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राज्य सरकारों की कार्यशैली पर आंसू बहाता धरियावद चरित्र

डॉ. मीना शर्माः प्रतापगढ़ जिले के धरियावद उपखंड में परिवार और गांव के 25 लोगों की मौजूदगी में पति द्वारा बलपूर्वक अपनी गर्भवती पत्नी के कपड़े फाड़ना, शरीर को काटना, पूरी तरह नग्न करके गांव में घुमाना, पूरे गांव का मूक दर्शक होकर झुंड मे हंसी ठहाके लगाना और दो दिन तक पुलिस को खबर […]

डॉ. मीना शर्माः प्रतापगढ़ जिले के धरियावद उपखंड में परिवार और गांव के 25 लोगों की मौजूदगी में पति द्वारा बलपूर्वक अपनी गर्भवती पत्नी के कपड़े फाड़ना, शरीर को काटना, पूरी तरह नग्न करके गांव में घुमाना, पूरे गांव का मूक दर्शक होकर झुंड मे हंसी ठहाके लगाना और दो दिन तक पुलिस को खबर नहीं होना। चंद्रयान की सफलता का जश्न मना रहे भारत का ‘धरियावद’ चरित्र ना सिर्फ दुनिया में हमारे सर को झुकाता है, बल्कि ये सोचने पर मजबूर भी करता है कि मणिपुर की आग बुझी भी नहीं थी फिर कैसे राजस्थान के आदिवासियों को इस आग में भस्म होने का भय नहीं हुआ ? ‘भय बिन प्रीत ना होय’ फिर चाहे वो भय समाज का हो या सरकार का!

राजस्थान पुलिस का काम 

‘आमजन में विश्वास और अपराधियों में भय’ के मूल मंत्र से काम कर रही राजस्थान पुलिस के जांच अधिकारी शेरावत खां ने बताया प्रतापगढ़ जिले के धरियावद उपखंड के नीचला कोटा पहाड़ा गांव में ड्यूटी पर तैनात बीट कांस्टेबल दिनेश कुमार उस दिन छुट्टी पर थे। संबंधित थाना केसरिया के सब इंस्पेक्टर नारायण लाल को भी घटना के 24 घंटे तक कोई जानकारी नहीं मिली। 31 अगस्त को दिन में 2 बजे घटना को अंजाम देने वाला एक 22 वर्ष का मजदूर था और उसके साथ उसी की उम्र के दोस्त, माता पिता और गांव के लोग भी। कहने को हम लोकतांत्रिक युग में जी रहे हैं लेकिन 'बलशाली की सत्ता' ही समाज और सरकार की सच्चाई है। पुलिस को घटना की जानकारी वायरल वीडियो से मिलना इस तथ्य को पुख्ता करत है कि पुलिसकर्मियों का ज़्यादातर समय बलशाली को और बलवान बनाने में व्यतीत हो रहा है। यह भी पढ़ें: क्या सोशल मीडिया से नष्ट हो रही भारतीय संस्कृति?

धृतराष्ट्र राज

दिनदहाड़े इतनी बड़ी घटना से बेखबर पुलिस के मुखबीर, सखी मित्र, हेल्पलाइन नंबर सब, प्रचार सामग्री के वीडियो में सिमट कर रह गये। गांव में कोई सरकारी शिक्षक, पटवारी, सरपंच आंगनवाड़ी कार्यकर्ता नहीं था जो उस चीरहरण को रोकने का साहस दिखाता। धृतराष्ट्र के राज में सबने अपनी आंखों पर पट्टी ही नहीं बांधी थी सुनने की क्षमता भी खो दी थी। आज के शासक भी आंख, कान बंद कर सत्तामद हैं। आज घटना के एक सप्ताह बाद पुलिसकर्मियों को सम्मानित करने की बजाय जवाबदेह बनाने की जरूरत है और सरकारों को ‘महिला मुद्दों’ पर राजनीति करने की बजाय उन्हें साथ लेने की।

गर्भवती की चीख-पुकार

सात महीने की गर्भवती महिला रोते-गिड़गिड़ाते थक गई लेकिन उसकी चीख से आसमान नहीं फटा। क्या वजह है कि इस घटना के दोषियों की सूची में स्थानीय सरपंच भैरुं मीणा की ज़िम्मेदारी तय नहीं की गई? क्या पुलिस अधीक्षक का काम सोशल मीडिया से मिलने वाले वीडियो का इंतज़ार करना है? क्या मजबूरी है कि सरकार ने स्थानीय थानाधिकारी को तत्काल रूप से बर्खास्त नहीं किया?

मंत्री का मर्दानगी पर बयान

दरअसल कड़वी हक़ीकत ये है कि जब विधानसभा में वरिष्ठ मंत्री मर्दानगी पर बयान देते हैं तो साथ बैठे बुजुर्ग मंत्रीगण भी ठहाके लगाते हैं। विधानसभा भवन में जनप्रतिनिधि जिस सोच के साथ अशोक गहलोत सरकार के सबसे वरिष्ठ मंत्री के बयान पर चटखारे ले रहे थे धरियावद में अनपढ़ आदिवासी, मंत्री महोदय की उसी सोच को ‘नग्न’ महिला की बिलखती कराह में रौंध रहे थे।

आरोपी की मर्दानगी 

विधानसभा में मंत्री की ‘सोच’ उसी समाज को परिलक्षित कर रही थी जिसने हमारी बेटियों और महिलाओं को हमेशा मर्दों के लिये रात और बात बदलने का किस्सा समझा। इसलिये जब धरिवाद की पीड़ित महिला ने गर्भ में पल रहे बच्चे के पिता की बजाय किसी अन्य पुरुष के साथ रहने का फ़ैसला किया तो मर्दानगी दिखाने का ये ‘रवैया’ पति ने अपनाया। पुलिस कस्टडी में जब आरोपी काना मीणा से पूछा गया कि उसने ऐसा क्यों किया तो उसने कहा कि ‘मैं ये कैसे बर्दाश्त करता कि मेरे होने वाले बच्चे की मां किसी और के साथ चली जाये’

महिला को लेकर समाज की सोच

'बर्दाश्त' जी हां बर्दाश्त नहीं हुआ एक महिला का अपने जीवन में पुरुष का चयन कर रही हैं। राजस्थान विधानसभा में मंत्री महोदय ने स्वीकार किया था कि राजस्थान तो पुरुषों को ये अधिकार देता रहा है, लेकिन अगर सुष्मिता सेन उन मर्दों से ये अधिकार छीनकर लेने का दम रखे तो समाज उसे ‘गोल्डडिगर’ कहता है और महिला कमज़ोर हो तो उसके बदन को बाज़ारु बना देता है। समाज की सोच आदिवासी अंचल की पगडंडियों से लेकर करोड़ों की गाड़ियों में महिलाओं को कुचलने की है। यह भी पढ़ें: आसान नहीं है ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की राह…

विपक्षी दलों का काम 

अगर हमारी सरकारों ने ऐसे बयानवीर मंत्रियों और नेताओं को महिला सम्मान को क्षति पहुंचाने के गंभीर आरोप में उनके पदों से बर्खास्त किया होता तो संदेश दूर तक जाता। अगर हमारे विपक्षी दलों ने ऐसे नेताओं की बर्खास्ती को बड़ा मुद्दा बनाया होता तो समाज में परिवर्तन के वाहक बनते। चाहे बयान मुलायम सिंह यादव का हो, मनोहर लाल खट्टर का या फिर शांति धारीवाल का।

4 महीने में महिलाओं के साथ तीन दर्दनाक घटनाएं 

धरियावद में गर्भवती महिला के साथ जो हुआ वो पश्चिम बंगाल के मालदा ज़िले में दो महिलाओं को चोरी के आरोप में नग्न कर घुमाने की 18 जुलाई की घटना के बाद हुआ है। ममता दीदी के बंगाल में दो महिलाओं के साथ ये बर्बरता हुई। वहीं 4 मई को मणीपुर की तीन महिलाओं को भरी भीड़ में नग्न कर घूमाया गया। पूर्वोत्तर से लेकर राजस्थान तक चार महीने में एक के बाद एक तीन दर्दनाक घटनाएं सामने आई। भारत के तीनों राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें। लेकिन रवैया सब जगह एक जैसा ही दिखा।

नेताओं की जुगलबंदी

ऐसी घटनाएं बार-बार नहीं होंगी अगर हमारी सरकारें कुर्सी बचाने की जगह इस बात पर विचार करेगी कि पुलिस से चूक कहां हुई। पक्ष और विपक्ष के नेताओं की जुगलबंदी में ‘बलात्कार’ हर दिन, हर रैली में हर नेता के भाषण का एक ऐसा हथियार बन गया है जिसमें अब ना धार है और ना ही वार करने की क्षमता।

नोटः उपरोक्त लेख में लेखक के निजी विचार हैं।


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