोगों की आंखें चौंधिया जाएंगी, कुछ लोगों के दिल में लालच पैदा हो सकता है। वहीं, कुछ लोगों को डर है कि इसे खोलने से चोरी या क्षति हो सकती है।रत्न भंडार क्या है?
जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। तभी से एक विशेष कक्ष, जिसे रत्न भंडार कहते हैं, में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र तथा देवी सुभद्रा के बहुमूल्य आभूषण और उपहार जमा हैं। इस रत्न भंडार कक्ष के भी दो हैं, भीतरी भंडार और बाह्य भंडार। बाहरी कक्ष को प्रमुख अनुष्ठानों एवं त्योहारों के दौरान देवताओं के आभूषण लाने हेतु नियमित रूप से खोला जाता है, जबकि आंतरिक कक्ष को विगत 45 वर्षों में नहीं खोला गया है। बताया जा रहा था कि चाबियां गुम हो गई थी। आखिरी बार यहां 1978 में उपहारों और सामग्रियों की लिस्ट बनाई गई थी।कितना सोना है जगन्नाथ मंदिर में?
ये है मंदिर के खजाने का इतिहास
महाप्रभु भगवान जगन्नाथ की भक्ति ने कई राजवंशों चाहे वह केशरी, गंग या भोई राजवंश के राजा हों और यहां तक कि नेपाल के शासक, सभी ने भगवान जगन्नाथ को सोना, चांदी, हीरे, अन्य कीमती रत्न और शालग्राम जैसी बहुमूल्य वस्तुएं दान कीं। मंदिर के इतिहास, मदाला पंजी में भी दान के बारे में बताया गया है। मंदिर के जया-विजय द्वार पर एक शिलालेख में उल्लेख है कि गजपति राजा कपिलेंद्र देव ने दक्षिणी राज्यों पर विजय प्राप्त करने के बाद 16 हाथियों की पीठ पर अपने साथ लाए गए सभी धन और रत्नों को मंदिर को दान कर दिया था। तीनों देवताओं की सुना बेशा या स्वर्ण पोशाक कपिलेंद्र देव के शासनकाल के दौरान शुरू हुई थी। साथ ही यहां एक कुआं है, जिसमें सोने की सीढ़ियां लगी हैं। इसे केरल के राजा ने दान में दिया था।ब्रिटिश शासन ने तैयार करवायी थी पहली रिपोर्ट
ओडिशा में ब्रिटिश शासन के दौरान रत्न भंडार का पहला आधिकारिक विवरण ‘जगन्नाथ मंदिर पर रिपोर्ट’ में दर्ज किया गया था, जिसे पुरी के तत्कालीन कलेक्टर चार्ल्स ग्रोम ने तैयार किया था। रिपोर्ट में सोने और चांदी के 64 आभूषणों की गिनती की गई थी, सोने के सिक्के 128, अलग-अलग तरह के सोने के 24 मोहर, चांदी के 1,297 सिक्के, तांबे के 106 सिक्के और 1,333 तरह के कपड़े थे। इसके बाद 1926 में पुरी के राजा द्वारा स्वीकार किए गए आभूषणों की एक सूची पुरी कलेक्टरेट के रिकॉर्ड रूम में रखी गई थी। 1952 में जब मंदिर के प्रशासन को अपने हाथ में लेने के लिए श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन अधिनियम और श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन नियम बनाए गए थे तब रत्न भंडार के बाहरी कक्ष में 150 सोने के आभूषण और 180 तरह के आभूषण (जिनमें से कुछ का वजन 100 तोला से अधिक था और प्रत्येक तोला 11.6638 ग्राम के बराबर था) और वही भीतरी भंडार में 146 चांदी की वस्तुओं का उल्लेख है। ये भी पढ़ें: Rath Yatra 2024: भगवान जगन्नाथ की मौसी कौन हैं; जिनके घर गुंडिचा मंदिर में 9 दिन ठहरेंगे महाप्रभु ये भी पढ़ें: भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा से जुड़ीं 10 खास बातें, शंखचूड़ रस्सी से खींचा जाएगा रथ
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