Premanand Ji Maharaj Viral Video: अक्सर जब हम भोग बनाते हैं तो हमारे मन में यह विचार आता है कि भोजन स्वादिष्ट बना है या नहीं कहीं नमक ज्यादा तो नहीं हो गया, मिठास अधिक तो नहीं हो गई? शास्त्रों में माना जाता है कि भगवान को जो भोग अर्पित किया जाता है वह सबसे शुद्ध, प्रेमपूर्ण और निर्मल होना चाहिए। यदि भोजन को पहले ही चख लिया जाए तो वह ‘जूठा’ माना जाता है और भगवान को अर्पित करने योग्य नहीं होता।
लेकिन जब एक महिला ने यह प्रश्न संत प्रेमानंद जी महाराज से किया तो उनका उत्तर इस भावना से भरा हुआ था जो हमारे और भगवान के बीच के प्रेम की गहराई को दर्शाता है।
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क्या कहते हैं संत प्रेमानंद जी महाराज?
संत प्रेमानंद जी महाराज का मानना है कि यदि आप भगवान के लिए भोजन बना रहे हैं तो उसमें प्रेम और परिपूर्ण होना चाहिए। उनका कहना है कि भोग को चढ़ाने से पहले आपको अवश्य यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भोजन में नमक, मिर्च, मिठास सब सही मात्रा में है या नहीं।
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इसके लिए वे सलाह देते हैं कि सबसे पहले एक कटोरी में थोड़ा सा भोजन निकालें और उसे खुद चखें। अगर भोजन स्वादिष्ट बना हो तो हाथ-मुंह अच्छे से धोकर भगवान के लिए भोग अलग से निकालें। फिर आंखें बंद करके प्रभु से प्रेमपूर्वक कहें जो भी मैंने आपके लिए प्रेम से बनाया है कृपया उसे स्वीकार करें।
ब्रज की विशेष परंपरा
संत प्रेमानंद जी बताते हैं कि सामान्यतः रीत यही है कि भोग पहले भगवान को अर्पण करें फिर स्वयं उसका सेवन करें। लेकिन ब्रज में एक विशेष परंपरा है वहां के लोग पहले स्वयं भोजन चखते हैं यह देखने के लिए कि भोजन श्रीजी को कैसा लगेगा फिर उसे भोग के रूप में प्रभु को अर्पित करते है।
क्यों है यह परंपरा विशेष?
यह परंपरा केवल भोजन के स्वाद की जांच नहीं है बल्कि यह भगवान के साथ गहरे आत्मीय और सखा-भाव की अभिव्यक्ति है। ब्रज में भगवान को केवल देवता नहीं बल्कि प्रियतम, सखा और परिवार के सदस्य की तरह माना जाता है।
कुछ महत्वपूर्ण बातें
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भोजन बनाते समय शुद्धता, एकाग्रता और भक्ति का होना बेहद जरूरी है।
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भगवान से प्रेम का रिश्ता बनाएं, डर या अज्ञान से नहीं।