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Gandhi Jayanti: एक आम आदमी जिसने अपनी कमजोरियों को जीता, फिर देश के राष्ट्रपिता कहलाए

– आचार्य प्रशांत Mahatma Gandhi : किसी व्यक्ति की सीधे-सीधे निंदा कर देना बहुत आसान होता है और किसी को देवता बनाकर उसकी पूजा करना भी आसान ही होता है पर इंसान को इंसान की तरह देखना और उसका सही मूल्यांकन कर पाना बहुत कठिन और बहुत जरूरी है। अंदर के दुश्मन से लिया लोहा […]

- आचार्य प्रशांत Mahatma Gandhi : किसी व्यक्ति की सीधे-सीधे निंदा कर देना बहुत आसान होता है और किसी को देवता बनाकर उसकी पूजा करना भी आसान ही होता है पर इंसान को इंसान की तरह देखना और उसका सही मूल्यांकन कर पाना बहुत कठिन और बहुत जरूरी है।

अंदर के दुश्मन से लिया लोहा

गांधी जी की सबसे खास बात थी कि उन्होंने अंदर वाले दुश्मन से लोहा लिया था। उनके पास ऐसा कुछ भी नहीं था, जो बचपन से ही बहुत दिव्य रहा हो, बहुत साधारण कद काठी के थे, कोई आकर्षक व्यक्तित्व नहीं था लेकिन उसके बाद भी वो एक बड़े जननेता के रूप में उभरे। लोगों के सामने बोलने से उन्हें डर लगता था। ब्रिटेन में शिक्षा लेने के बाद भी कोर्ट में जिरह करने से डरे तो उन्होंने अर्जियां लिखने का काम शुरू कर किया। यहां भरे कोर्ट में बोलेगा कौन? अब ऐसा आदमी जो कोर्ट में नहीं बोल पा रहा है उसके बाद वो जीवन भर हजारों लोगों की हजारों जनसभाएं संबोधित करता रहा, यह बात खास ध्यान देने वाली है कि इस व्यक्ति ने अपनी कमजोरियों को जीता था। [caption id="attachment_367033" align="aligncenter" ] Acharya Prashant[/caption] यह भी पढ़ें - क्या अब किरण राव शादी पर फिल्म भी नहीं बना सकती हैं? क्यों इतने टॉक्सिक हो रहे हैं हम!

अपनी कमजोरियों पर पाई विजय

महात्मा गांधी की कामवासना, किसी भी आम आदमी की तरह इतनी प्रबल थी कि पिता की आखिरी घड़ी में भी पिता के साथ नहीं सो पाए, वह पत्नी की ओर खिंचे चले गए थे फिर उस व्यक्ति ने 38 की उम्र में ही समझा कि ब्रह्मचर्य का वास्तविक अर्थ क्या है, वह अंग्रेजों के इतने कायल थे कि जब पढ़ाई करने के लिए ब्रिटेन गए तो उन्होंने अपने बहुत सारे पैसे, सिर्फ अंग्रेजी तौर तरीके सीखने, अंग्रेजी कपड़े वगैरह हासिल करने में लगा दिए, वो आदमी फिर अंग्रेजों पर बिल्कुल हावी हो बैठा और अंग्रेज उससे थर्राने लगे तो तरह गांधी ने अपनी कमजोरियों को खूब जीता। घर से पैसे चुराकर एक समय पर उन्होंने मांस भी खा लिया, झूठ भी बोला और फिर ये सारी बातें स्वीकारीं भी और फिर अपने इन सब दोषों पर उन्होंने विजय भी पाई।

जब महात्मा कहलाए गांधी 

एक समय गांधी, धर्म के प्रति इतने शंकालु हो गए थे कि वह धर्म परिवर्तन के बारे में सोच रहे थे लेकिन फिर वो समय भी आया जहां पर ये महात्मा कहलाए। गांधी ने गीता को मां बोला, बहुत लोगों को धर्म की राह पर लगाया। उनमें कोई ऐसा ऐब नहीं था, जो साधारण आदमी में होता है और उनमें न रहा हो। इनकी जवानी में सारे जो सामान्य दोष होते हैं, वह सब किसी जवान आदमी में, वो सब थे पर उन्होंने उन सब दोषों पर विजय हासिल करी। एक साधारण, बिलकुल मिट्टी का आदमी, वो कैसे अपनी कमजोरियों को जीतता चला गया और आगे बढ़ता चला गया और यही बात हमें उनसे सीखनी होगी, बाकी राजनीतिक विचारधारा वगैरह के चलते, किसी की निंदा करना, गाली गलोच करना बहुत सस्ता काम है।

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गांधी जी का मानना था कि इंसान को इंसान की तरह देखना चाहिए। हर इंसान में कुछ कमजोरियां होती हैं और बहुत कुछ ऐसा भी हो सकता है जो उससे सीखा जा सकता है और सीखा जाना चाहिए, उनकी दृढ़ता देखने लायक थी, उनकी ज़िद देखिए, जो व्यक्ति शुरुआत में कमज़ोर मन का था उसका मन इतना दृण हो गया कि जब वो उपवास करने बैठते थे तो भारत ही नहीं, पूरी दुनिया कांप जाती थी, चर्चिल के पसीने छूट जाते थे। चर्चिल के शब्द हैं 'नंगा फकीर बड़ा जिद्दी है' एक बहुत ही औसत मन के आदमी के लिए उस औसत स्तर से उठ कर के इतना मजबूत बन जाना आसान तो बिल्कुल नहीं रहा होगा, मेरे ख्याल से सबको उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। (लेखक पूर्व सिविल अधिकारी रह चुके हैं, वह प्रशांत अद्वैत संस्था के संस्थापक और वेदांत मर्मज्ञ भी हैं)


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