Trendingipl auctionPollutionparliament

---विज्ञापन---

Masane Ki Holi : यहां चिताओं की राख से खेली जाती है होली, जानिए क्या है इसका महत्व?

Masane Ki Holi: रंग, अबीर और गुलाल की तरह ही उत्तर प्रदेश की वाराणसी में चिताओं की राख से होली खेली जाती है। इसे मसाने की होली के नाम से जाना जाता है। इसमें शिव भक्तों से लेकर अघोरी, किन्नर आदि सभी शामिल होते हैं।

मसान की होली
Masane Ki Holi: भगवान शिव की नगरी वाराणसी में रंग, गुलाल ही नहीं चिताओं की राख से भी होली खेली जाती है। इसे मसान की होली के नाम से भी जाना जाता है। बनारस के मणिकर्णिका घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती के बाद मसाने की होली की शुरुआत होती है। इस होली में साधु-संतों के साथ ही किन्नर, शिवभक्त आदि सभी चिताओं की राख से होली खेलते हैं। इस दौरान पूरा घाट हर-हर महादेव के जयकारों से गूंज उठता है। धार्मिक मान्यता है कि इस चिताओं की भस्म से होली खेलने से जीवन में सुख-समृद्धि और भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है। मसान की होली के दिन अघोरी साधु इस अनूठी परंपरा में भाग लेते हैं। ये साधु चिताओं की भस्म अपने शरीर पर लगाते हैं। इसके साथ ही भगवान शिव की आराधना करते हैं। अघोरियों का यह मानना होता है कि यह मृत्यु का उत्सव है और मृत्यु से ही मुक्ति मिलती है। अघोरी साधु इस दिन भांग और चिता की राख को भी भोलेनाथ के प्रसाद की तरह अपनाते हैं। इस दिन भगवान शिव की बारात के रूप में नागा साधु, तांत्रिक और अघोरी साधु, काशी की गलियों से होते हुए मणिकर्णिका घाट पहुंचते हैं।

कब है मसान की होली उत्सव?

साल 2025 में मसान की होली उत्सव रंगभरी एकादशी के अगले दिन यानी 11 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। बनारस में रंगभरी एकादशी से ही होली का उत्सव शुरू हो जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार हरिश्चद्रं और मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव स्वयं अपने गणों के साथ यह होली खेलने आते हैं।

क्यों मनाई जाती है यह होली?

रंगभरी एकादशी के दिन माता पार्वती का गौना कराकर भगवान शिव उनको ससुराल यानी काशी विश्वनाथ मंदिर में लाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब भगवान शिव माता पार्वती को उनके मायके से विदा कराकर लाए थे तो काशी में रंग, अबीर और गुलाल से जमकर होली खेली गई थी। इसमें भगवान शिव के गणों ने उनके साथ रंग, अबीर और गुलाल से खूब होली खेली थी, लेकिन वे भूत-पिशाचों के साथ होली नहीं खेल पाए थे। भगवान शिव को संघारकर्ता माना जाता है। वे श्मशाम से स्वामी हैं। अपने गण भूत-प्रेतों के साथ होली खेलने के लिए भगवान शिव स्वयं रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन श्मशान घाट पर आए थे और चिताओं की भस्म से होली खेली थी। उस दिन से आजतक यह परंपरा निभाई जाती है। आज भी भक्तों का मानना है कि भगवान शिव स्वयं मसाने की होली खेलने आते हैं।

मोक्ष का धाम है काशी

वाराणसी को मोक्ष का धाम माना जाता है। मान्यता है कि यहां मृत्यु को प्राप्त करने वाला व्यक्ति सीधे शिव चरणों में प्रस्थान करता है। वह जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाता है। इस कारण काशी को मुक्तिधाम बोला जाता है। डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्रों की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। ये भी पढ़ें- Mole On Palm: हथेली पर तिल होना शुभ या अशुभ, जानिए क्या कहते हैं शास्त्र?


Topics:

---विज्ञापन---