दिल्ली दंगे 2020: समावेशी भारत का एक काला अध्याय
प्रो अंशु जोशी
प्रो अंशु जोशी
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध को लेकर 23 फरवरी 2020 को दिल्ली में हुए दंगे समावेशी संस्कृति के भारत के इतिहास में काला अध्याय हैं। इन दंगों में कइयों की जानें गई, कई घायल हुए। करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ और सबसे बड़ी बात, इन दंगों ने भारत में नक्सली तथा जिहादी ताकतों के राष्ट्र को कई खंड में विभाजित कर देने के षड्यंत्र को उजागर किया। इन दंगों ने दिल्ली में ऐसी विनाशकारी स्थितियों को नियंत्रित करने में दिल्ली सरकार की क्षमता पर भी सवालिया निशान लगाए। लोग विस्थापित हुए और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो गई।
सीएए लागू होने के बाद देश में विरोध प्रदर्शन हुए
दिल्ली दंगों के असर से राष्ट्र अभी भी उबर नहीं पाया है। भारतीय इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक, जो फरवरी 2020 में देश की राजधानी में लिखा गया था, किसके दिमाग की उपज था और क्यों, ये प्रश्न हम सबके दिमाग में उठता रहा है। इन दंगों पर हुई राजनीति या कहें कि दंगों के माध्यम से हुई राजनीति को जानना तथा समझना भी आवश्यक हो जाता है। सीएए लागू होने के बाद देश में विरोध प्रदर्शन हुए। उनमें से एक विरोध प्रदर्शन भारत की राजधानी नई दिल्ली में किया गया। प्रदर्शनकारियों ने शहर के चारों ओर सड़कों को अवरुद्ध कर दिया था। एक धरना-प्रदर्शन 22 फरवरी 2020 को जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास आयोजित होने वाला था।
मौजपुर चौक, करावल नगर, बाबरपुर और चांदबाग में हिंसा हुई
ऐसे में कई लोगों तथा नेताओं ने पुलिस अधिकारियों को प्रदर्शनकारियों द्वारा अवरुद्ध किए गए क्षेत्र को खाली करवाने का बार-बार अनुरोध किया। 23 फरवरी की शाम को दिल्ली में झड़प की घटनाएं शुरू हुईं। मौजपुर चौक, करावल नगर, बाबरपुर और चांदबाग इलाकों में काफी हिंसा हुई। वाहन और दुकानें नष्ट कर दिए गए। दंगे शुरू हुए और समय के साथ बदतर होते गए। लोगों की जान चली गई और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। पथराव, खुली गोलीबारी, संपत्ति की तोड़फोड़ और झड़प की कई घटनाएं सामने आईं। पत्रकारों पर हमले हुए। ये घटनाएं 28 फरवरी तक जारी रहीं। इस घटना ने लोगों को सदमे में डाल दिया था। कई लोग विस्थापित हुए। लोगों में डर का माहौल था। यह हिंसा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन गई थी। स्थितियों को नियंत्रित करने में अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठने लगे।
कोविड 19 भी दस्तक दे चुका था
पर सवाल यह उठता है कि चाहे विरोध प्रदर्शन के लिए चुना गया समय हो (अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प इन दिनों भारत के दौरे पर थे) या इलाका (सभी मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में जिहादी-वामी शक्तियों ने डेरे बना लिए थे ), बड़ी चालाकी से चुना गया लगता है। इधर कोविड 19 भी दस्तक दे चुका था। ऐसे में सीएए को लेकर जिस स्तर पर आम जनता के बीच भय का वातावरण बनाया जा रहा था उसे मात्र विरोध प्रदर्शन तो नहीं कहा जा सकता और फिर जिस तरह से प्रदर्शन को रोकने में दिल्ली सरकार तथा प्रशासन विफल रहा और बाद में जिस तरह से हिन्दुओं को इन पूरे दंगों में खलनायक बना कर प्रस्तुत किया गया (जो इन दंगों के सबसे बुरे शिकार रहे), उससे समझ आता है कि किस तरह एक सुविचारित (कुविचारित?) षड्यंत्र को अमली जामा पहना कर इन दंगों को रचा गया।
समझाने की बजाए फैलाई गईं अफवाहें
दंगों का आधार सीएए बताया गया। इस अधिनियम को बजाय लोगों को समझाने के अफवाहें फैलाई गई। इन अफवाहों को फैलाने में कई वामी सेलेब्रिटीज ने अपना योगदान दिया। वस्तुतः अधिनियम का उद्देश्य भारत के पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए भारत का नागरिक बनने की प्रक्रिया को आसान करना है। यह अधिनियम केवल तीन देशों में धार्मिक समस्याओं का सामना कर रहे अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए लागू हुआ। उपरोक्त श्रेणी में मुसलमानों को बाहर रखा जाना स्वाभाविक था क्योंकि वे इन देशों में बहुसंख्यक श्रेणी में आते हैं।
दिल्ली का शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन का मुख्य केंद्र बना
इसी को लेकर भारतीय मुसलामानों में अफवाहें फैलाई गईं और उन्हें भड़काया गया। इसमें छात्रों और महिलाओं को विशेष तौर पर शामिल किया गया ताकि वे पुलिस के खिलाफ हिंसक गतिविधियां करें तो भी उन्हीं को सहानुभूति मिले। हालांकि, सरकार बार बार कहती रही कि ये अधिनियम किसी विशेष धर्म के खिलाफ नहीं है, तथा भारत की आतंरिक सुरक्षा के मद्देनज़र घुसपैठियों पर रोक लगाने के लिए है, प्रदर्शनकारियों ने सरकार की एक न सुनी। भारत सरकार ने यह भी कहा कि इन तीनों देशों में मुसलमान बहुसंख्यक हैं और इसलिए वे अल्पसंख्यकों की श्रेणी में कैसे रखे जा सकते हैं पर लंबे विरोध प्रदर्शन जारी रहे। दिल्ली का शाहीन बाग इलाका विरोध प्रदर्शन का मुख्य केंद्र बन गया और अंततः दिल्ली में तब भीषण दंगे हुए जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प भारत दौरे पर थे।
दिल्ली दंगों में दर्ज किए गए थे 751 केस
मार्च 2020 से चल रही जांच प्रक्रिया में दिल्ली पुलिस द्वारा दिल्ली दंगों से संबंधित करीब 751 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें एक मामला साजिश से जुड़ा है और इसे क्राइम ब्रांच ने दर्ज किया। पुलिस का मानना है कि दिल्ली में हुए दंगों को लेकर एक पैटर्न है जो साजिश की ओर इशारा करता है। उनका मानना है कि हिंसा से पहले साइटों पर ट्रैफिक जाम था और जो लोग विरोध स्थलों पर बैठे थे, उनका नेतृत्व बाहर से आए लोगों ने किया था, वे स्थानीय नहीं थे। इस मामले के सिलसिले में जेएनयू के एक छात्र, उमर खालिद को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया। अब जबकि इन दंगों को हुए चार वर्ष होने को हैं, जब पूरा मामला समझने का प्रयास करते हैं तो इन दंगों के पीछे सुनियोजित षड्यंत्र दिखाई तो पड़ता है।
बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामाजिक क्षति हुई
दिल्ली दंगों में बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामाजिक क्षति हुई। स्कूलों, दुकानों, घरों और धर्मस्थलों में आग लगा दी गई और ज्वलनशील पदार्थों का उपयोग करके उन्हें नष्ट कर दिया गया। दंगा प्रभावित इलाकों में ज्यादातर असंगठित क्षेत्र से जुड़े मजदूर रहते थे। दंगे के दौरान कई लोग अपना कीमती सामान घर पर ही छोड़कर चले गए थे। ये सभी कीमती सामान जिसमें पैसे भी शामिल थे, आग के कारण नष्ट हो गए। लोग अब प्रभावित इलाकों में लौटने से डर रहे हैं। कई लोग अभी भी अपने घर नहीं लौटे हैं। दंगों से दुकान मालिकों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ।
दंगों का सबसे बड़ा असर धार्मिक सहिष्णुता पर पड़ा
इन दंगों का सबसे बड़ा असर धार्मिक सहिष्णुता पर पड़ा। दिल्ली दंगों में बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामाजिक क्षति हुई। स्कूलों, दुकानों, घरों में आग लगा दी गई। दंगा प्रभावित इलाकों में ज्यादातर असंगठित क्षेत्र से जुड़े मजदूर रहते थे। दंगे के दौरान कई लोग अपना कीमती सामान घर पर ही छोड़कर चले गए थे। ये सभी कीमती सामान जिसमें पैसे भी शामिल थे, आग के कारण नष्ट हो गए। लोग अब प्रभावित इलाकों में लौटने से डर रहे हैं। कई लोग अभी भी अपने घर नहीं लौटे हैं। जिन पर बीती है वे जानते हैं वे कैसे शिकार हुए हैं। इन दंगों ने न सिर्फ राष्ट्र की अस्मिता पर हमला किया, भारतीय संस्कृति में निहित सहिष्णुता तथा सर्व धर्म समभाव के भाव पर भी प्रहार किया। दिल्ली दंगों का घाव भरने में समय लगेगा पर इस बीच ये हम सबका कर्तव्य बनता है कि इन दंगों के पीछे फैलाई गयी अफवाहों तथा अधिनियम से जुड़े तथ्यों को अपने आस-पास साझा करें ताकि भविष्य में इस प्रकार कि घिनौनी राजनीति न होने पाए।
लेखिका जेएनयू में प्रोफेसर हैं। उक्त लेख में व्यक्त विचार उनके अपने हैं।
Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world
on News24. Follow News24 and Download our - News24
Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google
News.