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जस्टिस मुरलीधर सुप्रीम कोर्ट के जज क्यों नहीं बने? जवाब मिले-ना मिले, सवाल पूछा जाना चाहिए!

कुछ सवाल ऐसे होते हैं, जिनके जवाब नहीं होते। इस ‘नहीं होते’ की अभिव्यक्ति में यह निहित है कि जवाब होकर भी नहीं होता या जवाब तो होता है, लेकिन जिससे सवाल पूछा जाए वह इसलिए जवाब नहीं देता कि वह ईमानदारी से जवाब नहीं दे सकता। ऐसे सवालों को इसलिए पूछना नहीं छोड़ देना […]

कुछ सवाल ऐसे होते हैं, जिनके जवाब नहीं होते। इस 'नहीं होते' की अभिव्यक्ति में यह निहित है कि जवाब होकर भी नहीं होता या जवाब तो होता है, लेकिन जिससे सवाल पूछा जाए वह इसलिए जवाब नहीं देता कि वह ईमानदारी से जवाब नहीं दे सकता। ऐसे सवालों को इसलिए पूछना नहीं छोड़ देना चाहिए कि जवाब नहीं मिलेगा। जरूर पूछना चाहिए, क्योंकि कुछ सवाल अपने आप में जवाब की योग्यता रखते हैं। ऐसे ही कई सवाल हैं, ओडिशा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस मुरलीधर को सुप्रीम कोर्ट का जज क्यों नहीं बनाया गया? कॉलिजियम ने जस्टिस मुरलीधर को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश क्यों नहीं की? जस्टिस मुरलीधर जिन्हें 7 अगस्त 2026 को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में रिटायर होना चाहिए था, वो 7 अगस्त 2023 को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में ही क्यों रिटायर हो गए? ये सवाल न सरकार में बैठे किसी मंत्री ने पूछे हैं, न विपक्ष के नेता ने इस मुद्दे को उठाया है और आम आदमी में तो ऐसे सवाल पूछने की योग्यता ही कहां होती है। यह सवाल सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और जाने-माने कानूनविद, पदम विभूषण फली नरीमन, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मदन बी लोकुर और दुनियाभर में जाने-माने मध्यस्थ (मीडिएटर) और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट श्रीराम पंचू ने उठाया है। इन तीनों ने 'इंडियन एक्सप्रेस' में लिखे आर्टिकल 'अ क्वेश्चन फॉर सुप्रीम कोर्ट' में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम को इस बात का जवाब देना चाहिए कि जस्टिस मुरलीधर जैसे योग्य, ईमानदार और एक्जेम्पलरी रिकॉर्ड वाले लीगल स्कॉलर को सुप्रीम कोर्ट का जज क्यों नहीं बनाया गया? यह सवाल सरकार ने नहीं, सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम से पूछा गया है। सरकार से तो तब पूछा जाता जब कॉलिजियम ने सरकार को सिफारिश भेजी होती और सरकार ने रोक दिया होता। जैसे 2014 में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और पूर्व सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम के मामले में हुआ था। कॉलिजियम ने सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने के लिए उनका नाम सरकार को भेजा, लेकिन सरकार ने उनकी फ़ाइल लौटा दी थी। बाद में सरकार के रवैये से आहत होकर गोपाल सुब्रह्मण्यम ने खुद ही जज बनने की अपनी सहमति वापस ले ली थी। यहां तो कॉलिजियम ने जस्टिस मुरलीधर के नाम को आगे ही नहीं बढ़ाया। वो भी तब जब सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की वैकेंसी थी, इसलिए सवाल कॉलिजियम से है। जवाब देश के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को देना चाहिए। हालांकि कॉलिजियम में मुख्य न्यायाधीश के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं, लेकिन कॉलिजियम की सिफ़ारिशें सर्वसम्मति से होती हैं, इसलिए इस सवाल का जवाब भी सर्वसम्मति हो तो बेहतर होगा। अगर सहमति नहीं बनती तो कॉलिजियम का कोई एक सदस्य भी जवाब दे तो शायद ही किसी को कोई आपत्ति होगी। ऐसा नहीं है कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की कोई कानूनी बाध्यता है और ऐसा भी नहीं है कि इससे पहले कोई हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट का जज बने नहीं रिटायर हुआ है, लेकिन जस्टिस मुरलीधर को सुप्रीम कोर्ट का जज क्यों बनाया जाना चाहिए? इसकी वजह उस आर्टिकल में विस्तार से गिनाई गयी है। जस्टिस मुरलीधर की योग्यता के बारे में गिनाने से पहले हम आपको याद दिलाते चलें कि ये वही जस्टिस मुरलीधर हैं, जिन्होंने 2020 में दिल्ली दंगों के दौरान बीजेपी नेताओं के भड़काऊ भाषण को लेकर एफआईआर नहीं लिखने पर दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई थी। कोर्ट में उस समय दिल्ली पुलिस की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया पेश हुए थे। उसी दिन देर रात जस्टिस मुरलीधर का ट्रांसफर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट कर दिया गया था। जस्टिस मुरलीधर के नाम कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसले हैं। जस्टिस मुरलीधर 2006 से 2020 तक दिल्ली हाईकोर्ट में जज रहे। जहां उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए। दिल्ली हाईकोर्ट का वह ऐतिहासिक फैसला जिसमें आपसी सहमति से समलैंगिक सम्बंध बनाने को गैर अपराध (सेक्शन 377) घोषित किया गया था, उस फैसले को सुनाने वाली बेंच में जस्टिस एपी शाह के साथ जस्टिस मुरलीधर भी शामिल थे। दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगे में आरोपी कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार को सज़ा जस्टिस मुरलीधर ने ही सुनाई थी। इसके अलावा हाशिमपुरा कांड शामिल 16 पुलिस वालों को आजीवन कारावास की सजा जस्टिस मुरलीधर ने ही सुनाई थी। इस कांड में 38 मुसलमानों की टार्गेटेड किलिंग हुई थी। जस्टिस मुरलीधर को जनवरी 2021 में ओडिशा हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था। उनकी प्रशासनिक कुशलता ने वहाँ उन्हें इतना लोकप्रिय बनाया कि जिस दिन मुरलीधर हाईकोर्ट से रिटायर हो रहे थे, उनको विदाई देने के लिए पूरा हाईकोर्ट उनके साथ चल रहा था। दिल्ली हाईकोर्ट से भी जब जस्टिस मुरलीधर की विदाई हुई थी, पूरा हाईकोर्ट भाव विभोर था। ऐसी तस्वीरें बहुत कम दिखाई देती हैं। फली नरीमन, जस्टिस मदन बी लोकुर और श्रीराम पंचू ने अपने आर्टिकल में कॉलिजियम व्यवस्था पर जस्टिस मुरलीधर के बहाने जो सवाल उठाया है, वो सवाल नए नहीं हैं। इस व्यवस्था पर सवाल उठते रहे हैं। न्यायपालिका के भीतर से भी और बाहर से भी, लेकिन इस बार सवाल का पैनापन थोड़ा अधिक है। मौजूदा मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ बिना लाग लपेट अपनी बात कहे जाने के लिए जाने जाते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि वो कभी बताएंगे कि आखिर क्या वजह थी कि जस्टिस मुरलीधर को उनकी अगुवाई वाली कॉलिजियम ने सुप्रीम कोर्ट का जज बनने के योग्य नहीं समझा।


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